युवाओं के लिए बेहतर व्यवसाय है मशरूम
स्वरोजगार के जरिए न सिर्फ धन कमाया जा सकता है, बल्कि समाज में अपनी एक अलग पहचान भी बनाई जा सकती है। ऐसे कई रास्ते हैं, जो सेल्फ एंप्लॉयमेंट द्वारा आपको सफलता तक ले जा सकते हैं। इन्हीं में से एक है मशरूम उत्पादन। मशरूम यानी खुंबी। इसे गांवों में छतरी व कुकरमत्ता आदि नामों से जाना जाता है। दरअसल, मशरूम को मृत कार्बनिक पदार्थों पर उगने वाला एक मृतजीवी कवक भी कहते हैं। यह खुंबी उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए एक बेहतर व्यवसाय साबित हो सकता है।
शैक्षिक योग्यता
मशरूम उत्पादन के लिए कोई विशेष योग्यता की जरूरत नहीं है। फिर भी तमाम तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए मिडिल पास होना बेहतर है।
पाठय़क्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की नई-नई तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से परिचित कराना है।
विभिन्न किस्में
भारतवर्ष के विभिन्न इलाकों में इसकी 12 प्रजातियों का उत्पादन होता है, जिनमें प्रमुख हैं-फ्लैबूलेंट्स, ओपनशियाईं, सिटरीनोपीलिएटस, सिस्टीडिओसस सैपीडस, इओस तथा डीजेमार आदि।
उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री
मशरूम की खेती के लिए जरूरी चीजों में मशरूमघर, पॉलीथीन के थैले, कम्पोस्ट बनाने के लिए चबूतरा, कम्पोस्ट बनाने की सामग्री, मशरूम स्पान तथा केसिंग मिट्टी प्रमुख हैं।
कम्पोस्ट कैसे तैयार करें
मशरूम की खेती कृत्रिम रूप से तैयार किए गए कम्पोस्ट पर की जाती है। मशरूम-कम्पोस्ट बनाना एक जटिल जैव रसायन प्रक्रिया है। इसमें सेल्यूलोज, हेमी सेल्यूलोज और लिग्निन आंशिक रूप से सड़ जाते हैं और अकार्बनिक नाइट्रोजन से सूक्ष्मजीवी प्रोटीन का संश्लेषण होता है। नाइट्रोजन-स्रेतों को कम्पोस्ट में मिलने के कारण कार्बन/नाइट्रोजन अनुपात भी कम हो जाता है। कम्पोस्ट बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भूसा एक साल से अधिक पुराना अथवा बारिश में भीगा नहीं होना चाहिए। 250 किलो गेहूं के भूसे के स्थान पर 400 किलो धान के पुराल का भी प्रयोग कर सकते हैं। यदि धान का भूसा प्रयोग कर रहे हैं तो साथ में 6 किलो बिनौले (कपास का बीज) के आटे का भी प्रयोग करें।
मशरूम के लिए जलवायु
मशरूम उत्पादन के लिए अलग-अलग जलवायु या वातावरण की आवश्यकता होती है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी है। इसका उत्पादन अक्तूबर से मार्च के बीच होता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 70 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर और अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। अधिकतर मशरूमों का उत्पादन जाड़ों के दिनों में ही होता है। मशरूम उत्पादन में जलवायु का खास महत्व है, अत: किसान या स्वरोजगार अपनाने वाले युवक इसे कतई नजरअंदाज न करें।
तुड़ाई
जब मशरूम के पीलियस (टोपी) का व्यास 3-4.5 सेंमी तक हो जाए और स्टाइप (तने) की लंबाई से लगभग दुगुना हो जाए तो इसकी तुडमई कर लेनी चाहिए।
सरकारी ऋण-व्यवस्था
मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को सरकार व राज्य सरकार की ओर से आर्थिक सहायता की व्यवस्था है। यह सहायता कृषि मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा दी जाती है। इसमें पांच लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता का प्रबंध है।
पादप रोगविज्ञान संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में सीनियर साइंटिस्ट डॉ. आर. के. शर्मा ने बताया कि भारत में दो तरह से मशरूम का उत्पादन किया जाता है, एक बटन मशरूम उत्पादन और दूसरा ढींगरी उत्पादन। उत्तर भारत की प्राकृतिक परिस्थितियों में बटन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। भारत वर्ष में कुल मशरूम का उत्पादन 120 हजार टन है, जिसमें बटन मशरूम के उत्पादन का योगदान 85 प्रतिशत है। ऑयस्टर मशरूम को भारत में ढींगरी मशरूम के नाम से जाना जाता है। दरअसल ऑयस्टर मशरूम काफी सुगंधित तथा जायकेदार होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, रेशे तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इस कारण इसका उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है।
जहां तक लागत या बचत की बात है तो यह बात मोटे तौर पर ही बताई जा सकती है। अगर हम 2 से 3 लाख रुपए की लागत लगाते हैं तो इससे हमें 40 हजार रुपए प्रतिमाह का मुनाफा मिलेगा। देशभर के लाखों छात्र इस व्यवसाय को अपना कर सेल्फ एंप्लॉयमेंट के जरिए अपना कारोबार चला रहे हैं। उत्तर भारत के राज्यों में मशरूम का उत्पादन सबसे अधिक होता है। इसकी खास वजह तापमान और नमी है।
मशरूम: पौष्टिक आहार
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें खनिज, लवण, विटामिन तथा एमीनो एसिड जैसे पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। मशरूम हृदय रोग एवं मधुमेह जैसी बीमारियों के इलाज में सहायक है। मशरूम में फोलिकएसिड तथा लावणिक तत्व भी पाए जाते हैं, जो खून में लालकण बनाने में मददगार होते हैं।
प्रशिक्षण संस्थान
राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन बागबानी भवन, पंखा रोड, सागरपुर, नई दिल्ली।
पादप रोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली।
राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केन्द्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश।
स्नोव्यू मशरूम लैब एवं ट्रेनिंग सेंटर, नरेला, दिल्ली।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना, पंजाब।
हिसार कृषि अनुसंधान एवं पादप रोग संभाग केन्द्र हिसार, हरियाणा।
इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटय़ूट इलाहाबाद, यूपी
आनंद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, आनंद, गुजरात।
जेबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर, उत्तरांचल।