कीट
कीट अर्थोपोडा संघ का एक प्रमुख वर्ग है। इसके 10 लाख से अधिक जातियों का नामकरण हो चुका है। पृथ्वी पर पाये जाने वाले सजीवों में आधे से अधिक कीट हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि कीट वर्ग के 3 करोड़ प्राणी ऐसे हैं जिनको चिन्हित ही नहीं किया गया है अतः इस ग्रह पर जीवन के विभिन्न रूपों में कीट वर्ग का योगदान 90% है। ये पृथ्वी पर सभी वातावरणों में पाए जाते हैं। सिर्फ समुद्रों में इनकी संख्या कुछ कम है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट हैं: एपिस (मधुमक्खी) व बांबिक्स (रेशम कीट), लैसिफर (लाख कीट); रोग वाहक कीट, एनाफलीज, क्यूलेक्स तथा एडीज (मच्छर); यूथपीड़क टिड्डी (लोकस्टा); तथा जीवीत जीवाश्म लिमूलस (राज कर्कट किंग क्रेब) आदि।
कीट प्राय: कोई भी छोटा, रेंगनेवाला, खंडों में विभाजित शरीरवाला और बहुत सी टाँगोंवाला प्राणी कीट कह दिया जाता हैं, किंतु वास्तव में यह नाम विशेष लक्षणोंवाले प्राणियों को दिया जाना चाहिए। कीट अपृष्ठीवंशियों (Invertebrates) के उस बड़े समुदाय के अंतर्गत आते है जो सन्धिपाद (Anthropoda) कहलाते हैं। लिनीयस ने सन् 1735 में कीट (इनसेक्ट=इनसेक्टम्=कटे हुए) वर्ग में वे सब प्राणी सम्मिलित किए थे जो अब संधिपाद समुदाय के अंतर्गत रखे गए हैं। लिनीयस के इनसेक्ट (इनसेक्टम्) शब्द को सर्वप्रथम एम. जे. ब्रिसन ने सन् 1756 में सीमित अर्थ में प्रयुक्त किया। तभी से यह शब्द इस अर्थ में व्यवहृत हो रहा है। सन् 1825 में पी. ए. लैट्रली ने कीटों के लिये षट्पाद (Hexapoda) शब्द का प्रयोग किया, क्योंकि इस शब्द से इन प्राणियों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लक्षण व्यक्त होता है।
गन्ने की फसल में पायरिला कीट की रोक-थाम के लिये गन्ना विकास विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी
Submitted by Aksh on 14 May, 2020 - 06:15गन्ने की फसल को खतरा अमेरिकी मूल का विनाशकारी कीट फाल आर्मी वर्म
Submitted by Aksh on 13 May, 2020 - 14:17लॉकडाउन के चलते जहां समूचे देश में मुसीबत खड़ी है तब किसान ने एक बार अहसास कराया कि वह देश की अर्थव्यवस्था की मूल अक्ष हैं।लेकिन ईश्वर भी किसानों की परीक्षा लेता ही रहता है अभी प्रदेश के सभी किसानों का गन्ना चीनी मिल तक पहुंच नही पाया कि गन्ने में एक नई मुसीबत खड़ी हो गई है।
गन्ने की फसल को खतरा पैदा हो गया है। अमेरिकी मूल का विनाशकारी कीट फाल आर्मी वर्म गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचा रहा है।
धान पर टिड्डियों का हमला
Submitted by Aksh on 8 October, 2016 - 23:49पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के माहिरों को सर्वेक्षण में पता चला है कि धान और बासमती के कुछ खेतों में टिड्डियों का हमला हुआ है।
माहिरों ने सलाह दी है कि पीएयू की सिफारिशों के अनुसार इस हमले को रोकने के लिए फसलों पर दवा का छिड़काव किया जाए।
पंजाब में सफेद पीठ और भूरी पीठ वाला टिड्डा धान की फसल का नुकसान करता है। यह टिड्डे पौधे के तने के पास ही रस चूसते हैं और अक्सर दिखाई नहीं देते। इनके हमले से पौधे के पत्ते ऊपरी तरफ से पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और धीरे धीरे सारा पौधा सूख जाता है।