शिमला मिर्च की जैविक खेती

भूमि :-

शिमला मिर्च के लिए अच्छी उपजाऊ जमीन जिसमे जीवांश कि मात्रा अधिक हो आवश्यक होती  है भूमि कि प्रकृति  बलुई दोमट होनी चाहिए इस प्रकार से चुनी हुई जमीन कि ३-४ बार अच्छी तरह से खुदाई करके मिटटी को अच्छी प्रकार से तैयार कर लिया जाता है  |

जलवायु :- 

शिमला मिर्च गर्म और अर्ध-गर्म जलवायु का पौधा है  परन्तु इसकी सफल खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम मानी है है २०-२५ डिग्री सेल्सियस तापमान मिर्च कि खेती के लिए उपयुक्त माना गया है उपयुक्त तापमान न होने कि स्थिति में इसके फल, फुल और कली गिर जाते है ६२५-७५० मि. मि. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उत्तम माने गए है मिर्च कि खेती समुद्र तल से २००० मीटर तक कि उचाई तक कि जा सकती है |

लगाने का समय 

बीज बोने का समय            पौध रोपाई का समय

जून-जुलाई                जुलाई-अगस्त

अगस्त-सितंबर            सितंबर-अक्टूबर

नवंबर-दिसंबर            दिसंबर-जनवरी

प्रजातियाँ :-

शिमला मिर्च के लिए मुक्त परागित (सामान्य किस्मे ) और संकर दोनों ही किस्मो का चुनाव किया जा सकता है संकर किस्मों के फल सामान्य या मुक्त परागित किस्मों कि तुलना में बड़े आकार के एवं गहरे रंग के होते है इसलिए संकर किस्मों को अधिक पसंद किया जाता है इसकी कुछ सामान्य किस्मों एवं संकर किस्मों का वर्णन निम्न प्रकार है -

सामान्य किस्मे :-

कैलिफोर्निया वंडर :-

यह एक काफी प्रचलित किस्म है जिसके पौधे मध्यम उचाई के और सीधी वढ़वार  वाले होते है फल चिकने और   गहरे हरे रंग के होते है फलों का छिलका मोटा होता है और प्रत्येक फल में ३-४ पिंड  होते है |

यलो वंडर :-

इसके पौधे छोटे आकार के होते है फल का छिलका मध्यम मोटाई का होता है तथा फल गहरे हरे रंग के होते है |

संकर किस्मे :-

इन्द्रा :-

यह एक प्रभावी संकर किस्म है जिसके बीज सिजेन्टा निजी बीज कंपनी के अधिकृत बीज भंडारों से प्राप्त किए  जा सकता है  इसके पौधे मध्यम उचाई के खड़े सीधे व छाता नुमा आकार के होते है फल चौड़ाई के अनुपात में थोड़े लम्बे एवं मोटे गुदे वाले होते है प्रत्येक फल का वजन १००-१५० ग्राम का होता है |

 

भारत :-

इस किस्म को इंडो अमेरिकन हाईब्रिड सीड कंपनी द्वार विकसित किया गया है इसके पौधे ऊपर कि तरफ बढ़ने वाले , घने , मजबूत, व गहरी पत्ती लिए होते है फल मोटे ३-४ प्रकोष्ठ वाले तथा चिकनी सतह के होते है प्रत्येक फल का औसत वजन १५० ग्राम होता है इसके बीज इंडो अमेरिकन हाइब्रिड सीड कंपनी के अधिकृत बीज भंडारों से प्राप्त किए जा सकते है |

ग्रीन गोल्ड :-

इसे महिको हाई ब्रिड सीड कंपनी द्वारा विकसित किया गया हाई इसके फल कि लम्बाई ११ से.मि. और मोटाई ९ से.मि.होती है  फल का रंग गहरा हरा होता है फल का वजन १००-१२० ग्राम होता है |

बीज बुवाई :-

लगाने का समय :-

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में शिमला मिर्च कि फसल को जाड़े कि फसल के रूप में  उगाया जाता है जिसके लिए पौधे जुलाई अगस्त के महीने में तैयार करते है पर्वतीय क्षेत्रों में कम उचाई  वाले क्षेत्रों में नवम्बर तथा फ़रवरी मार्च में बीज कि बुवाई करते है और मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में मार्च से मई तक बुवाई करते है शिमला  मिर्च के बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक है कि समय से बुवाई कि जाए क्योंकि देर से बुवाई करने पर जब तापक्रम कम होने लगता है तो अंकुरण का % घट जाता है तथा अंकुरण  में काफी समय लगता है पौध शाला  मे ३०-३५ डिग्री सेंटी ग्रेट तापमान उपयुक्त होता है पौधे कि बढ़वार के लिए २०-२५ सेंटी ग्रेट डिग्री तापमान उपयुक्त होता है जबकि फल लगने के लिए महीने का औसत तापमान १०-१५ सेंटी ग्रेट तापमान अच्छा पाया गया है |

पौध  तैयार करना :

पौध तैयार करने के लिए अच्छी प्रकार से तैयार क्यारी में अच्छी सड़ी हुई गोबर कि खाद मिला देते है यह क्यारी जमीन कि सतह से १५-२० से,मि, उची होनी चाहिए जिससे बरसात के पानी से क्यारी डूबे नहीं तथा पौधे पानी में ख़राब न हो सके बीज को पंक्तियों में ५ से.मि. कि दुरी पर एव २.५ से.मि.कि गहराई पर बोते है |

बीज कि मात्रा :-

शिमला मिर्च के बीज बहुत छोटे होते है यह प्रति १० वर्ग मीटर क्षेत्र में लगाने के लिए १ ग्राम बीज पर्याप्त होता है सामान्यतया १ ग्राम से भी कम बीज कि आवश्यकता होती है लेकिन बाजार में १ ग्राम से कम  बीज के पैकेट उपलब्ध नहीं होते है |

रोपण :-

पौधशाला में रोपण के लिए बुवाई के ३०-३५ दिन बाद तैयार हो जाते है इस समय पौधे में ४-५ पत्तियां होती है रोपण के लिए ४० से.मि चौड़ी जमीन कि सतह से २० से.मि. उच्च क्यारियां बनाई जाती है जिसके दोनों तरफ चौड़ी नाली होती है इन्ही क्यारियों में दोनों तरफ ३० से. मि. कि दुरी पर पौधों कि रोपाई कि जाती है इस प्रकार क्यारी और नाली बनाने में ५ मीटर लम्बी तथा २ मीटर चौड़ी क्यारी में रोपण के लिए ३ क्यारियां बनती है पौध कि रोपाई के बाद नालियों कि हलकी सिचाई कर  देते है हर बार नालियों के जरिये ही सिचाई करते है |

आर्गनिक खाद :-

शिमला मिर्च कि अच्छी फसल लेने के लिए उसे आर्गनिक खाद , कम्पोस्ट खाद अनिवार्य रूप से मिलना चाहिए १० गुना १० मीटर कि एक क्यारी के लिए ३०-४० किलो ग्राम गोबर कि अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद और आर्गनिक खाद भू-पावर ek  किलो ग्राम , माइक्रो फर्टी सिटी वजन एक  किलो ग्राम ,   माइक्रो नीम वजन  एक किलो ग्राम ,   माइक्रो भू-पावर वजन  एक  किलो ग्राम ,   सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन एक  किलो ग्राम और  एक  किलो ग्राम अरंडी कि खली आदि इन सब खादों अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई के पूर्व मिश्रण बनाकर खेत में समान मात्रा में बिखेर दें फिर खेत कि अच्छी तरह से जुताई करके खेत तैयार कर बुवाई करें |

और जब फसल २५-३० दिन की हो जाए  तब उसमे १ बैग सुपर गोल्ड मैग्निशियाँ वजन १ किलो ग्राम और माइक्रो झाइम ५०० मि.ली. को २०० लीटर पानी में अच्छी तरह से घोलकर फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |

सिचाई :-

शिमला मिर्च को सामान्यतया अधिक पानी कि आवश्यकता होती है इसके लिए १०-१५ दिन के अंतर हलकी सिचाई करनी चाहिए |

खरपतवार नियंत्रण :-

पहली निराई -गुड़ाई रोपण के ३० दिन बाद और दूसरी ६० दिन बाद करते है दूसरी गुड़ाई के समय पौधों के पास हलकी मिटटी चढ़ा देनी चाहिए |

कीट नियंत्रण :-

थ्रिप्स :

यह पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते है इस कीट का प्रकोप पौधों कि रोपाई के २-३ सप्ताह बाद प्रारंभ होता है फुल  आने के समय इसका प्रकोप बहुत अधिक होता है इसके अधिक प्रकोप से पत्तियां सिकुड़ जाती है तथा मुरझाकर मुड़ जाती है |

रोकथाम :-

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. के हिसाब से प्रति पम्प द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |

माईट :-

यह छोटे आकार के पीले रंग के कीट होते है इनके पृष्ठ भाग पर सफ़ेद धारियां होती है इसके प्रकोप से पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और वे गुच्छे जैसी दिखती है |

रोकथाम :-

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. प्रति पम्प द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |

रोग नियंत्रण :-

पर्ण कुंचन :-

यह रोग विषाणु के द्वारा होता है इसके प्रकोप से पत्तिय छोटी , मोटी एवं विकृत हो जाती है पौधा रोगग्रस्त व बौना हो जाता है रोग का प्रसार सफ़ेद मक्खी के द्वारा होता है |

रोकथाम :-

इसकी रोकथाम  के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम का साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. प्रति पम्प द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करें |

एन्थ्रेनोज या फल विगलन :-

यह कवक जन्य बीमारी है जो कोलेटोट्राईकम कैप्सिसी कवक के द्वारा होती है रोग का प्रभाव पौधों कि पत्तियों तनो  एवं फूलों पर भूरे धब्बे के रूप में प्रकट होता है |

रोकथाम :-

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. प्रति पम्प के द्वार तर-बतर कर छिडकाव करें |

पत्तियों का जीवाणु धब्बा  :-

इस रोग से प्रभावित पौधे कि नई पत्तियों पर पीले हरे तथा पुरानी पत्तियों पर जनीय काले धब्बे बनते है रोग ग्रस्त फलों पर फफोले जैसे धब्बे बनते है |

रोकथाम :--

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम  के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. के हिसाब से प्रति पम्प द्वार तर -बतर फसल में छिडकाव  करें  |

तुड़ाई :-

पौध रोपण के ८०-९० दिनबाद फुल तुड़ाई योग्य हो जाते है पूर्ण रूप से विकसित फलों को ऊपर कि और मोड़कर तोडना चाहिए |

उपज :-

एक पौधे में २०-२५ फल लगते है और प्रति १० वर्ग मीटर क्षेत्रफल से ३०-४० किलो ग्राम उपज प्राप्त होती है |

अन्य :-

शीर्ष कर्तन :-

शिमला मिर्च कि अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए शीर्ष करना चाहिए प्रथम फुल आने के समय शीर्ष पर आने वाले फूलों को तोड़ देना चाहिए ऐसा करने से पौधों कि अच्छी वृद्धि हो जाती है एवं अधिक शाखाए निकलती है | 

 

स्वयं के अनुभब के आधार पर उपरोक्त बिबरन दिया है 

जैविक खेती: