दलहन

दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं।

भारतीय कृषि पद्धति में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद  प्रदान करती है जिससे भूमि का कटाव  कम होता है। दलहनों में नत्रजन स्थिरिकरण का नैसर्गिक गुण होने के कारण वायुमण्डलीय नत्रजन को  अपनी जड़ो में सिथर करके मृदा उर्वरता को भी बढ़ाती है। इनकी जड़ प्रणाली मूसला होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इन फसलों के दानों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस अन्य खनिज लवण काफी मात्रा में  पाये जाते है जिससे पशुओं और मुर्गियों के महत्वपूर्ण रातब  के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा

जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा 
दलहनी का उत्पादन लगातार घटने से इनकी कीमतोे में आग लगी है। दाल गरीबों की थाली से दूर हो चुकी है। एसे में जायद की फसल उगाकर इस आग को बुझाया जा सकता है। रबी फसलों की कटाई फरवरी माह से शुरू होकर अप्रैल तक चलती रहती है और सभी खेत खाली पड़े रहते हैं। जायद ऋतु में दिन 12-13 घंटे का होने से दलहनी फसलों में ज्यादा भोजन बनता है जिससे फसल अवधि 70 से 80 दिन मात्र ही होती है। कम अवधि होने से उत्पादन लागत कम होने के साथ कीट व्याधि व जानवरों से नुकसान की संभावना भी कम हो जाती है और भरपूर उत्पादन मिलता है। 
खेत की तैयारी

मसूर की खेती

रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह यहाँ की एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः हर राज्य में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं।इसकी खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों में धान के फसल के बाद की जाती है । रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने में भी मसूर की खेती बहुत सहायक होती है। उन्नतशील उत्पादन तकनीको का प्रयोग करके मसूर की उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।

जलवायु 

अरहर की फसल में कीट प्रबंधन

अरहर की फसल खेतों में तैयार हो रही है। ऐसे में किसानों को अच्छी पैदावार मिल सके इसके लिए यह बेहद ज़रूरी है अरहर को इस स्थिति में नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचा लिया जाए। आइए जानते हैं कि कैसे इन कीटों से अपनी फसल को बचाया जा सकता है।

 

अरहर फसल की प्रमुख कीटें
पत्ती मोड़क एवं फली भेदक कीट अरहर की कोमल तनों एवं पत्तियों को खाती हैं। बाद में फूलों तथा फलियों को नुकसान पहुचाती हैं। ये कीट फली में छेद करके बीज को खराब कर देती है। यह कीट पत्तियां खाती हैं अरहर की फली अवस्था में यह कीट ज्यादा होती है। अरहर का खेती में इन कीटों का प्रकोप ज्यादा होता है।

कुलथी ( कुलथ) की खेती

कुलथी  , कुलथ या गहथ की जन्मस्थली भारत है। कर्नाटक व आंध्र प्रदेश से प्रागइतिहासिक खुदाई से 2000 BC पहले गहथ /कुलथ के अवशेष मिले हैं।

हिंदी में कुलथी, कुलथ, खरथी, गराहट | संस्कृत में कुलत्थिका, कुलत्थ | गुजराती में कुलथी गढ़वाली में फाणु | मराठी में डूलगा, कुलिथ तथा अंग्रेजी में हार्स ग्राम इत्यादि नामों से जाना जाता है | कुलथी कषायरशयुक्त, विपाक 

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