सब्जियों के छिलकों व जूठन से बनी घरेलू गैस
उसलापुर स्थित रेलवे लोको प्रशिक्षण केंद्र के मेस में सब्जियों के छिलके, जूठन व कचरों से बने बायोगैस से स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा है। करीब 13 लाख रुपए की लागत से यहां बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है। प्रयोग के तौर पर पिछले चार दिनों से मेस में प्रशिक्षु ट्रेन चालकों के लिए रोटी, सब्जी, दाल पकाए जा रहे हैं। रविवार को लगातार 7 घंटे तक इस गैस से चूल्हा जलने का रिकार्ड दर्ज किया गया।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन के इस प्रशिक्षण केंद्र में रिफ्रेशर, प्रमोशनल व प्रशिक्षु चालक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आते हैं। उनके लिए आवास के मेस की सुविधा भी रखी गई है। प्रतिदिन 100 से 150 चालकों का इस मेस में भोजन पकता है। भोजन पकाते समय सब्ज्यिों से निकले छिलके और भोजन करने के बाद जो जूठन बचता था, उसे नालियों भी बहा दिया जाता था। इससे गंदगी के साथ- साथ बदबू भी आती थी, जिससे प्रशिक्षणार्थी परेशान रहते थे।
बीमारी का भी खतरा बना रहता था। सफाई को लेकर भी माथापच्ची भी होती थी। इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए सालभर से प्रशिक्षण केंद्र प्रबंधन इस व्यवस्था में जुटा था कि कचरे, छिलके व जूठन सभी बाहर फेंकना न पड़े और इसका सदुपयोग हो सके। स्कूल के प्रिंसिपल पीएन खत्री रेलवे की तरफ से पुणे गए थे। वहां उन्होंने इन कचरों का सदुपयोग होते देखा। वापस आने के बाद उन्होंने भी इस लोको प्रशिक्षण केंद्र में बायोगैस संयंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव बनाया।
इसमें यह तय किया गया कि मेस से निकलने वाले सब्जियों के छिलके , जूठन व अन्य कचरों से बायोगैस बनाया जाएगा। इसी गैस से मेस का प्रशिक्षार्थियों के लिए भोजन पकाने का निर्णय लिया गया। योजना अच्छी थी, इसलिए रेल प्रशासन ने सहमति की मुहर लगा दी। 13 लाख खर्च कर अब यह संयंत्र स्थापित हो चुका है। प्रयोग के तौर चार दिन पहले से इसकी शुरुआत कर दी गई है। चार दिन से मेस का आधे से ज्यादा भोजन पक रहा है और उसे प्रशिक्षार्थियों को परोसा जा रहा है।
ऐसे बनता है बायोगैस
लोको प्रशिक्षण केंद्र में स्थापित किचन वेस्ट बेस्ड बायोगैस प्लांट से कुछ इस तरह गैस बनता है। 5 हार्स पॉवर की मिक्सर पोलपर मशीन (पिसाई मशीन ) में तीन रंग के खांचे हैं। हरे रंग में सब्जियों के छिलके, तो नीले रंग के खांचे में जूठन व बचा हुआ खाना और लाल रंग के खाचे के अंदर पॉलीथिन, मिट्टी, कंकड, अंडा, प्याज, लहसून व नारियल के छिलके आदि कचरे का डाले जाते हैं।
यहां से मिक्सप होने के बाद सभी स्टेंडर डिजास्टर बकट टैंक में जाता है। इस टैंक में बायोमेथेनेंथ डिजास्टर, इसके बाजू व पीछे में दो टंकी और होती है, जिसमें जला हुआ अवशेष जमा हो जाता है। बायोमेथेनेंथ डिजास्टर टैंक से किचन तक एक गैस पाइन लाइन, जिसमें तीन चूल्हे फीड किए गए हैं इसे चालू करते ही चूल्हे जलने लगते हैं।
प्रतिदिन 50 से 60 किलो निकलते हैं कचरे
लोको प्रशिक्षण केंद्र से प्रतिदिन 50 से 60 किलो कचरे निकलते हैं। इसमें सब्जियों के छिलके, जूठन, पॉलीथिन, अंडे के छिलके आदि शामिल होते हंै। पहले इन्हें परिसर में डंप करके रखा जाता था। इसकी सफाई के लिए तीन से चार हजार रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ते थे,लेकिन अब परिसर पूरी तरह स्वच्छ रहता है। प्रशिक्षार्थियों द्वारा भी इसे संयंत्र की प्रशंसा की जा रही है।
ये सावधानी जरूरी
मशीन के पास कपड़े, दुपट्टे, साड़ी आदि को खुला न रखे। इससे मशीन में फंसने की आशंका रहती है।
मशीन चलाने के पहले व बाद में पानी से अच्छी तरह सफाई।
हरे रंग के खांचे (बकेट) में रखे गए कचरे को मशीन में डालकर पीसना है।जूठन या बचा खाना सीधे मशीन की टंकी में लगी पाइप में डालना है। कार्य पूरा करने के बाद सभी टंकियों को पानी से सफाई करनी है।
जागरण