अजवाइन की खेती
यह धनिया कुल (आबेलीफेरा) की एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है। इसका वानस्पतिक नाम टेकिस्पर्मम एम्मी है तथा अंग्रेजी में यह बिशप्स वीड के नाम से जाना जाता है। इसके बीजों में 2.5-4% तक वाष्पशील तेल पाया जाता है।अजवाइन(celery seed )खजीज तत्वों का अच्छा स्रोत हैं। इसमें 8.9% नमी, 15.4% प्रोटीन, 18.1% वसा, 11.9% रेशा, 38.6% कार्बोहाइड्रेट, 7.1% खनिज पदार्थ, 1.42% कैल्शियम एवं 0.30% फास्फोरस होता हैं। प्रति 100 ग्राम अजवाइन से 14. 6मी.ग्रा. लोहा तथा 379 केलोरिज मिलती हैं।
औषधीय गुण
अजवाइन के पौधे के प्रत्येक भाग को औषधी के रूप में काम में लाया जाता हैं। अजवाइन पेट के वायुविकार, पेचिस, बदहजमी, हैजा, कफ, ऐंठन जैसी समस्याओं और सर्दी जुखाम आदि के लिए काम में लिया जाता हैं, तथा गले में खराबी, आवाज फटने, कान दर्द, चर्म रोग, दमा आदि रोगों की औषधी बनाने के काम में लिया जाता हैं। अजवाइन के सत को दंतमंजन एवं टूथपेस्ट, शल्य क्रिया में प्रतिरक्षक के तोर पर प्रयोग किया जाता हैं। इसके अलावा यह बिस्कुट फल, सब्जी संरक्षण में काम आता हैं।
जलवायु
उत्तरी अमेरिका, मिस्त्र ईरान, अफगानिस्तान तथा भारत में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्य्प्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिसों में अजवाइन की व्यावसायिक खेती की जाती हैं। अजवाइन की बुवाई के समय मौसम शुष्क होना चाहिए। अत्यधिक गर्म एवं ठंडा मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता हैं। अजवाइन पाले को कुछ स्तर तक सहन कर सकती हैं।
राजस्थान राज्य में इसकी खेती 15483 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती हैं जिससे 5450 टन उत्पादन एवं 352 की.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती हैं (वर्ष 2009-10 के अनुसार)। इसकी खेती मुख्यतः चित्तौडगढ, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, भीलवाड़ा एवं कोटा में की जाती हैं।
अजवाइन कम लागत की मसाला फसल हैं तथा इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए यदि उन्नत तकनीकी से खेती की जाये तो इसके उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों में वृद्धि की जा सकती हैं। इसके लिए ध्यान देने योग्य बिंदुओं का विवरण इस प्रकार से हैं:-
उन्नत किस्में
लाम सलेक्शन-1
135 से 145 दिन में पक कर तैयार होने वाली इस किस्म की औसत उपज 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती हैं।
लाम सलेक्शन-2
इसके पौधे झाड़ीदार होते हैं इसकी औसत उपज 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।
आर.ए. 1-80
यह किस्म 170-180 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। दाने बारीक़ परन्तु अधिक सुगंधित होते हैं इसमें 10-11 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती हैं। इस किस्म पर सफेद चूर्णिल आसिता रोग का प्रकोप अधिक रहता हैं।
भूमि
अजवाइन एक रबी की मसाला फसल हैं। इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिटटी सर्वोत्तम होती हैं। सामान्यतः बलुई दोमट मिटटी जिसका पि.एच. मान 6.5 से 8.2 तक है, में अजवाइन सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। जहां भूमि में नमी कम हो वहां सिंचाई की व्यवस्था आवश्यक हैं।
खेती की तैयारी
खेत तैयार करने के लिए मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें तथा इसके बाद 2 जुताई देशी हल से कर खेत को भली-भांति तैयार करें। अजवाइन का बीज बारीक़ होता हैं। अतः खेत की मिट्टी को अच्छी तरह भरभूरा होने तक जुताई करें।
खाद एवं उर्वरक
अजवाइन की भरपूर पैदावार लेने के लिए 15-20 दिन पूर्व 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिलाए। उर्वरक के रूप में इस फसल को 20 किग्रा. नत्रजन, 30 किग्रा फास्फोरस एवं 20 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देवें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पूर्व खेत में डाल देवें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के लगभग 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में देवें।
बीज दर एवं बुवाई
अजवाइन की बुवाई का उचित समय सितम्बर से नवम्बर होता है। इसे छिड़काव या क़तर विधि से बोया जाता है। एक हेक्टेयर के लिए 4-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छिड़काव विधि के लिए बीजों को इसकी बीज दर से आठ से दस गुना बारीक छनि हुई मिट्टी के साथ मिलाकर बुवाई करे इससे बीज दर सही रखने में मदद मिलती है। कतारों में बुवाई करना ज्यादा उपयुक्त है। इस विधि में कतार से कतार की दुरी 30-40 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दुरी 15-25 से.मी. रखें। इसमें बीजों का अंकुरण 10-15 दिनों में पूर्ण होता है।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई
अजवाइन की फसल काफी हद तक सूखा सहन कर सकती है। इसका सिंचित और असिंचित दोनों ही परीस्थितियों में उत्पादन किया जा सकता है। सामान्यतया अजवाइन के लिए 2-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जब पौधे 15-20 से.मी. तक बड़े हो जाये तब पौधों की छंटाई करके पौधे से पौधे की दुरी में पर्याप्त अंतर रखें। फसल में जल निकासी की भी उचित व्यवस्था करे ताकि पौधों को उचित बढ़वार के लिए पर्याप्त स्थान एवं वातावरण मिल सके।
फसल कटाई एवं उपज
कटाई की उपयुक्त अवस्था में फसल पीली पड़ जाती है तथा दाने सुखकर भूरे रंग के हो जाते है। अजवाइन की फसल लगभग 140-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कटाई पश्चात फसल को खलिहान में सुखावें तथा बाद में गहाई और औसाई की जाय। साफ बीजों को 5-6 दिन सूखा कर बोरों में भर कर भंडारण करे।
अजवाइन का फसल में प्रमुख रोग
छाछया रोग
इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर इसे 15 दिन बाद दोहरायें।
झुलसा रोग
इस रोग के लक्षण में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनते है एवं अधिक प्रकोप में पत्तियां झुलस जाती है। इस रोग के रोकथाम हेतु मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें। जरुरत होने पर दूबर छिड़काव करें।
उपज
सामन्यतः एक हेक्टेयर में अजवाइन की उपज 10-12 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त होती है। अजवाइन बहुउपयोगी होने के साथ विदेशों में विक्रय कर विदेशी मुद्रा कमाने का अच्छा स्रोत है।
अगर किसान भाई अजवाइन की खेती संबंधित मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रखकर खेती करें तो अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। साथ ही वह कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते है।