उर्वरक की मात्रा को प्रभावित करने वाले करक
फसल की किस्म :- अलग-अलग फसलों कि पोषक तत्व संम्बधी आवष्यकता अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लियें दलहनी फसलों की नत्रजन की आवष्यकता गेहॅू या गन्नों की फसल की तुलना में कम होती हैं।
मृदा उर्वरता व गठन :- जो मृदाएं कमजोर अथवा कम उर्वरा होती हैं उन में अधिक खाद की आवष्यकता होती हैं। जैसे बलुई भूमियों में दोमट मृदाओं की अपेक्षा एक ही फसल को अधिक खाद देना पड़ता हैं।
शस्य चक्र :- फसल चक्र में यदि हरी खाद उगा रहें हैं या दलहनी फसल उगा रहें है, तो इसके बाद बाली फसलों को नत्रजन के खादों की कम आवष्यकता हैं।
खरपतवार का प्रकोप :- यदि खेत में खरपतवारों का प्रकोप अधिक हैं, तो फसल की खाद सम्बधी आवष्यकता बढ़ जाती हैं।
मृदा में नमी की मात्रा :- मृदा में नमी की मात्रा कम हैं। और सिंचाई के साधन भी उपलब्ध नहीं हैं तो भूमि में खाद की मात्रा भी कम दी जाती हैं।
खाद की किस्म :- एक ही तत्व को खेत में देने के लिये, बाजार में कई एक उर्वरक उपलब्ध होते हैं। जिन खादों में तत्व की प्रतिषतता अधिक होती हैं। उनकी मात्रा कम करते हैं।
मौसम :- शुष्क मौसम होने पर खेत में उर्वरक की कम मात्रा प्रयोग की जाती है। अधिक वर्षा वालें क्षेत्र में खाद तत्व उद्वीपन से या अपधावन द्वारा अधिक नष्ट होते हैं।
खाद देने की विधि:- खाद देने की विधि भी खाद की मात्रा को कम या अधिक करती है। उदाहरण के लिए हम खेत में नत्रजन देने के लिए यूरिया उर्वरक के घोल का छिड़काव करें, तो फसल की आवष्यकता पूर्ति के लिए कम खाद की आवष्यता होगी और यदि खाद ठोस रूप में मृदा में बिखेर दी जाये तो इसकी अधिक मात्रा की आवष्यकता होगी । यूरिया को हलकी नम मिट्टी के साथ रात भर मिला कर रखें तथा दूसरे दिन मिट्टी का छिड़काव करें ।