क्या किसान इसी देश का नागरिक है ?
हरित क्रांति के बाद देश में खाद्यान की उपज बड़ी हमने चहुमुखी विकास किया देश में औद्योगिकी करण तेजी से हुआ प्रति व्यक्ति आय बढ़ी लोगो के जीवन स्तर में सुधार हुआ आज गाँव गाँव में बिजली पहुची शिक्षा के क्षेत्र में भी देश ने तरक्की की हम आज तेजी से विकास कर रहे है दुनिया में अपनी पहचान बनाई ख़ुशी की बात है हम पैदल से मैट्रो ट्रेन तक पहुचे, देश नें कंप्यूटर क्रांति में विकास किया सबकुछ ख़ुशी की बात है लेकिन .............................
दुःख की बात है कि देश की अर्थव्यवस्था में 70% भागीदारी रखने बाला किसान आज भी बही का वही है उसका विकास नही हुआ हरित क्रांति के नाम पर किसान को लूटा गया कोई भी परियोजना आती है परन्तु किसान तक पहुच ही नहीं पाती है जितनी भी परियोजना आती है किसानों के लिए आज तक समझ नही आया कि वो परियोजना वास्तव में किसानो के लिए आई या दलालों के लिए उस परियोजनाओ को पाने के लिए इतने पेंच होते है कि किसान के लिए वह परियोजना दिवास्वप्न से अधिक कुछ भी नही उपर से सरकारी तन्त्र रही बची कमी पूरी कर देती है
देश का अशिक्षित किसान सरकारों के लुभाने प्रयास से इतने खुश होते है जैसे जन्नत उनके लिए जमीन पर आ गयी हो लेकिन यह तो सर्कार की नीती होती है की जो परियोजना लागू हो वह किसानों को नही मिल पाए यदि किसानो का स्तर सुधर गया तो शायद व्यापारी वर्ग दलाल वर्ग घाटे में पहुँच जायेगा जो सरकार को फंडिंग करते हैं
किसानों का ध्यान विकास की ओर ध्यान न जाये इसलिय धर्म की राजनीती जांत पांत की राजनीती में इतना उलझा दिया कि देश के किसान और मजदूर वर्ग उससे हट कर कुछ सोच भी नही पाते है चुनाब से पहले हवाई चुनावी वादें करते यह किसी एक राजनैतिक दल का नही सभी का है चुनाव जीतने के बाद कहाँ का किसान? कैसा किसान ? यह भी देश के नागरिक है क्या ?
यह तो किसान है कि मौसम की मार सहते हुए ठण्ड में कांपते हुए गर्मी में पसीना बहाते हुए अनाज का उत्पादन करता है फिर कुदरत की मार कभी सूखा कभी बाढ़ कभी कुछ जैसे तैसे उत्पादन किया तो सरकारी मूल्य ऐसे तय होते है कि लागत भी नही आ पाती
बिचौलियों की चांदी हमारे उत्पाद कूड़े के भाब खरीद कर हमें ही उचें दामों पर बेचते है
क्या कभी आप में से किसी ने सुना है की सूखे की मार से व्यापारी ने आत्म हत्या की क्या बाढ़ आने से किसी उद्योगपति कंगाल हो गया या बारिश न होने पर कोई बिचोलिया रोड पर आ गया क्या उन्हें डीजल नही मिल पाया या किसी फैक्ट्री को लाईट नही मिली
मै आप सभी को यह बात बताता हूँ की यह सरकारें किसानो के प्रति इतनी बेरूखी से इसीलिए पेश आती है क्योकि यह सभी उद्योगपतियों के गुलाम है या खुद ही या खुद ही उद्योग पति है अगर किसानों का विकास हुआ तो किसानो पर कोई उधारी नही रहेगी कोई भी महाजन का गुलाम नही रहेगा किसान जब तक भूखा नही मरेगा , आत्महत्या नही करेगा , तब तक वह अपनी जमीने कचड़े के भाब उन्हें नही बेचेगा और न ही सस्ते मजदूर नही मिल सकेगा
यह एक सोची समझी चाल है किसानों का असितत्व समाप्त करने की किसानों की सम्पत्ति हडपने की मुझे तो यह डल्होजी की नीति लगती है
आप ही लोग बताओ कि क्यों किसानों के बारे में कोई सरकार नही सोचती है? क्या देश का विकास केवल व्यापर नीति से ही हो सकता है? क्या फैक्ट्रियों के लगने से देश समर्द्ध बनेगा ?क्या देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी आवश्यक नही है ?यदि है तो किसानों के हित में सरकारें कुछ क्यों नही कर रही है ?