उर्वरक

उर्वरक (Fertilizers), ये ऐसे रसायनिक पदार्थ होते हैं, जो पेड-पौधों की वृद्धि में बहुत ही सहायक होते हैं। प्राय: पौधों को उर्वरक दो प्रकार से दिये जा सकते हैं- (1) ज़मीन में डालकर, जिससे ये तत्व पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। (2) पत्तियों पर इनका छिड़काव करने से पत्तियों द्वारा ये अवशोषित कर लिये जाते हैं। उर्वरक पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हैं। उर्वरक (Fertilizers) कृषि में उपज बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रसायन हैं जो पेड-पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पानी में शीघ्र घुलने वाले ये रसायन मिट्टी में या पत्तियों पर छिड़काव करके प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधे मिट्टी से जड़ों द्वारा एवं ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा उर्वरकों को अवशोषित कर लेते हैं। उर्वरक, पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन हैं लेकिन इनके प्रयोग के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। ये लंबे समय तक मिट्टी में बने नहीं रहते हैं। सिंचाई के बाद जल के साथ ये रसायन जमीन के नीचे भौम जलस्तर तक पहुँचकर उसे दूषित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सुक्ष्मजीवों के लिए भी ये घातक साबित होते हैं। इसलिए उर्वरक के विकल्प के रूप में जैविक खाद का प्रयोग तेजी से लोकप्रीय हो रहा है। भारत में रासायनिक खाद का सर्वाधिक प्रयोग पंजाब में होता है।
उर्वरकों के प्रकार
कृषि में फ़सलों के अधिक उत्पादन व पौधों की वृद्धि के लिए, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम आदि तत्वों की आवश्यकता होती है। पौधे इन तत्वों को भूमि से ग्रहण करते हैं। लेकिन धीरे-धीरे भूमि में इन तत्वों की कमी हो जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए कृत्रिम रूप से बनाये गए तत्वों के यौगिक भूमि में मिलाए जाते हैं। कृत्रिम रूप से बनाये गए इन यौगिकों को ही उर्वरक कहते हैं। यदि तत्वों के इन यौगिकों को भूमि में न मिलाया जाए, तो भूमि की उत्पादकता कम हो जायेगी। उर्वरक कई प्रकार के होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार से है-

पादप पोषण (Plant Nutrition) के अन्तर्गत पादपों के विकास के लिए आवश्यक रासायनिक तत्त्वों एवं यौगिकों का अध्ययन किया जाता है।

सत्रह (17) अत्यावश्यक पादप-पोषक तत्व हैं। कार्बन, आक्सीजन, तथा जल के अलावा निम्नलिखित खनिज तत्त्व आवश्यक हैं-

प्राथमिक पोषक तत्त्व : नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटाश (K)
द्वितीयक पोषक तत्त्व : कैल्सियम (Ca), सल्फर (S), मैगनीशियम (Mg), सिलिकन (Si)
सूक्ष्म पोषक तत्त्व : बोरॉन (B), क्लोरीन (Cl), मैगनीज (Mn), लोहा (Fe), जस्ता (Zn), ताँबा (Cu), मॉलीब्लेडनम (Mo), निकल (Ni), सेलेनियम (Se) और सोडियम (Na)

उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय

भारत देश  में 80 प्रतिशत लोग खेती में लगे हैं। अधिक फसल उत्पादन के लिये आधुनिक कृषि तकनीक में उन्नत बीज, समय से फसल बुआई, कोड़ाई, पटवन, उर्वरक का उपयोग, खरपतवार नियंत्रण, कीट व रोग नियंत्रण, समय से कटाई एवं फसल चक्र का उपयोग करने लगेे हैं। इनमें सबसे महंगा उपादान उर्वरक है।

उर्वरक की मात्रा को प्रभावित करने वाले करक

फसल की किस्म :- अलग-अलग फसलों कि पोषक तत्व संम्बधी आवष्यकता अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लियें दलहनी फसलों की नत्रजन की आवष्यकता गेहॅू या गन्नों की फसल की तुलना में कम होती हैं। 

मृदा उर्वरता व गठन :- जो मृदाएं कमजोर अथवा कम उर्वरा होती हैं उन में अधिक खाद की आवष्यकता होती हैं। जैसे बलुई भूमियों में दोमट मृदाओं की अपेक्षा एक ही फसल को अधिक खाद देना पड़ता हैं। 
शस्य चक्र :- फसल चक्र में यदि हरी खाद उगा रहें हैं या दलहनी फसल उगा रहें है, तो इसके बाद बाली फसलों को नत्रजन के खादों की कम आवष्यकता हैं। 

उर्वरकों का सही फसल उपयोग क्षमता बढ़ांए

फसल के अछ्छे उत्पादन पाने के लिए  अधिक उर्वरकों  की आवश्यकता नही बल्कि उनका शी मात्रा एवं सही समय पर प्रयोग फसल उन्पदन को लाभकारी बना देता है  कई बार हम लोग  अच्छी उपज के लालच में उर्वेर्कों  का अंधाधुंध प्रयोग करने लगते है जो हानिकारक हो जाता है

नीचे प्रमुख उर्वेर्कों  के बारे में जानकारी दी जा रही है 

उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ांए

खाद की मात्रा को निर्घारित करने वाले कारक

शस्य चक्र :- फसल चक्र में यदि हरी खाद उगा रहें हैं या दलहनी फसल उगा रहें है, तो इसके बाद बाली फसलों को नत्रजन के खादों की कम आवष्यकता हैं। 

फसल की किस्म :- अलग-अलग फसलों कि पोषक तत्व संम्बधी आवष्यकता अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लियें दलहनी फसलों की नत्रजन की आवष्यकता गेहॅू या गन्नों की फसल की तुलना में कम होती हैं।