कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए ‘प्रयोगशाला से खेत तक’: नरेंद्र मोदी
कृषि क्षेत्र को बढावा देने के लिए नई-नई टेक्नोलॉजी के प्रयोग को बढ़ाने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ‘प्रयोगशाला से खेत तक’ का नारा दिया। मोदी ने कहा कि किसानों की आय तभी बढ़ेगी जब वे देश और दुनिया का पेट भर सकेंगे जबकि वे अपना उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में होंगे।
प्रधानमंत्री ने ‘कम जमीन और कम समय’ में कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद के लिए वैज्ञानिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने घटते प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बारे में चिंता का इजहार किया। प्रधानमंत्री ने हरित और श्वेत क्रांति की तर्ज पर देश में मत्स्य पालन के क्षेत्र में ‘नील क्रांति’ का आह्वान किया।
यहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 86वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा हमें दो चीजें साबित करनी है। एक तो यह कि हमारे किसान पूरे देश और दुनिया को खाद्यान्न मुहैया कराने में समर्थ हैं और दूसरे कृषि हमारे किसानों को पर्याप्त आय उपलब्ध करा सकती है। खाद्य तेल और दलहन के लिए देश की अब तक भी आयात पर अत्यधिक निर्भरता पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और प्रयास होना चाहिए कि हम कृषि जिंसों के मामले में आत्मनिर्भर हों।
मोदी ने इसी संदर्भ में कहा ‘हमारा ध्येय वाक्य होना चाहिए, प्रति बूंद, अधिक फसल।’ प्रधानमंत्री ने कृषि अनुसंधान को प्रयोगशालाओं से खेतों तक पहुंचाने (लैंड टू लैब) की चुनौती का समाधान निकालने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि किसानों को नई-नई टेक्नोलॉजी के लाभ को सहज तरीके से समझाने के प्रयास किए जाने पाहिए।
मोदी ने आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों से संस्था के शताब्दी समारोह योजना बनाने को कहा और उनसे अपील की कि शताब्दी समारोह के लिए बचे 14 वर्षों में संस्थान पिछले 86 वर्षों की उपलब्धियों से अधिक उपलब्धियां हासिल करने की योजना बनाई जाए। उन्होंने कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक शोधों को किसानों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कृषि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा रेडियो स्टेशनों की स्थापना करने का सुझाव दिया ताकि किसानों के बीच में जागरूकता बढ़ाई जा सके।
मोदी ने कहा कि जब तक किसानों की आय नहीं बढेगी तब तक कृषि विकास के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस कारण सरकार की नीतियां इस दिशा में निर्देशित होनी चाहिए। मोदी ने कहा, खाद्यो की भारी मांग है और यह हमारे लिए एक अवसर है। सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने है कि कैसे कृषि शोध को प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाया जाए। अगर शोध का काम खेतों तक नहीं पहुंचता है तो हमें वांच्छित परिणाम नहीं मिल सकते।
प्रधानमंत्री ने कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि महाविद्यालयों को रेडियो स्टेशन शुरु करने का आह्वान करते हुए कहा कि युवा शिक्षित और प्रगतिशील किसान तथा कृषि शोध में लगे विद्वान मिल कर प्रतिभाओं की एक अच्छा समूह खाड़ा कर सकते हैं। उन्होंने आईसीएआर को अगले 4.5 वर्षों में देश में सभी कृषि शोधों के आंकड़ों का डिजीटलीकरण करने को कहा।
देश में नील क्रांति (मत्स्य क्रांति) हासिल करने की आवश्यकता के विषय में मोदी ने कहा, भारत के तिरंगा झंडे में, हम हरित और श्वेत क्रांति के बारे में बात करते हैं लेकिन नीले रंग का अशोक चक्र भी है। उस क्रांति के बारे में भी हमें गौर करना होगा। उन्होंने कहा कि मत्स्य पालन क्षेत्र का विकास भी जरूरी है क्योंकि इसका विशाल वैश्विक बाजार है और इसमें मछुआरों के जीवन को बदलने की क्षमता है। उन्होंने समुद्री शैवालों के लिए व्यापक शोध और संवर्धन किए जाने का भी आह्वान किया।
दलहनों और खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भी दलहनों और तिलहनों के आयात को कम करना बड़ी चुनौती है और इसकी उत्पादकता को बढ़ाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा, आज भी दलहनों और तिलहनों का उत्पादन बड़ी चुनौती है। दलहनों का उत्पादन बढ़ाने की जरुरत है। निर्धन से निर्धन व्यक्ति को दलहन मिलना चाहिए जिसमें अधिक प्रोटीन होता है। हमें इस दिशा में काम करने की जरूरत है। कृषि अर्थव्यवस्था होने के बावजूद खाद्य तेलों की जरूरत के लिए इसके आयात पर निर्भरता का उल्लेख करते हुए मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि वैज्ञानिकों और कृषक समुदाय दोनों के द्वारा इसे चुनौती के बतौर लेन की जरूरत है ताकि इस मसले को संबोधित किया जा सके।
मोदी ने आईसीएआर को हिमालय की औषधीय पौधों व वनस्पतियों की संभावनाओं का भी दोहन करने पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस मामले में चीन आगे है। उन्होंने जल संकट को संबोधित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने आईसीएआर को मौसम चक्र में बदलाव के मद्देनजर जल का प्रबंधन करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने को कहा।
उन्होंने कहा, पानी हमें भगवान का वरदान है और हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि पानी का एक बूंद भी बर्बाद न हो। हम देखें कि इस संदेश को आम लोगों तक कैसे पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने सवाल किया कि हम इस दिशा में कैसे काम करें। क्या हम 'प्रति बूंद, अधिक फसल’ को अपना ध्येय वाक्य बना सकते हैं। इसी प्रकार से क्या ‘कम जमीन, कम समय और ज्यादा उपज’ को मिशन बना सकते हैं।
मोदी ने कहा कि लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरकता जरूरी है क्योंकि उन्हें ही इस दिशा में काम करना है हालांकि पांच सितारा होटलों में धरती का तापमान बढ़ने (ग्लोबल वार्मिंग) और पर्यावरण के मुद्दे पर होने वाली गोष्ठियों का भी इस संदर्भ में कुछ फायदा होता है। इसके अलावा जल संकट के संबंध में उन्होंने कहा कि देश के पास गुणवत्ता से समझौता किए बगैर कम भूमि में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। साथ ही कम समय में फसल उगाने के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है।
आईसीएआर के महानिदेशक एस अय्यप्पन ने विगत 86 वर्षों में संस्थान की उपलब्धियों की प्रस्तुति जिस तेजी से की उसका हवाला देते हुए अपनी हल्की फुल्की टिप्पणी में मोदी ने कहा, मैं अयप्पन जी को सुन रहा था, यह सुपर फास्ट ट्रेन की तरह था। मुझे पूरा विश्वास है कि देश की कृषि भी इसी गति से बढ़ेगी। प्रधानमंत्री के अभिभाषण से पहले लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाई। उन्होंने प्रेक्षागृह में मौजूद वैज्ञानिकों से कहा कि वे उन करोड़ों किसानों का खड़े होकर अभिवादन करें जिन्होंने कृषि के विकास में अपना योगदान दिया है।
साभार zeenew