सहफसली खेती से सुधरेगी मिट्टी की सेहत
सहफसली खेती से सुधर रही मिट्टी की सेहत
मिट्टी की उर्वरा शक्ति और उत्पादन में चोली-दामन का संबंध है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति के अनुसार ही उसकी उत्पादन क्षमता प्रभवित होती है। अगर खेतों में सहफसली कृषि की जाए तो मिट्टी की सेहत के साथ-साथ उत्पादन भी बेहतर हो जाता है।
कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद यह किसान धरती मां के भंडार को अच्छी तरह समझता है। इसकी बदौलत उसने एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन फसलें एक साथ ली हैं। इसमें गन्ना एक वर्षीय खेती 8 फीट पर है। बाकी सहफसली के रूप में थीं चना , मसूर और सरसों यह समझी हुई और सफल तकनीक है, । किसान चना और मसूर के बाद मक्का और सब्जी की खेती कर रहे हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि सहफसली खेती किसान को मुनाफा देती है। साथ ही कृषि भूमि के लिए टाॅनिक के तौर पर काम करती है।
अन्य फायदे
खेत में नाइट्रोजन व कार्बन का समायोजन
अगर सहफसली खेती की जाए और मौसम के हिसाब से चलें तो ये खेती बेहतर परिणाम देती है, क्योकि इस तरह से कार्बन और नाइट्रोजन जमीन के अन्दर प्राकृतिक ढंग से जाता है और बढ़िया परिणाम दिखाता है।
कम पानी की जरूरत
अगर प्राकृतिक विधि से खेती की जाये तो कम पानी की जरूरत होती है।
समय पर आमदनी
सहफसली खेती सबसे ज्यादा फायदेमंद है। इस तरह खेती करने में पैसा जल्दी मिलता है, जिससे आर्थिक तंगी कभी नहीं होती और स्वयं का संतुलन नहीं खराब होता।
और भी हो रहे हैं प्रेरित
आजकल आमतौर पर कहा जाता है कि कृषि घाटे का सौदा है। किंतु सहफसली तकनीक अपनाने के बाद यह कहने की नौबत नहीं आएगी कि कृषि घाटे का व्यवसाय है। इस तरह से पैदावार ज्यादा होने के साथ ही मिट्टी और आय दोनों का ही संतुलन बना रहता है। ऐसे में खेती की यह तकनीक किसानों को ज्यादा प्रेरित कर रही है। वह इस खेती को 2014 के मार्च महीने से कर रहे हैं। kisanhelp के संरक्षक श्री सिंह कहते हैं कि उनके लिए यह खेती भगवान के उपहार की तरह है, और हर साल उत्पादन बेहतर होता जा रहा है। उन्होंने सभी किसान भाइयों से अनुरोध किया है कि रासायनिक खादों से बचें और अपनी धरती माता को भी बचाएं।