विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य
पशुपालन कार्य
वर्ष के विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य (पशुपालन कलेण्डर) इस प्रकार हैं-
अप्रैल (चैत्र)
*1. खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव का टीका लगवायें।
*2. जायद के हरे चारे की बुआई करें, बरसीम चारा बीज उत्पादन हेतु कटाई कार्य करें।
*3. अधिक आय के लिए स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें।
*4. अन्तः एवं बाह्य परजीवी का बचाव दवा स्नान/दवा पान से करें।
मई (बैशाख)
*1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका सभी पशुओं में लगवायें।
*2. पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में खिलायें।
*3. पशु को स्वच्छ पानी पिलायें।
*4. पशु को सुबह एवं सायं नहलायें।
*5. पशु को लू एवं गर्मी से बचाने की व्यवस्था करें।
*6. परजीवी से बचाव हेतु पशुओं में उपचार करायें।
*7. बांझपन की चिकित्सा करवायें तथा गर्भ परीक्षण करायें।
जून (जेठ)
*1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका अवशेष पशुओं में लगवायें।
*2. पशु को [[लू]] से बचायें।
*3. हरा चारा पर्याप्त मात्रा में दें।
*4. परजीवी निवारण हेतु दवा पशुओं को पिलवायें।
*5. खरीफ के चारे मक्का, लोबिया के लिए खेत की तैयारी करें।
*6. बांझ पशुओं का उपचार करायें।
*7. सूखे खेत की चरी न खिलायें अन्यथा जहर वाद का डर रहेगा।
जुलाई (आषाढ़)
*1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका शेष पशुओं में लगवायें।
*2. खरीफ चारा की बुआई करें तथा जानकारी प्राप्त करें।
*3. पशुओं को अन्तः कृमि की दवा पान करायें।
*4. वर्षा ऋतु में पशुओं के रहने की उचित व्यवस्था करें।
*5. ब्रायलर पालन करें, आर्थिक आय बढ़ायें।
*6. पशु दुहान के समय खाने को चारा डाल दें।
*7. पशुओं को खड़िया का सेवन करायें।
*8. कृत्रिम गर्भाधान अपनायें।
अगस्त (सावन)
*1. नये आये पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीकाकरण करवायें।
*2. लिवर फ्लूक के लिए दवा पान करायें।
*3. गर्भित पशुओं की उचित देखभाल करें।
*4. ब्याये पशुओं को अजवाइन, सोंठ तथा गुड़ खिलायें। देख लें कि जेर निकल गया है।
*5. जेर न निकलनें पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
*6. भेड़/बकरियों को परजीवी की दवा अवश्य पिलायें।
सितम्बर (भादौ)
*1. उत्पन्न संतति को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य पिलायें।
*2. अवशेष पशुओं में एच.एस. तथा बी.क्यू. का टीका लगवायें।
*3. मुँहपका तथा खुरपका का टीका लगवायें।
*4. पशुओं की डिवर्मिंग करायें।
*5. भैंसों के नवजात शिशुओं का विशेष ध्यान रखें।
*6. ब्याये पशुओं को खड़िया पिलायें।
*7. गर्भ परीक्षण एवं कृत्रिम गर्भाधान करायें।
*8. तालाब में पशुओं को न जाने दें।
*9. दुग्ध में छिछड़े आने पर थनैला रोग की जाँच अस्पताल पर करायें।
*10. खीस पिलाकर रोग निरोधी क्षमता बढ़ावें।
अक्टूबर (क्वार/आश्विन)
*1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
*2. बरसीम एवं रिजका के खेत की तैयारी एवं बुआई करें।
*3. निम्न गुणवत्ता के पशुओं का बधियाकरण करवायें।
*4. उत्पन्न संततियों की उचित देखभाल करें
*5. स्वच्छ जल पशुओं को पिलायें।
*6. दुहान से पूर्व अयन को धोयें।
नवम्बर (कार्तिक)
*1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
*2. कृमिनाषक दवा का सेवन करायें।
*3. पशुओं को संतुलित आहार दें।
*4. बरसीम तथा जई अवश्य बोयें।
*5. लवण मिश्रण खिलायें।
*6. थनैला रोग होने पर उपचार करायें।
दिसम्बर (अगहन/मार्गशीर्ष)
*1. पशुओं का ठंड से बचाव करें, परन्तु झूल डालने के बाद आग से दूर रखें।
*2. बरसीम की कटाई करें।
*3. वयस्क तथा बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलायें।
*4. खुरपका-मुँहपका रोग का टीका लगवायें।
*5. सूकर में स्वाईन फीवर का टीका अवश्य लगायें।
जनवरी (पौष)
*1. पशुओं का शीत से बचाव करें।
*2. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवायें।
*3. उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें।
*4. बाह्य परजीवी से बचाव के लिए दवा स्नान करायें।
*5. दुहान से पहले अयन को गुनगुने पानी से धो लें।
फरवरी (माघ)
*1. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवाकर पशुओं को सुरक्षितकरें।
*2. जिन पशुओं में जुलाई अगस्त में टीका लग चुका है, उन्हें पुनः टीके लगवायें।
*3. बाह्य परजीवी तथा अन्तः परजीवी की दवा पिलवायें।
*4. कृत्रिम गर्भाधान करायें।
*5. बांझपन की चिकित्सा एवं गर्भ परीक्षण करायें।
*6. बरसीम का बीज तैयार करें।
*7. पशुओं को ठण्ड से बचाव का प्रबन्ध करें।
मार्च (फागुन)
*1. पशुशाला की सफाई व पुताई करायें।
*2. बधियाकरण करायें।
*3. खेत में चरी, सूडान तथा लोबिया की बुआई करें।
*4. मौसम में परिवर्तन से पशु का बचाव करें