अरबी की आर्गनिक खेती

  भूमि ---
अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश वाली रेतीली दोमट मिटटी अच्छी रहती है इसके लिए गहरी भूमि होनी चाहिए ताकि इसके कंदों का समुचित विकास हो सके .

 जलवायु ---

अरबी कि फसल को गर्म और आर्द्र जलवायु कि आवश्यकता होती है यह ग्रीष्म और वर्षा दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है इसे उष्ण और उप उष्ण देशों में उगाया जा सकता है उत्तरी भारत कि जलवायु अरबी कि खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है .

 प्रजातियाँ ---
उन्नत : किस्मे ---
आजकल भी अरबी कि स्थानीय किस्मे उगाई जाती है देश के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ स्थानीय किस्मे उगाई जाती है अब कुछ उन्नत किस्मे भी उगाई जाने लगी है .
स्थानीय : किस्मे ---

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    फ़ैजाबाद ,
  •  
    लाधरा वंशी ,
  •  
    बंगाली बड़ा ,
  •  
    देशी बड़ा ,
  •  
    पंचमुखी ,
  •  
    गुर्री काचू ,
  •  
    आस काचू ,
  •  
    काका काचू ,
  •  
    सर काचू

उत्तर : प्रदेश ---

  •  
    एन 0 डी 0 सी 0 -1 व
  •  
    एन 0 डी 0 सी 0 -2

नवीनतम : किस्मे ---

  •  
    नरेंद्र -1 अरबी
  •  
    नरेंद्र अरबी -2

इन दोनों किस्मों का विकास नरेंद्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिक वि 0 वि 0 द्वारा किया गया है दोनों किस्मे अधिक उपज
देने वाली है .
बीज : बुबाई -
बोने का : समय ---
अरबी कि बाई साल में दो बार कि जाती है

  •  
    फरवरी मार्च ,
  •  
    जून जुलाई

बीज कि : मात्रा ---
अरबी के लिए 8-10 क्विंटल बीज प्रति हे 0 कि फदर से उप्योद करे बुबाई के लिए केवल अंकुरित बीज का उपयोग करे .
बोने : विधि ---
अरबी कि बुबाई निम्नलिखित दो बिधियों से की जाती है .
समतल क्यारियों : में ---
भली भाँती तैयार करके पंक्तियों कि आपसी 45 से 0 मि 0 और पौधों कि आपसी दुरी दुरी 30 से 0 मि 0 रखकर बीज बलि गांठों को 7.5 से 0 मि 0 गहराई पर मिटटी के अन्दर बो दे .
डौलों : पर ---
45 से.मी. की दुरी पर डौलीयां बनायें डौलीयों के बिच दोनों किनारों 30 पर से.मी. की दुरी पर गांठे बो दें .
आर्गनिक जैविक : खाद --
-गोबर की सड़ी हुयी खाद 25-30 टन प्रति हे . खेत में सामान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर आर्गनिक 2 बैग भू पावर 50 किलो ग्राम , 2 - बैग माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट वजन 40 किलो ग्राम , 2 - बैग माइक्रो भू पावर 10 किलोग्राम वजन , वजन खाद 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन 10 किलो ग्राम , 2 बैग माइक्रो नीम वजन 20 किलो ग्राम और 50 किलो ग्राम अरंडी कि खली इन सब खादों को मिला कर मिश्रण तैयार कर प्रति एकड़ खेत में सामान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर खेत तैयार कर बुवाई करे . 
फसल 20 - 25 दिन कि हो जाये तब 2 किलो सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 500 मी.ली. माइक्रो झाइम 400 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह घोलकर पम्प द्वारा तर बतर कर छिड़ काव करे दूसरा और जब - तीसरा हर छिड़काव 20 - 25 दिन पर लगातार करते रहें . 
: सिंचाई --
-ग्रीष्म ऋतू कि फसल को अधिक सिचाइयों कि आवश्यकता होती है जबकि वर्षा ऋतू वाली फसल को कम सिचाइयों कि आवश्यकता पड़ती है गर्मियों में सिचाई 6-7 दिन के अंतर से 10-12 करते रहना चाहिए और वर्षा वाली फसल कि सिचाई दिन या आवश्यकतानुसार करते रहना चहिये अंतिम जून या जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मिटटी चढ़ा देनी चाहिए यदि तने अधिक मात्रा में निकल रहे हों तो एक या दो मुख्य तनों को छोड़कर शेष सभी छटाई कर देनी चाहिए .
खरपतवार : नियंत्रण ---
आवश्यकतानुसार प्रत्येक सिचाई के बाद - निराई गुड़ाई करे आमतौर पर 2-3 बार निराई गुड़ाई करने से काम चल जाता है . 
किट : नियंत्रण ---
अरबी कि पत्तियां खाने वाले कीड़ों ( सुंडी व मक्खी ) द्वारा हानी होती है क्योंकि ये कीड़े नयी पत्तियों को खा जाते है . 
: रोकथाम --
-नीम का काढ़ा या गौ मूत्र का माइक्रो झाइम के साथमिलाकर छिडकाव करे . 
रोग : नियंत्रण ---
अरबी का : झुलसा ---
यह रोग फाइटोफ्थोरा कोलोकेसी नामक फफूंदी के कारण होता है इसका प्रकोप - जुलाई अगस्त में होता है पत्तियों पर पहले गोल काले धब्बे पड़ जाते है बाद में पत्तियां गलकर गिर जाती है कंदों का निर्माण बिलकुल नहीं होता है . 
 रोकथाम ---

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    उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए .
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    रोगी पौधों को उखाड़ कर जाला देना चाहिए .
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    नीम का काढ़ा या गौ मूत्र का माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर लगातार 15 - 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए .

नीम का : काढ़ा -

25 ग्राम नीम कि पत्ती ताजा हरा तोड़कर कुचल कर पिस कर किलो 50 लीटर पानी में पकाएं जब पानी 20 - 25 लीटर रह जाये तब उतार कर आधा लीटर प्रति पम्प पानी में मिलाकर प्रयोग करे .

गौ : मूत्र -

देसी गाय का गौ मूत्र 10 लीटर लेकर पारदर्शी बर्तन कांच या प्लास्टिक में लेकर 10 - 15 दिन धुप में रख कर आधा लीटर प्रति पम्प पानी मिलाकर प्रयोग करे .
 खुदाई ---
अरबी कि जड़ों कि खुदाई का समय जड़ों के आकार , जाति , जलवायु और भूमि कि उर्बर शक्ति पर निर्भर करता है इसकी फसल बोने के लगभग 3 महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है पत्तियां सुख जाती है तब उनकी खुदाई करनी चाहिए . 
 उपज ---
प्रति हे 0 300-400 क्विंटल तक उपज मिल जाती है . 
 भण्डारण ---
अरबी कि गांठों को ऐसे कमरे में रखना चाहिए जहा गर्मी न हो गांठों को कमरे में फैला दे गाठों को कुछ दिन के अंतरसे पलटते रहना चाहिए सड़ी हुयी गांठों को निकालते रहें इस प्रक्रिया से मिटटी भी झड जाती है आवश्यकतानुसार बाजार में बिक्री के लिए भी निकालते रहे - कही कही अरबी को सुखाने बाद स्वच्छ बोरों में भरकर भंडार गृह में रखते 

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जैविक खेती: