गुलाब की जैविक उन्नत खेती,
जलवायु :-
यद्धपि इसके फूल साल भर प्राप्त होते है लेकिन जाड़े की ऋतु में उच्च गुणवत्ता वाले एवं आकार में बड़े पुष्प प्राप्त होते है इसके फूलने का मुख्य समय मार्च माह है लेकिन कम तापमान होने पर अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक अधिक संख्या में फूल आते रहते है फूलों की उत्तम पैदावार के लिए प्रचुर मात्रा में धुप व आर्द्रता वाली जलवायु उपयुक्त रहती है |
भूमि :-
उचित व्यवस्था करके गुलाब की खेती सभी प्रकार की भूमियों में भली-भांति की जा सकती है लेकिन उचित जल निकास युक्त जीवांश पदार्थों की धनी बलुई दोमट से दोमट भूमि , जिसका पी.एच. मान ६-७.५ गहरी जुताइयां करके पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए |
क्यारियों की तैयारी एवं गड्डों की खुदाई :-
खेत की जुताई के बाद तैयार करके क्यारियों में विभक्त कर लेते है फिर मई-जून माह में ५०-६० से.मि. गहरे गड्डों की उचित दुरी पर खुदाई करके १०-१२ दिन के लिए खुला छोड़ देते है जिससे मिटटी में उपस्थित कीड़े-मकोडे फफूंदी व खरपतवार इत्यादि नष्ट हो जाते है १०-१२ दिन बाद इन गड्डों में २५-३० से. मि. की मोटाई में गोबर की खाद डालकर उसके बाद ऊपर से बाहर निकाली हुई मिटटी को पुन: भर देना चाहिए सबसे ऊपर की १०-१५ से.मि. मोटी पर्त में पुन: गोबर की खाद डालकर गुड़ाई कर देते है इसके बाद तैयार गड्डों में पौधों को रोपित कर देते है |
प्रजातियाँ :-
गुलाब की किस्मों को निम्न ५ वर्गों में विभक्त किया जाता है -
हाईब्रिड टी :-
यह बड़े फूलों वाला महत्वपूर्ण वर्ग है इस वर्ग के पौधे झाड़ीनुमा लम्बे होते है इनकी विशेषता यह है की प्रत्येक शाखा पर एक फूल निकलता है जो अत्यंत सुन्दर होता है हालाँकि कुछ ऐसी किस्मे भी है जिनमे छोटे समूह में भी फूल आगते है अधिक पाला पड़ने की स्थिति में कभी-कभी पौधे मर जाते है इस वर्ग की प्रमुख किस्मे है एम्बेसडर अमेरिकन प्राइड , बरांडा , डबल, डिलाईट, फ्रेंडशिप , सुपरस्टार , रक्त गंधा , क्रिमसनग्लोरी, अर्जुन, फस्टे रेड, रक्तिमा , और ग्रांडेमाला आदि |
फ्लोरीबंडा :-
इस वर्ग में आने वाली किस्मों के फूल हाइब्रिड टी किस्मों की तुलना में छोटे होते है और अधिक संख्या में कम लगते है इस वर्ग की प्रमुख किस्मे है - जम्बरा अरेबियन नाइट्स, रम्बा वर्ग , चरिया, आइसवर्ग, फर्स्ट एडिसन , लहर, बंजारन , जन्तर-मंतर , सदाबहार , प्रेमा और अरुनिमा आदि |
पोलिएन्था :-
इस वर्ग में आने वाली किस्मों के पौधे और फूलों का आकार हाइब्रिड डी एवं फ्लोरिबंडा वर्ग से छोटा होता है लेकिन गुच्छा आकार में फ्लोरी बंडा वर्ग से भी बड़ा होता है जैसे - चट्टीलौंन व ईको आदि छोटे आते है जो गुच्छों में लगते है एक गुच्छों में कई फूल होते है |
मिनिएचर :-
इस वर्ग में आने वाली किस्मों को बेबी गुलाब, मिनी गुलाब या लघु गुलाब के नाम से जाना जाता है पौधे छोटे होते है जिनकी पत्तियां और और फूल दोनों ही छोटे होते है इन्हें गमलों में या खिडकियों के सामने की क्यारियों में सुगमता से उगाया जा सकता है इसकी प्रमुख किस्मे है क्रिकी , लालीपाप , नटखट, पिक्सी, बेबलीगोल्ड स्टार, बेबी मेसकेरड , क्रिको आदि |
लता गुलाब :-
इस वर्ग में कुछ हाइब्रिड टी फ्लोरिबंडा गुलाबों की शाखाएँ लताओं की भांति बढ़ती है जिसके कारण उन्हें लता गुलाब की संज्ञा दी जाती है इन लताओं पर लगे फूल अत्यंत सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करते है इसकी प्रमुख किस्मे है - कासिनो, प्रोस्पेरिटी , मार्शलनील , क्लाइबिंग, कोट टेल आदि |
नवीनतम किस्मे :-
पूसा गौरव , पूसा बहादुर , पूसा प्रिया , पूसा बारहमासी , पूसा वीरांगना , पूसा पीताम्बर , पूसा गरिमा , और डा भरत राम |
पौध रोपण :-
पौध रोपण की दुरी :-
गुलाब के पौधे औसतन ४५-६० से.मि. की दुरी पर लगाए जाते है लेकिन विशेष प्रजाति के अनुसार यह दुरी कुछ कम या अधिक भी हो सकती है सामान्यत: पोलिएन्था समूह की किस्मों को ४५ से.मि. की दुरी पर जबकि मिनीएचर समूह की किस्मों को ३०-35 से. मि. की दुरी पर लगाया जाता है व्यावसायिक किस्मो को व कट फ्लावर के लिए उगाये जाने की दशा में ६० गुणा ३० से.मि. की दुरी पर रोपाई करना उत्तम पाया गया है |
आर्गनिक खाद :-
गुलाब की फसल में फूलों का अच्छा उत्पादन निकालने के लिए उसमे पर्याप्त मात्रा में आर्गनिक खाद , कम्पोस्ट खाद का होना नितांत आवश्यक है इसके लिए एक एकड़ भूमि में ३५-४० क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद और आर्गनिक खाद २ बैग भू-पावर वजन ५० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट वजन ४० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो नीम वजन २० किलो ग्राम , २ बैग सुपर गोल्ड कैल्सीफर्ट वजन १० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो भू-पावर वजन १० किलो ग्राम और ५० किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर खेत में बुवाई या रोपाई से पहले खेत में समान मात्रा में बिखेर लें और जब फसल २५-३० दिन की हो जाए तब उसमे २ बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम वजन १ किलो ग्राम और माइक्रो झाइम ५०० मि.ली. को ४००-५०० लीटर पानी में घोलकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर पम्प द्वारा फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और दूसरा व तीसरा छिड़काव हर १५-२० दिन के के अंतर से करें |
सिचाई :-
पहली सिचाई पौध लगाने के तुरंत बाद करना आवश्यक होता है उसके बाद मौसम के अनुसार पौधों की सिचाई करना चाहिए ग्रीष्म काल में प्रति सप्ताह एक बार व शीतकाल में १५ दिन में एक बार सिचाई करना उपयुक्त है कृंतन करने के समय पौधों को आराम देने के लिए सिचाई बंद कर देनी चाहिए |
निराई-गुड़ाई :-
पौधों की कटाई-छटाई के बाद नवम्बर से जनवरी तक २-३ बार निराई गुड़ाई कर देने वाली शाखाएँ अधिक संख्या में निकलती है इसके बाद आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करके फसल को खरपतवारों से बचा लेते है |
कीट नियंत्रण :-
माहू या चैंपा :-
ये कीड़े आकार में छोटे हरे रंग के कालापन लिए हुए जो अधिकांशत: जनवरी फरवरी माह में लगते है यह फूलों व पत्तियों का रस चूसकर पौधे को सौन्दर्य हीन बना देते है प्रभावित पौधों के प्ररोह मुरझा जाते है तथा पुष्प कलिकाएँ गिर जाती है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली. प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
शल्क कीट :-
पौधों के तनों मुख्य जड़ के आसपास वाली शाखाओं पर आधी संख्या में पाए जाने वाले लाल भूरे रंग के यह कीट मार्च-अप्रैल एवं अगस्त-नवम्बर तक अधिक सक्रिय रहते है यह कीट पौधों की पत्तियों को विकृत बना देते है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली. प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
रोग नियंत्रण :-
डाईबैक :-
कांट-छाँट की गई शाखाओं पर ऊपर से नीचे की ओर काला पड़ जाना ही उस रोग की प्रमुख पहचान है पौधों में इस रोग के लक्षण दिखाई पड़ते है|
रोकथाम :-
रोग से ग्रसित शाखाओं को काटकर उस पर गाय के ताजे गोबर का लेप लगा देना चाहिए |
पाउडरी मिल्डयू :-
हवा में नमी कम होने पर फ़रवरी-मार्च में नई शाखाओं की पत्तियां सफ़ेद रंग की दिखाई देने लगती है इससे फूलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |
काला धब्बा :-
नम मौसम में लगने वाला यह प्रमुख रोग है जिसमे पत्तियों की उपरी सतह पर काले धब्बे पड़ जाते है और पत्तियां समय से पूर्व सूखकर गिर जाती है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |
फूलों की तुड़ाई कटाई :-
फूलों को दोपहर के बाद ही कुछ डंठल के साथ तेज चाकू या ब्लेड की सहायता से काटना चाहिए फूलों को काटने के बाद तुरंत उन्हें पानी से भारी बाल्टी या टब में रखकर एकत्रित करते जाते है फूलों को यदि दूर के बाजार में भेजना हो या कट फ्लावर के रूप में प्रयोग करना हो तो उन्हें सख्त फूल कलिका की अवास्था में २०-२५ से.मि. लम्बे डंठल के साथ काटना चाहिए |
उपज :-
भली-भांति से देखरेख किए गए गुलाब के पौधे पर एक वर्ष में लगभग २५-३५ तक फूल आते है और एक हे. क्षेत्रफल में लगभग ३२-३५ हजार पौधे लगे होने की अवस्था में करीब ६-७ लाख पुष्प प्रति वर्ष प्रति हे. प्राप्त हो जाते है एक बार पौध लगाने के बाद उससे ८-१० वर्षों तक फूल प्राप्त होते रहते है |
अन्य :-
पौधों का प्रसारण (प्रवर्धन ) :-
गुलाब की विकसित किस्मों को कटिंग , बडिंग और ग्राफ्टिंग विधि द्वारा प्रवर्धित किया जाता है व्यावसायिक स्तर पर गुलाब को टी-बडिंग विधि द्वारा ही प्रतिवार्धित करते है जबकि कलकतिया एवं डेमेसिना वर्ग के गुलाब को कटिंग के द्वारा ही व्यावसायिक स्तर पर प्रवर्धित करते है ही-बडिंग द्वारा नए पौधे का प्रवर्धन करे के लिए पहले जुलाई-अगस्त माह में कटिंग लगाकर मूलवृंत तैयार करते है और फिर उस पर दिसंबर -जनवरी माह में इच्छित प्रजति की कली लगाकर बडिंग करते है
कलकतिया एवं डेमेसिना गुलाब की कटिंग को पौधे के कृंतन के समय ही क्यारियों में लगातार तैयारी कर लेते है |
कटाई - छटाई (कृंतन) :-
पौध लगाने के एक वर्ष बाद गुलाब के पौधों की कटाई छटाई की जाती है और इसके बाद प्रतिवर्ष यह क्रिया आवश्यक रूप से की जाती है कटाई-छटाई के उपयुक्त समय अक्टूम्बर का तीसरा सप्ताह है या समय कृनतन करने से फूलों की अधिक संख्या प्राप्त होती है कृनतन का मुख्य उद्देश्य सुखी तथा रोग से ग्रसित टहनियों को काटकर पौधे को एक संतुलित रूप एवं आकार प्रदान करने के साथ उसकी उत्पादकता एवं गुणवत्ता को प्रोत्साहित करना है कांट-छाँट के बाद कटे सिरों पर गोबर का ताजा गोबर अवश्य लगाना चाहिए जिससे फफूंदी का आक्रमण न हो सके |
विटरिंग :-
पौधों को स्वस्थ रखने आकार में बड़े व संख्या में अधिक पुष्प प्राप्त करने के लिए गुलाब में विटरिंग एक आवश्यक क्रिया है इस क्रिया में पौधों को सम्पूर्ण आराम मिल जाता है |