बाजरा की ओरगेनिक खेती

भूमि
भूमि का चुनाव :- बाजरा के लिए हलकी या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है, भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक है क्योंकि आमतौर पर यह जलमग्नता की दशा को सहन नहीं कर सकता है। इसे उगायेजाने वाली भूमि को मरू रिगोसालिक तथा रियोसालिक कहते है। इस प्रकार की मृदा की विशेषता यह है की मृदा कणों का आकार बड़ा होता है, जैविक पदार्थ की मात्रा कम होती है, जल का निकास अत्यंत संतोष जनक परन्तु जलधारण शक्ति बहुत कम होती है। कंकड़ (कैल्शियम कार्बोनेट ) की अधिकता के कारण पी.एच प्रायः क्षारीय होता है। बाजरे के लिए अधिक उपजाऊ भूमियों की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए बलुअर दोमट भूमियाँ ही बाजरा की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त रहती है।
खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य २-३ जुताइयाँ देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।

जलवायु 
बाजरा आमतौर पर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है, बाजरा में सूखा सहन करने की शक्ति ज्वार की तुलना में अधिक है, इसकी खेती ४० सेमी से अधिक वर्षा वाले स्थानों पर भी की जा सकती है। पौधे की बढ़वार के समय नम तथा ऊष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। फसल में फल लगते और पकते समय स्वच्छ आकाश और तेज धुप की आवश्यकता होती है। यदि फूल आते समय वर्षा हो जाती है तो दाने अच्छी तरह से नहीं लगते है। पकते समय यदि वर्षा हो जाए तो बालियों में कण्डुआरोग लग जाता है, फसल के लिए बोवाई से लेकर कटाई तक उच्चतम तापक्रम की आवश्यकता होती है, बाजरे की फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापक्रम ७०-८० डिग्री फारेन्हाईट होता है।

प्रजातियाँ
संकर किस्मे
HB-1 :-
 यह एक संकर किस्म है, फसल अवधि ७५-८५ दिन, सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए उपयुक्त। इसकी संस्तुति राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा पंजाब में खेती करने के लिए है, उपज क्षमता ३०-३५ क्विंटल/हेक्टे, डाउनी मिल्द्र्यु एवं अरगट बीमारी अधिक लगती है।
HB-2 :- फसल अवधि ७०-७५ दिन, इसकी खेती गुजरात व राजस्थान में की जाती है। उपज क्षमता HB-1 किस्म से कम ।
HB-3 :- इस संकर किस्म की खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात तथा पश्चिमी राजस्थान में की जाती है, फसल अवधि ७५-८० दिन, उपज क्षमता ३०-३५ क्विंटल/हेक।
HB-4 :- यह किस्म पहली किस्म से ऊंची, फसल अवधि ९०-९५ दिन, उपज क्षमता ३०-३२ कु/है, डाउनी मिल्द्र्यु एवं अरगट रोग अधिक लगता है।
HB-5 :- इसकी खेती उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आंध्र प्रदेश में की जाती है, फसल अवधि ९०-९५ दिन, उपज क्षमता ३०-३५ क्वी/है।
New HB-5 :- फसल अवधि ८५-९० दिन, सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए उपयुक्त, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश में इसकी खेती की जाती है, कल्ले अधिक निकलते है, गेरुई, लोजिंग एवं लीफ स्पोट रोधक, उपज क्षमता ३०-३५ क्विं/है।
PHB-10 :- इसकी खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश में की जाती है। फसल अवधि ८८-९० दिन, सिंचित एवं असिंचित दशा के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता ३0-३५ क्विं/है। इस किस्म में अरगट बीमारी अधिक लगती है।
CJ-104 :- इसकी खेती गुजरात में की जाती है, फसल अवधि ८२ दिन, पौधे की ऊंचाई १.३-२.० मीटर, कल्ले अधिक निकलते है, उपज क्षमता ३०-३५ क्विं/है।
BJ-104 :- इसकी खेती दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान तथा हरियाणा में की जाती है। फसल अवधि ८५ दिन, सिंचित एवं असिंचित दशा के लिए उपयुक्त, हरित बाली रोग का प्रकोप नहीं होता, उपज क्षमता ३०-४० क्विंटल/हैक्टेयर।
BD-111 :- फसल अवधि ८५-९० दिन, पौधे की ऊँचाई १.३-१.४ मीटर, कल्ले अधिक निकलते है, सूखा अवरोधी, उपज क्षमता ३०-४० क्विंटल/हैक्टेयर।
BK-560-230 :- सम्पूर्ण भारत के लिए उपयुक्त, फसल अवधि ८५ दिन, पौधों की ऊचाई १.७५-२.१५ मीटर, उपज kshamta ३५-४० क्विंटल/हैक्टेयर।
MBH-110 :- महाराष्ट्र के लिए अधिक उपयुक्त, फसल अवधि ८५ दिन, उपज क्षमता ३५-४० क्विंटल/हैक्टेयर।
BD-163 :- फसल अवधि ८५ दिन, इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है लेकिन विशेष tour पर हरियाणा के लिए उपयुक्त इस किस्म का विशेष गुण है की चारे एवं दाने की अधिक मात्रा मिलती है। दाने की उपज क्षमता ३०-४० क्विंटल/हैक्टेयर तथा सूखे चारे की उपज ७०-८० क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। सिंथेटिक किस्म
HS-1 :-
 उपज ३०-३५ क्विंटल /हैक्टेयर , ageti किस्म, बीज उत्पादन के लिए हरियाणा में सबसे अधिक प्रचलित है।
संकुल किस्में
RCB-2 :-
 फसल अवधि ८०-८५ दिन, पौधों की ऊंचाई २.०-२.५ मीटर, डाउनी तथा मिल्द्र्यु की अधिक रोधक।
PSV-8 :- फसल अवधि PHB-14 किस्म से १ सप्ताह पहले, पौधे की ऊंचाई 1.९ मीटर, डाउनी तथा मिल्द्र्यु की अधिक रोधक, उपज क्षमता ३०-३५ क्विंटल / हैक्टेयर।
PCB-15 :- पौधों की ऊंचाई २.२७ मीटर, बाली की लम्बाई २९.४ सेमी तथा मोटाई ७-९ सेमी, डाउनी तथा मिल्द्र्यु रोग प्रतिरोधक, उपज क्षमता ३६ क्विंटल/हैक्टेयर।
WCC-75 :- फसल अवधि ७०-८० दिन, पौधों की ऊंचाई १८५-२१० सेमी, उपज क्षमता १८-२० क्विंटल प्रति हेक्टेयर, अरगट, हरित बाली रोग तथा कण्डुआ रोग का प्रकोप कम होता है।
बीज बोवाई
बीज दर :-
 ४-५ किग्रा प्रति हैक्टेयर ।
बोवाई का समय तथा विधि :- बाजरा की बोवाई जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य संपन्न कर लें, बोवाई ५० सेमी की दूरी पर ४ सेमी गहरे कूंद में हल के पीछे करें।
जैविक खाद
खाद का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर karnaa श्रेयस्कर होगा, उत्तम उपज के लिए २ बैग भू पॉवर ५० किग्रा ३९५ रु प्रति बैग, या २ बैग माइक्रो गोल्ड ४० किग्रा ३७२ रु प्रति बैग या २ बैग माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट ४० किग्रा ६०० रु प्रति बैग , १ बैग सुपर गोल्ड कैल्सिफर्ट १० किग्रा २२५ रु प्रति बैग, २ बैग माइक्रो भू-पॉवर १० किग्रा ४२५ रु प्रति बैग या २ बैग सुपर गोल्ड झाइम १० किग्रा ३९० रु प्रति बैग तथा २ बैग माइक्रो नीम २० किग्रा ३६५ रु प्रति बैग सभी की अच्छी तरह से मिलाकर बोवाई करने से पहले जमीन में छिडकाव कर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य २-३ जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए।
सिंचाईखरीफ में फसल की बोवाई होने के कारण वर्षा का पानी ही इसके लिए पर्याप्त है, वर्षा के अभाव में एक दो सिचाई फूल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रणबाजरे में खरीफ ऋतू के लगभग सभी खरपतवारों की समस्या आती है जिन्हें समय aane पर निराई गुड़ाई करके निकालते रहना चाहिए। निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ मृदा में आक्सीजन का संचार होता है जिससे वह दूर-दूर तक फैलकर भोज्य पदार्थों को एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के १५ दिन बाद कर देनी चाहिए।
बाजरा में लगने वाले प्रमुख कीट 

  • मिज :- इसका आक्रमण फसल में बालियाँ आते समय होता है
  • तना छेदक :- प्रारम्भ में आक्रमण पत्तियों पर तथा बाद में गिडार tane को खाती है।

कीट नियंत्रण 

  • ५ लीटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे १५ चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें, इस घोल को बीजों पर डालकर भिगो दें तथा २ घंटे तक रखा रहने दें उसे बाद बोवाई करें। यह घोल १ एकड़ की बोवनी के बीजों के लिए पर्याप्त है।
  • ५ लीटर देशी गाय के गोमूत्र में बीज भिगोकर उनकी बोवाई अरें, ओगरा और दीमक से पौधा सुरक्षित रहेगा।
  • ओगरा या दीमक से बचाव हेतु बोवाई करने से पहले बीजों को कैरोसिन से उपचारित करें।
  • २५० मिली नीम पानी (नीम पानी बनाने के लिए २५ किलो नीम की पत्तियों को पीसकर ५० लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लें, जब पानी २०-२५ लीटर रह जाए तो छानकर उपयोग करें। ) को २५ मिली माइक्रो झाइम के साथ प्रति पम्प अच्छी अरह मिलाकर तर-बतर कर छिडकाव karein एवं १ super gold maigneeshiyam १ kigraa ४५ ru prati bag २०० leetar paani में gholkar pamp से prati ekad spray karein।
  • ५०० ग्राम लहसुन, ५०० ग्राम तीखी हरी मिर्च लेकर बारीक पीसकर १५०-२०० लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिडकाव करें। जिससे इल्ली, रस चूसक कीड़े नियंत्रित होंगे।

बाजरे में लगने वाले प्रमुख रोग

  • बाजरा का अर्गत :- यह रोग केवल भुट्टों के कुछ दानों पर दिखाई देता है , इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग की लौंग के आकार की गाँठ बन जाती है जिन्हें स्केलेरेशिया कहते है। संक्रमित फूलों में फफूंद विकसित होती है जिनसे बाद में मधु रस निकलता है, प्रभावित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिकारक होते है।
  • बाजरे की हरित बाल :- इसमें बाजरे की बालियों के स्थान पर टेढ़ी-मेढ़ी हरी -हरी पत्तियां सी बन जाती है जिससे पूर्ण बाली झाड़ू के सामान दिखाई देती है, पौधे बौने रह जाते है।
  • बाजरा का कंडुवा:- कंडुवा रोग से बीज आकार में बड़े गोल अंडाकार हरे रंग के हो जाते है जिसमे काला चूर्ण भा होता है, उपचार हेतु बीज एक ही खेत में प्रतिवर्ष बाजरे की खेती नहीं करनी चाहिए।

रोग नियंत्रण
रोग आने पर उपचार कराने से अच्छा है की रोग आने ही न दें, इसलिए किसान को फसल में हर १५ दिन बाद नीम पानी माइक्रो झाइम मिलाकर छिडकाव करते रहना चाहिए। अगर रोग आ ही गया है तो उस फसल को तत्काल उखाड़कर जला देना चाहिए और तत्काल हर हफ्ते नीम पानी और झाइम का छिडकाव करते रहना चाहिए, जब तक फसल रोगमुक्त न हो जाए। रोगमुक्त, विषमुक्त और तंदुरुस्त बीज की बोवाई करनी चाहिए, अगर किसान ओरगेनिक खेती कर रहा है तो उपरोक्त बीमारियाँ आने का चांस ही नहीं है। उपरोक्त सभी रोग बाजारवाद, रासायनिकरण और किसानों की अकर्मण्यता द्वारा पैदा किये गए है। अगर रोग पैदा ही नहीं होंगे तो बाजार को कौन पूछेगा ? इसलिए पहले रोग पैदा किये जाते है और फिर उनका इलाज बताया जाता है। इस तरह किसानों को लूटने का यह एक नया phandaa है। रोग होगा तो फसल डॉक्टर , फसल वैज्ञानिक, दवा कंपनी, दवा दूकान आदि का जन्म होता है। अतः किसान अपने खेतों से तंदुरुस्त फसल की छटाई कर अपना बीज खुद तैयार करे और बाजार से हमेशा दूर रहे तो ही लुटने से बच सकता है।

कटाई 
विभिन्न जातियां ७५-९५ दिन में पककर तैयार होती है, खड़ी फसल में हंसिया की सहायता से बाली काटकर खलियान में सुखाई जाती है। कुछ क्षेत्रों में खेत से पहले फसल काटकर खलियान में लाते है और फिर बालियाँ काट ली जाती hai । दानों में नमी की मात्रा २० प्रतिशत रहने पर बालियाँ खेत से काटनी चाहिए, बालियों को खेत में सुखाकर बैलों से दौनी या शक्ति चालित थ्रेशर से थ्रेशिंग कर लेते है। भंडारण करने के लिए दानों में १०-१२ प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, खेत में खड़ी फसल से बाली काटकर कुछ दिनों तक बाजरे को हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
उपज 

  • सिंचित परिस्थिति में बाजरे की संकर प्रजातियों से ४०-५० क्विंटल/हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
  • बाजरे की बौनी प्रजातियों की वर्षा-पोषित फसल की पैदावार ३०-३५ क्विंटल/हैक्टेयर तक होती है।
  • बाजरे की स्थानीय किस्मों से लगभग १५-२० क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
organic farming: 
जैविक खेती: