श्वेत बटन मशरूम लागत कम मुनाफ़ा ज्यादा
भारत में इसका उत्पादन सत्तर के दशक में शुरू हुआ था। भारत के पंजाब राज्य में सबसे अधिक मशरूम की खेती होती है। यहां कुल उत्पादन का 51 फ ीसदी मशरूम अकेले ही उगाया जाता है। वहीं, अन्तरराष्ट्रीय मशरूम उत्पादन में चीन पहले नंबर पर है।
मशरूम एक तरह की फफूंद होती है, जो खाने मेें काफी स्वादिस्ट होता है। इसकी चार प्रजातियां होती हैं, जिन्हें खाने में इस्तेमाल किया जाता है। जैसे सफेद बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया मशरूम और पुआल मशरूम होते हैं। इसमें प्रोटीन की अच्छी मात्रा के साथ ही विटामिन -बी कॉम्पलेक्स, मिनरल तथा आयरन भी पाया जाता है।
देश में श्वेत बटन मशरूम की प्रजाति की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। देश के मैदानी एवं पहाड़ी भागों में श्वेत बटन मशरूम को उगाया जाता है। इसके उत्पादन के लिए 22-25 डिग्री सेल्सियस तापमान और फ लन के समय 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। साथ ही 80-85 प्रतिशत नमी की जरूरत पड़ती है।
मशरूम की खेती करने का तरीका खाद्यान एवं बागवानी फ सलों से बिल्कुल अलग है। इसलिए इसकी खेती शुरू करने से पहले प्रशिक्षण लेना लाभकारी होता है। मशरूम उगाने की शुरूआत एक 10 फीट लंबे 10 फीट चौड़े और 12 फीट ऊंचे कमरे से की जा सकती है।
श्वेत बटन मशरूम उगाने का तरीका
श्वेत बटन मशरूम को कृत्रिम ढंग से तैयार की गई खाद (कम्पोस्ट) पर उगाया जाता है। उगाने के लिए खाद (कम्पोस्ट) तीन विधियों से तैयार की जाती है…
छोटी विधि : इससे खाद तैयार करने में समय कम लगता है, लेकिन अधिक पूंजी और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
लम्बी विधि : छोटे स्तर पर मशरूम उत्पादन करने के लिए लम्बी विधि से खाद तैयार की जाती है।
इंडोर विधि : इसके द्वारा बनाई गई खाद मशरूम उत्पादन में उपयुक्त मानी जाती है।
कम्पोस्ट खाद बनाने मेें इनका करें इस्तेमाल
1. गेहूं का भूसा – 300 किलोग्राम
2. कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (कैन) खाद- 9 किलोग्राम
3. यूरिया – 4 किलोग्राम
4. म्यूरेट ऑफ पोटाश खाद – 3 किलोग्राम
5. सुपर फाश्फैट खाद – 3 किलोग्राम
6. चोकर (गेहूं का) – 15 किलोग्राम
7. जिप्सम – 20 किलोग्राम
कम्पोस्ट तैयार करने की विधि
1. मिश्रण तैयार करना
भूसे या भूसे और पुआल के मिश्रण को पक्के फ र्श पर 1-2 दिन (24-48 घण्टों) तक रुक-रुक कर पानी का छिड़काव करके गीला किया जाता है। भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना और अच्छा रहता है। साथ ही गीले भूसे का ढेर बनाने के 12-16 घंटे पहले, जिप्सम को छोड़कर अन्य सभी सामग्री जैसे उर्वरकों और चोकर को एक साथ मिलाकर हल्का गीला कर लेते हैं। साथ ही ऊपर से गीली बोरी से ढक देते हैं।
2. ढेर बनाना
गीले किये गये मिश्रण (भूसे और उर्वरक आदि) को मिलाकर करीब 5 फु ट चौड़ा व 5 फु ट ऊंचा ढेर बनाते हैं। ढेर की लम्बाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है। लेकिन ऊंचाई और चौड़ाई ऊपर लिखे माप से अधिक और कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर पांच दिन तक बना रहता है। बाहरी परतों में नमी कम होने पर आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव किया जा सकता है। दो तीन दिनो में इस ढेर का तापमान करीब 65 -70 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, जोकि एक अच्छा संकेत है।
3.
पलटाई में खाद (कम्पोस्ट) में अमोनिया और नमी का परीक्षण किया जाता है। नमी का स्तर जानने के लिए खाद को मुट्ठी में दबाते हैं, यदि दबाने पर हथेली और उंगलियां गीली हो जायं,े लेकिन खाद से पानी निचुड़कर न बहे। इस अवस्था में खाद में नमी का स्तर उचित होता है और ऐसी दशा में कम्पोस्ट में 68-70 प्रतिशत नमी मौजूद होती है, जोकि बीजाई के लिए उपयुक्त है।
4 – बीजाई (स्पानिंग) करना
बीजाई करने से पहले बीजाई स्थान और बीजाई में प्रयुक्त किये जाने वाले बर्तनों को 2 प्रतिशत फ ार्मेलीन घोल में धोयें। बीजाई का काम करने वाले व्यक्ति अपने हाथों को साबुन से धोयें, ताकि खाद में किसी प्रकार के नुकसान से बचा जा सके। इसके बाद 0.5 से 0.75 प्रतिशत की दर से बीज मिलायें, यानि कि 100 किग्रा. तैयार कम्पोस्ट के लिए 500-750 ग्राम बीज पर्याप्त है।
5 – बीजित खाद का पॉलीथीन के थैलों में भरना
अब बीजाई करने के साथ-साथ, 10-12 किलोग्राम बीजित खाद को पॉलीथीन के थैलों में भरते जायें और थैलों का मुंह, कागज की थैली के समान पॉलीथीन मोड़कर बंद कर दें। यहां यह ध्यान रखें कि थैले में खाद 1 फु ट से ज्यादा न हो। फिर इन थैलों को कमरे में बने बांस के टांड़ पर एक-दूसरे से सटाकर रख दें। खाद को बीजाई करने के बाद टांड़ों को करीब 6 इंच मोटाई में ऐसे ही फैला कर रख सकते हैं और उसके नीचे पॉलीथीन की शीट बिछा दें।
खाद को फैलाने के बाद ऊपर से अखबारों से ढक दिया जाता है और अखबारों पर दिन में एक या दो बार पानी का छिड़काव किया जाता है। उसके बाद कमरे में 22-25 डिग्री सेल्सियस तापमान व 80-90 प्रतिशत नमी बनाये रखें। तापमान को बिजली चलित उपकरणों जैसे कूलर, हीटर आदि का प्रयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है। नमी कम होने पर कमरे की दीवारों पर पानी का छिड़काव करके और फ र्श पर पानी भरकर नमी को बढ़ाया जा सकता है।
मिश्रण की केङ्क्षसंग
खाद को केसिंग मिश्रण की परत से ढकना पड़ता है, तभी मशरूम में कलियां निकलना आरंभ होती है। केसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी है, जिसे दो साल पुरानी गोबर की खाद और दोमट मिट्टी (बराबर हिस्सों में) में मिलाकर तैयार किया जाता है। केसिंग मिश्रण को रोगाणु मुक्त करने के लिए 2 प्रतिशत फ ार्मेलीन के घोल से उपचारित करते हैंै। केसिंग तैयार करने का कार्य केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के लगभग 15 दिन पहले समाप्त कर देना चाहिए। यानि कि बीजाई के बाद कार्य शुरू कर देना चाहिए, जिससे आपका काफी समय बच सकता है।
केसिंग के बाद रख रखाव
केसिंग प्रक्रिया पूरी करने के पश्चात अधिक देखभाल करनी पड़ती है। प्रतिदिन थैलों में नमी का जायजा लेना चाहिये और आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करना चाहिए। केसिंग करने के लगभग एक सप्ताह बाद जब कवक जाल केसिंग परत में फैल जाये, तब कमरे के तापमान को 22-25 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 16-18 डिग्री सेल्सियस पर ले आना चाहिए। इस तापमान को पूरे फ सल उत्पादन काल तक बनाये रखना चाहिए। इसी तापमान पर छोटी-छोटी मशरूम कलियां बनना शुरू हो जाती हं,ै जो शीघ्र ही परिपक्व मशरूम में बदल जाती है।
मशरूम की तुड़ाई
मशरूम की कलियां बनने के लगभग 2-4 दिन बाद, विकसित होकर बड़े-बड़े मशरूम में परिवर्तित हो जाती हैं। जब इन मशरूम की टोपी का आकार 3-4 से.मी हो तथा टोपी बंद हो तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिये और मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिए। इसे 2-3 दिन तक फ्रिज में रख सकते हैं। लम्बे समय तक भण्डारण करने के लिये मशरूम को 18 प्रतिशत नमक के घोल में रखा जा सकता है। एक क्विंटल कम्पोस्ट से औसतन 12-15 किलोग्राम मशरूम की उपज की जा सकती है।
अच्छी आमदनी का जरिया है मशरूम
मौसमी श्वेत बटन मशरूम उत्पादन में प्रति किलोग्राम मशरूम पैदा करने में कम से कम 25-35 रुपये प्रति किलोग्राम की बचत होती है। मशरूम उत्पादन में कुल पचास हजार तक खर्च आता है, जिससे आमदनी करीब डेढ़ लाख रुपए होती है। मंडियों में मशरूम के अच्छे दाम न मिलने के कारण किसान मशरूम को बड़े व्यापारियों और बेकरियों में बेचते हैं, जिससे उनको दुगना लाभ होता है। मौजूदा समय में एक किलो श्वेत बटन मशरूम की कीमत सौ से एक सौ बीस रुपए है।