जैविक खेती करने के तरीके
परिक्रमण :-
एक ही क्षेत्र में वर्ष दर वर्ष एक ही प्रकार की फसल उगाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है और मिट्टी में कीट, रोग और घास-फूस की पैदावार को बढ़ावा देता है. फसल को हर साल अलग-अलग जगह पर ले जाना चाहिए और वापिस से मूल क्षेत्र में कई सालों तक वापिस नही ले जाना चाहिए. सब्जियों के लिए कम से कम ३-४ साल का परिक्रमण की सिफारिश की गयी है.
फसल परिक्रमण का मतलब है जहा मिट्टी की उर्वरता बढाई जाती है. विभिन्न प्राकृतिक शिकारियों को भी यह मदद करता है, उनके लिए विविध निवास और भोजन स्त्रोत उपलब्ध कराके ताकि वो खेत पर जीवित रह सके.
खाद :-
- खाद वो जैविक सामग्री है ( पौधे और जानवरों का अवशेष ) जो की बक्टेरिया और अन्य जीवाणुओ से लम्बे समय तक सडा कर बनाया गया है. सामग्री जैसे पत्ते, फलों का छिलका और जानवरों का खाद से खाद बनाया जाता है ! खाद सस्ता, आसानी से बनाया जाता है और बहुत प्रभावशाली सामग्री है जो की मिट्टी में मिलाया जाता है और मिट्टी और फसल की गुणवत्ता को सुधारता है !
- खाद मिट्टी की संरचना को सुधारता हैं और अधिक हवा को अनुमति देता है, जल निकासी को सुधारता है और कटाव को कम करता है !
- मिट्टी में पौषक तत्त्व बढाकर और पौधों की ग्रहण क्षमता बढाकर यह मिट्टी की उर्वरता क्षमता बढाता है ! इस तरह ज्यादा बेहतरीन पैदावार होती है !
- खाद मिट्टी की पानी ग्रहण करने को क्षमता सुधारता है !
- खाद का रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कई फायदे है! यह मिट्टी की संरचना नहीं सुधारते जबकि पौधों को पोषक तत्त्व प्रदान करते है! ये आमतौर पर पैदावार उसी मौसम में बढ़ाते है जिस समय इनका प्रयोग किया जाता है ! क्योंकि खाद मिट्टी के जीवन को आहार देता है और उसकी संरचना सुधारता है, औरे इसके लाभदायक प्रभाव लम्बे समय तक रहते है !
पलवार करना :-
पलवार का मतलब है खाद, सुखी घास, पत्ते या फसलो के अवशेष से सतह के उपर एक परत बनाना! सामान्य रूप से ग्रीन वनस्पति का इस्तेमाल नहीं किया जाता क्योंकि विघटन होने के लिए यह लम्बा समय लेती है और कीट व कवक के रोगों को आकर्षित करती है ! पलवार का मिट्टी पर कई फायदे होते है जो की पौधों के विकास के लिए सहायक होते है.
- वाष्पीकरण द्वारा पानी के घटाव को कम करता है !
- प्रकाश की मात्रा को कम करके, घास की वृद्धि को कम करना !
- भू- क्षरण का निषेध करना .
- मिट्टी में पौषक तत्वों को जोड़ना और मृदा संरचना को सुधारना !
- मिट्टी में जैविक पदार्थ जोड़ना !
- वैकल्पिक पलवार करने की सामग्री में काले प्लास्टिक की चादर और गत्ता आते है ! जबकि ये सामग्रियाँ मिट्टी में पौषक तत्त्व और उसकी संरचना को नहीं सुधारते !
ग्रीन खाद :-
ग्रीन खाद जो की अक्सर कवर फसलो के रूप में जाने जाते है, वह पौधे है जो की मिट्टी की संरचना, जैविक और पौषक तत्त्व सुधारने के लिए उगाये जाते है ! ये कृत्रिम उर्वरकों के बदले एक सस्ता विकल्प है और पशु खाद के पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है! ग्रीन खाद उगाना उतना आसान नहीं जितना की एक फलीदार फसल जैसे बिन्स को उगाना! पौधे जब युवा अवस्था में रहते है, कोई फसल या फूल पैदा करने से पहले ग्रीन खाद को खोधकर लगाया जाता है ! ये अपनी हरी पत्तेदार सामग्री के लिए उगाये जाते है, जो की पोषक तत्वों मे उच्च मृदा परत प्रदान करते है ! ये फसलो के साथ या अकेले भी उगाये जा सकते है !
- पोधो के पौषक तत्त्व और जैविक तत्त्व का पुन:चक्रण और बढ़ोतरी!
- मिट्टी की उर्वरता को सुधारना!
- पानी के ग्रहण क्षमता को बढ़ाना!
- भु:रक्षण का नियंत्रण करना !
- घास - फूस का निषेध करना !
- यह मिट्टी से पौषक तत्त्वों का बह जाने को निषेध करता है, उद्हारण के रूप मे जब भूमि का प्रयोग मुख्य फसलो के लिए किया नहीं जा रहा है !
खरपतवार का नियंत्रण :-
जैविक खेती पद्धति का लक्ष्य यह नहीं की खरपतवार का उन्मूलन बल्कि उसका नियंत्रण है ! खरपतवार नियंत्रण का मतलब फसल की वृद्धि और पैदावार पर इसके असर को कम करना ! जैविक खेती, औषधि नाशको नाशक का त्याग करता है, जैसे कीटनाशक जो पर्यावरण मे पर्यावरण मे हानिकारक अवशेष छोड़ते है! औषधि नाशको द्वारा लाभप्रद पौधे जैसे मेजबान पौधे का जीवन उपयोगी कीटो के लिए भी नष्ट हो जाता है !
- एक जैविक खेत में, खरपतवार कई तरीको से नियंत्रित किया जाता है :-
- फसलो का परिक्रमण !
- फावड़े के प्रयोग से !
- पलवार से, जो मिट्टी को ढकती है , और खरपतवार के बीजो को पैदा होने से रोकती है !
- फसलो का बहुत पास में रोपण करे ताकि खरपतवार को उभरने के लिए जगह भी न मिले !
- ग्रीन खाद और कवर खाद का इस्तेमाल ताकि खरपतवार को प्रतिस्पर्धा दे सके !
- जब मिट्टी में नमी रहती है उस समय पर मिट्टी की जुताई करना और ध्यान रखना चाहिए की जुताई से भू-रक्षण ना हो!
- जानवरों को खरपतवार चराया जाता है !
- खरपतवार का कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है, जैसे ये भू-क्षरण से रक्षा करते है, जानवरों और लाभदायक कीटको के लिए खाना और इंसानों के लिए उपयोगी खाने की पैदावार करते है !
प्राकृतिक रूप से नियंत्रण :-
- जैविक किसान कई तरीको से कीट और रोगों का नियंत्रण करते है, जैसे :-
- स्वस्थ फसलो का रोपण जिन्हें कीट और रोगों से कम नुकसान होता है !
- एसी फसलो का चयन करना जिनमे कुछ कीट और रोगों के लिए प्राकृतिक प्रतिरोध क्षमता है, स्थानिक प्रकार बेहतर होते है कीट और रोगों का प्रतिरोध करने में!
- फसल का रोपण करना उस समय के लिए जिस समय कीट सबसे ज्यादा हानी पहुचाता है !
- किटो को रोकने के लिए फसलो के साथ सहयोगी फसलो का रोपण जैसे प्याज या लहसुन.
फसलो से किटो को उठाना और फ़साना :-
- किट और रोगों को सही से पहचानना इससे किसान अपना समय बरबाद होने से और अनजाने मै लाभदायक किटो को मरने से भी बच सकता है. इसलिए किटो का जीवन चक्र, प्रजनन की आदते, पसंदिदा मेजबान पौधे और कीट के शिकारियों की जानकारी रहना लाभप्रद है!
- कीट के जीवन चक्र को और अगले मौसम तक उसका निषेध करने के लिए फसलो का परिक्रमण करना !
- कीट का नियंत्रण करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों को प्रोत्साहित करने के लिए प्राकृतिक निवास उपलब्ध करना, ऐसा करने के लिए किसान को ऐसे कीड़े और जानवरों की पहचान करनी सीखनी चाहिए जिससे कीट पर नियंत्रण कर सके.
सावधानीपूर्वक नियोजन और अन्य मौजूद तरीको के इस्तेमाल के द्वारा फसल छिडकाव को दूर रखना. यदि कीट फिर भी समस्या कर रहे है तो इनके प्रबंधन के लिए प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनसे मिर्च, प्याज, लहसुन या नीम से बनाये हुए स्प्रे भी शामिल है! आगे की जानकारी एच.आर.डी.ए. से प्राप्त की जा सकती है! इन प्राकृतिक कीटनाशको के इस्तेमाल के बावजूद भी इनका इस्तेमाल सिमित होना चाहिए और ज्यादा सुरक्षित वालो का इस्तेमाल होना चाहिए! यह बुद्धिमानी होगा अगर इन्हे हम राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय मानको से जाँच ले!
अनुवांशिक विविधता :-
एक फसल के पौधो में भी कई मतभेद हो सकते है, उदाहरण के रूप में वो लम्बाई और रोगों के प्रतिरोध करने की क्षमता में भिन्न हो सकते है! ये भेद अनुवांशिक है! किसानो द्वारा परंपरागत फसले आधुनिक फसलो की तुलना में अधिक से अधिक अनुवांशिक विविधता होती है! कई सदियों से किसानो की अपेक्षाए पूरी करने के लिए परंपरागत किस्मो को चुना गया है! जबकि कई आधुनिक किस्मो से बदले जा चुके है, जबकि स्थानिक रूप से बीज को आज भी बचाया जा रहा है!
फसले जो आधुनिक तरीको से प्रजनन है काफी हद तक एक जैसी होती है! जबकि कुछ आधुनिक प्रकार कुछ विशिष्ट कीट और रोगों के प्रतिरोध होती है! इसलिए यह खतरनाक हो सकता है उनमे से किसी एक पर निर्भर होना! जैविक पद्धति मै एक फसल के अलग - अलग पौधो में कुछ भिन्नताए या अनुवांशिक विविधता होना लाभदायक है! एक फसल पर निर्भर होने के बजाये अलग-अलग फसले उगाना महत्वपूर्ण है! यह कीट और रोगों से सुरक्षा करने में मदद करता है और असाधारण मौसम जैसे सुखा या बाढ़ के समय सुरक्षा का मदद करता है!
इसे याद रखना उस समय जरुरी है जब चुना जा रहा हो कौन-सी फसल उगानी है!
एक जैविक किसान को कोशिश करनी चाहिए :-
- एक ही क्षेत्र में मिश्रित फसलो की पैदा करना (मिश्रित फसल , अंतर- फसल, पट्टीदार खेती)
- एक ही फसल के भिन्न प्रकार उगाना.
- खेत के बाहर से बीज को खरीदने की बजाये, स्थानिक और सुधरी हुई फसल की किस्मो के बीज को जमा करना!
- दुसरे किसानो से बीज के बदलाव से विविधता बढती है, कई पारंपरिक फसलो की अस्तित्व को सुनिश्चित करता है जो की ख़त्म हो गए थे!
पानी का सावधान उपयोग :-
- शुष्क भूमि में पानी का सावधान प्रयोग जैविक खेती का उतना ही हिस्सा है जितना की बाकि तकनीके, बाकि संसाधनों की तरह, जैविक किसानो उस पानी का इस्तेमाल करना चाहिए जो की स्थानिक रूप से उपलब्ध है!
- कई तरीको से पानी का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाता है, जैसे :-
- सीढ़ीदार स्थान, बारिश के पानी से बनाये हुए बेसिन या जलग्रहण और सावधानी पूर्वक सिंचाई.
- मिट्टी में जैविक पदार्थो को मिलाना ताकि उसकी पानी ग्रहण करने की क्षमता सुधरी जा सके.
- मिट्टी की सतह को सुखाने और बहुत अधिक जमा होने से रोकने के लिए पलवार के प्रयोग से मिट्टी में पानी के ग्रहण करने की क्षमता बनाये रखना!
पशु - पालन :-
- एक जैविक पद्धति में, जानवरों की देखभाल करना महत्त्वपूर्ण माना जाता है!
- जानवरों को सिमित जगह में नहीं रखना चाहिए जहा वो अपना प्राकृतिक आचरण जैसे खड़े होना और अपर्याप्त जगह में इधर-उधर घुमाना!
- जानवरों के लिए खाना जैविक तरीके से पैदा करना चाहिए!
- स्थानीय जरूरते, हालात और स्त्रोतो के अनुकूल नसले चुनी जानी चाहिए ताकि पशुधन स्वस्थ रोगों का बेहतर प्रतिरोध और किसानो के लिए अच्छी पैदावार का आश्वासन रहे!