लोबिया की उन्नत खेती

जलवायु लोबिया वर्षा तथा ग्रीष्म ऋतू में उगाई जाने वाली फसल है , दक्षिणी भारत में इसकी खेती रबी मौसम में भी की है जाती , लोबिया में मक्का की अपेक्षा सूखा तथा गर्मी को सहन करने की क्षमता अधिक होती है , इसकी खेती के लिए ट्रोपिकल तथा सब - ट्रोपिकल जलवायु उत्तम रहती है , इसकी खेती के लिए 12-15 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अनुकूल रहता है , फसल की समुचित बढ़वार के लिए 27-35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अनुकूल रहता है , लोबिया की वृद्धि पर पाले तथा कम तापक्रम का बुरा प्रभाव पड़ता है 
भूमि इसकी खेती के लिए हलकी भूमियाँ उपयुक्त रहती है , उचित वृद्धि तथा बढ़वार के लिए दोमट तथा मटियार दोमट भूमियाँ जिसकी मृदा 7.5 तक हो , उपयुक्त रहती है , भूमि जल निकास युक्त होनी चाहिए , क्षारीय तथा अम्लीय म्रदाएं इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त हैं अभिक्रिया . 
भूमि की तैयारी - दोमट भूमि उपयुक्त होती है , खेत समतल तथा उचित जल निकास वाला होना चाहिए , एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो जुताइयाँ देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करनी चाहिए . 
प्रजातियाँ 
टाइप -2 : -
 फसल अवधि 125-130 दिन , पौधा फलने वाला , उपज क्षमता 12-18 क्विं / 0 हैक उत्तर प्रदेश के मैदानी खेत्रों के लिए उपयुक्त . 
पूसा बरसाती - अगेती बौनी किस्म , पहली फलत 45 दिन की अवस्था में आ जाती है , जून - जुलाई में बोवाई हेतु सर्वोत्तम किस्म , उपज क्षमता 12-15 क्विं / 0 हैक , पंजाब , दिल्ली , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश तथा दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों के लिए उपयुक्त . 
पूसा फाल्गुनी - पौधे बौने तथा झाड़ीनुमा होते हैं , फसल अवधि 60-70 दिन , फरवरी - मार्च में बोवाई के लिए उपयुक्त , दाने सफेद रंग के , छोटे तथा बेलनाकार , उपज 10-12 क्विं / 0 हैक , मध्य प्रदेश , दिल्ली , पंजाब , हरियाणा के लिए उपयुक्त . 
पूसा दो फसली - पौधा छोटा व झाड़ीनुमा , फसल अवधि 70-80 दिन , इसके दाने पूसा फाल्गुनी से कुछ बड़े तथा धब्बेदार होते हैं , यह प्रकाश - असंवेदनशील किस्म है , उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 हैक . 
पूसा ऋतुराज - यह किस्म ग्रीष्म तथा वर्षा दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है , फलियों की पहली फलत बोवाई 40-45 दिन पर आ जाती है , उपज 10-12 क्विं / 0 हैक क्षमता , भारत के अधिकाँश भागों के लिए उपयुक्त किस्म उत्तरी के . 
पूसा कोमल - यह लोबिया की नई प्रजाति है , यह किस्म नई दिल्ली से विकसित की गई है , यह सब्जी तथा दानों के लिए है उपयुक्त . 
सी -152 : - फसल अवधि 105-110 दिन , खरीफ की बोवाई के लिए उपयुक्त , उपज क्षमता 15-20 क्विं / 0 हैक , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , बिहार , दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , महाराष्ट्र तथा जम्मू कश्मीर में शुद्ध तथा मिक्स्ड क्रोपिंग के लिए उपयुक्त है . 
-68 एफ.एस. : - यह किस्म पूसा दो फसली की अपेक्षा लगभग एक सप्ताह देर से पकती है , यह बसंत ऋतू के लिए उपयुक्त है , सब्जी तथा दाने के लिए उपयुक्त , उपज 10-12 क्विं / 0 हैक . 
अम्बा - यह किस्म खरीफ के लिए उपयुक्त है , फसल अवधि 95-100 दिन है , दाने का रंग लाल होता है , यह कवक तथा जीवाणुओं से उत्पन्न होने बीमारियों वाली के प्रतिरोधक तथा विषाणु रोगों के लिए सहनशील किस्म है , इसके दाने की उपज क्षमता 25-28 क्विं / 0 हैक है . 
स्वर्ण - यह किस्म अम्बा से जल्दी पकती है , इस किस्म की विशेषता है की फली का डंठल काफी लंबा होता है और सारी फलियाँ फसल के ऊपर रहती है जिस कारण फलियाँ पकने पर आसानी से तोड़ी जा सकती है , दाने की उपज 23-24 हैक क्विं / तक होती है , फसल 110 दिन अवधि , यह किस्म 15 जून से 10 जुलाई तक बोई जाती है , दाना गहरे लाल रंग का होता है , उपज क्षमता 34 क्विं / 0 हैक है यह सबसे अधिक उपज देने वाली लोबिया की किस्म है . 
चारे के लिए उपयुत : किस्में - रशियन जोइंट , 10 सिरसा , यु पी . , सी .- 278 , यू.पी.सी. 5286 , के .- 397 , जवाहर -1 लोबिया , जवाहर लोबिया -21 . 
बीज बोवाई 
बोवाई का समय -
 लोबिया की बोवाई वर्षा प्रारम्भ होने पर जुलाई में करें . 
बोवाई - दाना व हरी फलियों के लिए बोवाई पंक्तियों में करनी चाहिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 सेमी तथा चारे तथा हरी खाद के लिए लोबिया की बोवाई छिटककर करनी चाहिए . 
खाद खाद का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा , बुबाई के समय 35 किलो फॉस्फोरस, 25 किलो नाइट्रोजन ,15 किलो पोटाश के साथ 2 किलो एकड़ का साडावीर का प्रयोग करें। फ़सल के उगने पर या बुबाई के 25 दिन बाद साडावीर फंगस फ़ाइटर और 1 किलो इफको18 18 18 का स्प्रे करें।बुबाई के 40 से 45 दिन में साडावीर 4G और इफ्को 0 52 34 का स्प्रे करेँ।बुबाई के 60 दिन में साडा वीर फंगस फ़ाइटर और 0 0 50 का स्प्रे श्रेष्ठ उपज देता है।
सिंचाई वर्षा ऋतू की फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है लेकिन जल निकास अच्छा होना चाहिए . बसंत कालीन फसल के लिए 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है , सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए . भूमि में 50 प्रतिशत नमी रहने पर सिंचाई करनी चाहिए . 
खरपतवार नियंत्रण लोबिया की खेती सिंचित क्षेत्रों में किये जाने के कारण खरपतवार भी अधिक उगते हैं जिससे फसल को काफी हानि पहुँचती है . औसतन इस फसल में खरपतवार नियंत्रण न करने से 25-30 पैदावार प्रतिशत कमबोवाई के 30-35 दिन बाद निराई करने से लोबिया में खरपतवारों का नियंत्रण भलीभांति आती है . हो जाता है . 
लोबिया में लगने वाले प्रमुख कीट 
माहू -
 यह कीट झुंडों में पौधों पर चिपका रहता है तथा पत्तियों , फलियों से रस चूसकर फसल को हानि है पहुंचाता . 
फली : बेधक - इसकी सूंदियाँ फली के दाने को अन्दर से खाकर नुक्सान पहुंचाती है . 
फली : beetil - यह कीट जायद फसल के अंकुरण के बाद अपना प्रभाव दिखाता है , इससे पत्तियों में छेद होने से पौधा सूख जाता है . 
कीट नियंत्रण 
 

  • 5 लीटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे 15 चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें , इस घोल को बीजों पर डालकर भिगो दें तथा 2 घंटे तक रखा रहने दें उसके बाद बोवाई करें . यह 1 एकड़ घोल की बोवनी के बीजों के लिए पर्याप्त है .
  • 5 देशी गाय के गौमूत्र में बीज भिगोकर उनकी बोवाई करें , ओगरा और दीमक से पौधा सुरक्षित रहेगा लीटर .
  • ओगरा या दीमक से बचाव हेतु बोवाई करने से पहले बीजों को कैरोसिन से उपचारित करें .
  • 250 मिली नीम ( नीम पानी बनाने के लिए 25 किलो नीम की पत्तियों को अच्छी तरह से पीसकर 50 लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक की 20-25 पानी लीटर न रह जाए पानी , उसके बाद उसे उतारकर छानकर उपयोग करें ) को 25 मिली माइक्रो झाइम साथ अच्छी तरह मिलाकर उपयोग करें एवं सुपर 1 गोल्ड मैग्नीशियम 1 किग्रा 45 रु प्रति बैग 200 लीटर पानी में घोलकर माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से - तर बतर कर छिडकाव करें .
  • 500 ग्राम लहसुन , 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च लेकर बारीक पीसकर 150-200 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिडकाव करें इससे इल्ली . रस चूसक कीड़े नियंत्रित होंगे .
  • बेशरम के पते 3 किलो एवं धतूरे के फल तोड़कर 3 3 लीटर पानी में उबालें , आधा पानी शेष बचने पर उसे छान लें , इस पानी में 500 ग्राम चने डालकर उबालें . ये चने चूहों के बिलों के पास शाम के समय डाल दें , इससे चूहों से निजात मिलेगी .

लोबिया की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग 

मोजैक - इसके लक्षण पत्तियों पर पीले और हलके धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं , यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है जिसे नियंत्रित कर इस रोग से निपटा जा सकता है .

रोग नियंत्रण 
बीमारी आने पर इलाज करने से अच्छा है की बीमारी आने ही न दें इसलिए किसान को फसल में हर 15 दिन बाद नीम पानी माइक्रो झाइम मिलाकर छिडकाव करते रहना चाहिए . अगर रोग आ ही गया है तो उस फसल को तत्काल उखाड़कर जला देना चाहिए और तत्काल हर हफ्ते नीम पानी और झाइम का छिडकाव करते रहना चाहिए जब तक फसल रोगमुक्त न हो जाए . रोगमुक्त , विषमुक्त और तंदुरुस्त बीज की बोवनी करनी चाहिए . अगर किसान ओरगेनिक खेती कर रहा है तो उपरोक्त बीमारियाँ आने का चांस ही नहीं है . उपरोक्त सभी रोग बाजारवाद , रासायनिकरण , किसानों की अकर्मण्यता द्वारा पैदा किये गए है . अगर रोग पैदा ही नहीं होंगे तो बाजार को कौन पूछेगा इसलिए पहले रोग पैदा किया जाता है फिर उसका इलाज बताया जाता है . इस तरह से किसानों लूटने का यह नया फंडा है . रोग होगा तो फसल डॉक्टर , फसल वैज्ञानिक , दवा कंपनी , दवा दूकान आदि का जन्म होता है अतः किसान अपने खेतोँ से तंदुरुस्त फसल की छटाई कर अपना बीज खुद तैयार करें , बाजार से हमेशा दूर रहे तो लुटने से बच है सकता .

तुड़ाई

फसल बोवाई के 2 माह बाद तैयार हो जाती है , फसल तैयार हो जाने पर फल 2-3 दिन के अंतर पर 2 माह की अवधि तक तोड़े जा सकते हैं .

उपज

आमतौर पर 50-60 क्विन 0 हरी फलियाँ अथवा 12-15 क्विं दाने अथवा 250-300 क्विं / 0 हैक चारा उद्देश्य के अनुसार मिल जाता है .

organic farming: 
जैविक खेती: