सोयाबीन की वैज्ञानिक खेती
सोयाबीन में लगभग 20 प्रतिशत तेल एवं 40 प्रतिशत उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन होता है। इसकी तुलना में चावल में 7 प्रतिशत मक्का में 10 प्रतिशत एवं अन्य दलहनों में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है। सोयाबीन में उपलब्ध प्रोटीन बहुमूल्य अमीनो एसिड लाभसिन (5 प्रतिशत) से समृद्ध होता है। अधिकांश अनाजों में इसकी कमी होती है। इसके अतिरिक्त इसमें खनिजों, लवण एवं विटामिनों (थियामिन एवं रिवोल्टाविन) की अच्छी मात्रा पायी जाती है। इसके अंकुरित दाने में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पाईजाती है।
विटामिन ए अग्रगामी विटामिन ए के रूप में उपस्थित रहता है, जो आंत में विटामिन ए में परिवर्तित हो जाता है। बच्चों के लिए उच्च प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ बनाने में सोयाबीन का उपयोग किया जाता है। औद्योगिक उत्पादन में विभिन्न एंटीबायोटिक्स बनाने में इसका विस्तृत रूप से उपयोग किया जाता है। सोयाबीन जड़ ग्रथिका के मार्फत वायुमंड से नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा को निर्धारित कर मिटटी की उर्वरकता को बढ़ाता है। परिपक्वता पर जो पत्ते तल पर गिरते है, उससे भी उर्वरकता बढ़ती है। इसका उपयोग चारे के रूप में किया जा सकता है। चारे को पुआल में बदला जा सकता है इसके चारे एवं खल मवेशियों एवं पाल्ट्री के लिए उत्तम पोषक खाल होे हैं। सोयाबीन उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं वसा का सबसे स्मृद्ध सस्ता एवं अच्छा स्रोत है। इसके वसा का उपयोग खाद्य एवं औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है। इसे कभी-कभी आश्चर्यजनक फसल भी कहा जाता है।
किस्म विशेषताएं
हार्डी 90-95 दिनों की अवधि वाली, उर्ध्व विकास सफेद फली, उत्पादकता 20 से 25 प्रति क्विं/हें.
जे एस-335 90 दिनों की अवधि वाली, 20 से 25 क्विं प्रति हें. उत्पादकता, लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधी
एम ए सी एस-201 80-85 दिनो की अवधि वाली, 20-25 क्विं प्रति हें.
जे एस 80-21 20 क्विं प्रति हें उत्पादकता
पी के 1029 लीफ कर्ल वायरस का प्रतिरोधी, 20-25 क्विं प्रति हें.
एम ए सी एस 58 लंबा, उर्ध्व, 90 से 100 दिनों की अवधि, फलियां बड़ी पुष्ट बीज, 20-25 क्विं प्रति हें उत्पादकता
एम एसी एस-124 उर्ध्व 100-110 दिनों की अवधि वाली फलियां बड़ी, पुष्ट बीज उपज, 20-25 क्विं प्रति हें.
एम ए सी एस 450 अल्पावधि किस्म,(80 दिन), पुष्ट फली एवं गुच्छों में सफेद फलियां उच्च उत्पादकता युक्त
एल एस बी-1 अल्पावधि (65 दिन) कम वर्षा एवं हल्की मिटटी वाले क्षेत्र में कपास के साथ सह फसल के लिए उपयुक्त
जे एस 335 लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधी
पी के 471 उर्ध्व, सफेद फूल 90 से 100 दिनों की अवधि वाली, उपज 18 से 20 क्विं प्रति हें. उत्पादकता
पी के 472 पीला दाना, सफेद फूल, 105 दिनों की अवधि वाली, औसत उत्पादकता 20 क्विं प्रति हें.
मौसम एंव फसल चक्र:
सोयाबीन के मामले में बुवाई की अवधि काफी महत्वपूर्ण होती है। उत्तर भारत में सोयाबीन की बुवाई जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के पहले पखवाडें तक की जा सकती है। उत्तर भारत में कुछ सामान्य फसल चक्र इस प्रकार है:
सोयाबीन- गेहूं
सोयाबीन- आलू
सोयाबीन- चना
सोयाबीन- तम्बाकू
सोयाबीन- आलू- गेहूं
जलवायु एवं मृदा:
सोयाबीन गर्म एवं नमी युक्त जलवायु में अच्छी होती है। सोयाबीन के लिए मौसम की आवश्यकता होती है जो मक्का के लिए होती है। अधिकांश किस्मों के लिए 2605 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। मिट्टी में 15 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान बीज अंकुरण के लिए अनुकूल होता है। इससे छोटे पौधे का विकास भी तेज गति से होता है। प्रभावी बढ़वार के लिए न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है। तथा पौधे होते हैं तथा फोटो अवधि के प्रति संवेदनशील होते हैं। अधिकांश किस्मों में फूल जल्दी लगते हैं तथा फसल जल्दी परिपक्व होती है अगर दिन की लंबाई 14 घंटे से कम हो तथा तापमान फसल के अनुकूल हो।
सोयाबीन की खेती के लिए 6.0 से 7.5 पी एच मान के साथ् सिंचाई सुविधा से युक्त उर्वरक दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है। सोडिक एवं सलाइट मिट्टी बीज के अंकुरण को हतोत्साहित करती है। अम्लीय मिट्टी में पी एच मान बढ़कर 7 तक करने के लिए चना को मिलना चाहिए। खेत में पानी का जमाव फसल के लिए नुकसान दायक सिद्ध होता है।
सिंचाई:
खरीफ सीजन के दौरान सोयाबीन फसल को सामान्यत: किसी सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। हालांकि यदि फलियां भरने की अवधि के दौरान सूखा हो तो सिंचाई की जा सकती है। भारी वर्षा के प्रभाव से फसल को बचाने के लिए पानी की निकासी की व्यवस्था भी काफी महत्वपूर्ण है। वसंत कालीन फसल को 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
फसल की कटाई वाद में प्रबंधन
जब सोयाबीन की फसल परिपक्व हो जाती है, पौधों से पत्तियां झडंने लगती हैं। किस्मों के अनुरूप परिपक्वता अवधि 90 से 140 दिनों की होती है। जब पौधा परिपक्व हो जाता है, पत्तियां पीली पड़ जाती है एवं झड़ जाती हैं। फिर फलियां सूखने लगती हैं। बीज से नमी की मात्रा तेजी से खत्म होती है। फसल की कटाई हाथ से की जा सकती है। हंसिया की सहायता से डंलों को काटा जा सकता है। थ्रेसिंग मशीन की सहायता से या परम्परागत विधि से की जा सकती है। थ्रेसिंग सावधानीपूर्वक करनी चाहिए। अगर डंठल पर जोर से प्रहार किया जाता है तो फली का ऊपरी परत चटक सकती है तथा इससे बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती है, उसकी जीवन अवधि कम होती है। कुछ बदलाव के साथ गेहूं के लिए उपलब्ध थ्रेसर का उपयोग सोयाबीन थ्रेसिंग के लिए किया जा सकता है। इसके लिए थ्रेसिंग करने में बदलाव की जरूरत पड़ती है। पंखे की शक्ति बढ़ानी पड़ती है तथा सिलेंडर की गति को कम करना पड़ता है। थ्रेसर से थ्रेसिंग के दौरान 13 से 14 प्रतिशत नमी का होना आदर्श माना जाता है।
भंडारण:
भंडारण से पहले बीजों को अच्छी तरह सूखाना चाहिए ताकि नमी का स्तर 11 से 12 प्रतिशत ही रह जाये।
खेती
सामान्यत: सोयाबीन का खेत अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए। खेतों में बहुत अधिक मिट्टी के ढेले नहीं होने चाहिए। खेत चौरस होना चाहिए एवं फसलों की जड़ों खूटिंयों से मुक्त होना चाहिए।
खेत की तैयारी
मिट्टी पलट हल के साथ एक गहरी जोत के बाद दो पाटा लगाया जाना चाहिए या स्थानीय हल से दो जोत पर्याप्त होता है। बिजाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
बुवाई का ढंग
बुवाई 45 से 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में की जानी चाहिए। इसके लिए सीड ड्रिल की सहायता ली जा सकती है या फिर हल के पीछे से बीज बोना चाहिए। एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 4 से 5 सेन्टीमीटर के बीच होनी चाहिए। पर्याप्त नमी की स्थिति में बीज को 3-4 सेन्टीमीटर से अधिक गहरे में नहीं डालना चाहिए। अगर बीज अधिक गहराई में चला जाता है तो बिजाई के बाद पपरी पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। इससे अंकुरण में देरी हो सकती है तथा फसल की सघनत कम हो सकती है। अंकुरण प्रतिशत 80 है तो 70 से 80 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लगता है। पिछेती एवं बसंत फसल के लिए 100 से 120 किलो प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत पड़ती है।
उपज
जून के अंतिम सप्ताह में सोयाबीन की बुवाई से अधिकतम उत्पादकता प्राप्त होती है। 7 जुलाई के बाद बुवाई से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 40 किलो घट जाती है। यदि सभी तकनीकों, उन्नत किस्मों का चुनाव करके लगायें तो औसत उपज 30-35 क्वि. प्रति हेक्टर तक मिल जाती है।