पौधे में पोषक तत्‍व की कमी के लक्ष्‍ण एवं निदान

पौधे की बढवार एवं विकास के लिये सभी पोषक तत्‍व महत्‍वपूर्ण होते है,  जिनकी कमी को किसी अन्‍य तत्‍वों द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता है। पौधों में पोषक तत्‍वों की कमी से जो रोग होते है उन्‍हें असंक्रमित रोगो की श्रेणी में रखा गया है। यह रोग कई कारणों से उत्‍पन्‍न हो सकते है जैसे: पर्यावरणीय बदलाव, मिटटी की संरचना एवं स्थिति आदि अत: इन्‍हे फिजियोलाजिकल डिसआर्डर कहा जाता है।

पोषक तत्‍वों की कमी के लक्ष्‍ण एवं उनका निदान निम्‍नलिखित प्रकार से किया जा सकता है।

1.  आलू का ब्‍लेक हर्ट-

लक्ष्‍ण -

* यह बि‍मारी तभी होती है जब आलू का भंडारण किसी ऐसे कमरे या जगह पर किया गया हो जहां संपूर्ण प्रकाश या वायु की उचित व्‍यवस्‍था न हो। भंडार कक्ष पूरी तरह से बंद हो।

* खेत में यह बिमारी तभी आती है जब मिटटी का तापमान 32 डिग्री सेलसियस से अधिक हो। आलू के कंद की बढवार एवं परिपक्‍वता के समय मिटटी का तापमान 32 डिग्री सेलसियस से अधिक हो।

* टयूबर का केन्द्रिय उत्‍तक गहरा नीला या बैगनी रंग का हो जाता है।

* शुरूवाती अवस्‍था में संक्रमित भाग पूरी तरह सुखकर अलग हो जाता है और कैविटी नूमा संरचना बना लेता है।

निदान -

* आलू के कंद का भंडारण 33 डिग्री सेलसियस से अधिक तापमान पर नहीं करना चाहिये।

* भंडार कक्ष प्रकाश युक्‍त एवं हवादार होनी चाहिये।

* यदि मिटटी का तापमान ज्‍यादा हो तो खेत में सिंचाई की व्‍यवस्‍था द्वारा तापमान कम करना चाहिये।

 

2.  आम का ब्‍लेक टिप या नेकरोसिस -

लक्ष्‍ण -

* यह बिमारी आम के फल में नेक्रोसिस के रूप में दिखाई देती है।

* प्रारंभिक अवस्‍था में यह छोटे से स्‍थान पर फैलते हुये काले रंग की हो जाती है और उपरी भाग को पूरी तरह से ढक लेती है।

* टिप भाग का बाहरी भाग कडा और सूखा हो जाता है।

* आंतरिक भाग मुलायम दिखाई देता है एवं गहरे भूरे रंग का तरल पदार्थ स्‍त्रावित होता है जो कि मरे हुये जीवाणु द्वारा होता है।

निदान -

फल आने की प्रारंभिक अवस्‍था में बोरेक्‍स पावडर का छिडकाव 3-4 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टेयर 500 लीटर पानी के हिसाब से करने पर बिमारी को कम किया जा सकता है।

 

3. धान का टिप बर्न -

लक्ष्‍ण -

* बिमारी के प्रारंभिक लक्ष्‍ण में प‍त्तियां सूखने लगती है।

* पत्तियां तांबे रंग की हो जाती है एवं इनका नुकीला भाग खूरचा हुआ दिखाई देता है।

* पत्तियां उपर से सूखते हुये नीचे की ओर बढती है और पूरी पत्तियां सूख कर मुरझा जाती है।

निदान -

* पौधे की विकास की शुरूवाती अवस्‍था में खेत को सूखा दे एवं 30-50 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर की दर से अमोनियम सल्‍फेट का छिडकाव करें।

* हरी खाद के छिडकाव से बिमारी को कम किया जा सकता है और उत्‍पादन को अधिक किया  जा सकता है।

 

 

प्रमुख पोषक तत्‍व एवं कमी के लक्ष्‍ण

कॉपर (Copper) -

कॉपर तत्‍व की कमी से क्‍लोरोसिस के लक्ष्‍ण पत्तियों में स्‍पष्‍ट रूप से दिखाई देते है पत्तियां सूखने लगती है, इन पत्तियों का किनारा पीला हो जाता है। नीबू में डाई बैक नामक बीमारी कॉपर की कमी से होती है।

जिंक (Zinc) -

जिंक की कमी से पत्तियां हल्‍के पीले रंग की होने लगती है एवं धारिया बनने लगती है। धान में जिंक की कमी से खैरा बीमारी होती है।

* इसकी कमी को दूर करने के लिये 2 किलोग्राम जिंक सल्‍फेट एवं 1 किलोग्राम बुझे हुये चूने की मात्रा को मिलाकर कर 400 लीटर पानी में 2 छिडकाव प्रति एकड के हिसाब से करना चाहिये।

आयरन (Iron)–

पौधों को आयरन की आवश्‍यकता बहुत कम मात्रा में होती है इसकी कमी तभी होती है जब पौधे इसे अवशोषित नहीं कर पाते।

* फेरस सल्‍फेट द्वारा मिटटी या पर्णीय छिडकाव से इसकी कमी दूर हो जाती है।

मेंगनीज ( Manganese ) -

बीन्‍स एवं पालक में क्‍लोरोसिस, आलू में धब्‍बे एवं ओट में ग्रे स्‍पाईक नामक बीमारी मेंगनीज की कमी से होती है।

मेंगनीज सल्‍फेट का पर्णीय छिडकाव करने से इसकी कमी को कम किया जा सकता है।

बोरॉन (Boron)–

उतक में नेक्रोसिस इसके प्रमुख लक्ष्‍ण है चुकंदर में हार्ट रॉट बोरॉन की कमी से होती है जिसका प्रमुख लक्ष्‍ण पत्ति मोडन एवं पत्तियां काले भूरे रंग की होकर मर जाती है।

* 20 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर के हिसाब से बोरेक्‍स का छिडकाव बुआई के पहले करने से इसकी कमी को दूर किया जा सकता है। 

रश्मि गौरहा