तिलहन

तिलहन

तिलहन उन फसलों को कहते हैं जिनसे वनस्पति तेल का उत्पादन होता है।  तिलहन वे फ़सलें हैं, जिनसे तेल उत्पन्न किया जाता है। तिलहनी फ़सलों में तिल, मूँगफली, सोया और सूरजमुखी महत्त्वपूर्ण हैं। तिलहन के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है। यहाँ विश्व की 24 प्रतिशत मूँगफली, 25 प्रतिशत तिल, 20 प्रतिशत रेंडी और 17 प्रतिशत सरसों उत्पन्न की जाती है।
तिलहन के अन्तर्गत दो प्रकार के बीज सम्मिलित किए जाते हैं। एक वे जिनका दाना छोटा होता है, जैसे- अलसी, सरसों, राई और तिल आदि। दूसरा वे, जिनका दाना बड़ा होता है, जैसे- मूँगफली, बिनौला, सोयाबीन, सूरजमुखी, महुआ तथा नारियल आदि। छोटे दाने वाले तिलहन अधिकांशतः उत्तरी भारत में और बड़े दाने वाले दक्षिणी भारत में होते हैं। देश में 1980 के पश्चात् सोयाबीन एवं सूरजमुखी के उत्पादन में भी तेजी से वृद्धि हुई हैं।
सभी प्रकार के तिलहनों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टी, वर्षा एवं तापमान की आवश्यकता होती है। अतः ये भारत के सभी राज्यों में न्यूनाधिक मात्रा में पैदा किए जाते हैं। भारत में नियोजन काल में तिलहनों के उत्पादन क्षेत्र एवं कुल उत्पादन में यद्यपि वृद्धि हुई, फिर भी यह हमारी मांग की तुलना में कम है। भारत में वर्ष 1960-1961 में 13.8 मिलियन हेक्टेअर क्षेत्र में तिलहन की खेती की गई, जिसमें कुल 7 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन हुआ। इस वर्ष प्रति हेक्टेअर तिलहन का उत्पादन 507 कि.ग्रा. रहा। वर्ष 2008-2009 में कुल उत्पादन 27.5 मिलियन हेक्टेअर क्षेत्र में तिलहन की खेती की गई, जिसमें कुल 28.2 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन हुआ। वर्ष 2008-2009 में तिलहन का प्रति हेक्टेअर उत्पादन 1,016 कि.ग्रा. रहा।

उपर्युक्त तिलहनों में मूँगफली, सरसों एवं तारामीरा तिल, अलसी, अरण्डी, सोयाबीन, सूरजमुखी, सफ्लोवर (कर्डी) तथा नाइजर सीड सम्मिलित है। नारियल, बिनौला तथा अखाद्य तिलहन, जैसे- नीम, महुआ आदि इसमें शामिल नहीं हैं।

भारत में तिलहनों की उपाज बढ़ाने के लिये पीत क्रांति की संकल्पना दी गयी। जर्मनी में सरसों के तेल का उपयोग जैव ईंधन के रूप में भी किया जाता है।

 

अलसी की खेती

अलसी बहुमूल्य औद्योगिक तिलहन फसल है। अलसी की खली दूध देने वाले जानवरों के लिये पशु आहार के रूप में उपयोग की जाती है तथा खली में विभिन्न पौध पौषक तत्वो की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है। 

सरसों की फसल के मुख्य कीट एवं उनका जैविक नियन्त्रण

सरसों की फसल के मुख्य कीट एवं उनका जैविक नियन्त्रण

सरसों (तोरिया, राया और सरसों) का भारत वर्ष में विशेष स्थान है तथा यह देश में रबी की मुख्य फसल है। सरसों में अनेक प्रकार के कीट समय-समय पर आक्रमण करते हैं लेकिन 4-5 कीट ही आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन कीटों की सही पहचान कर उचित रोकथाम की जाएं ।

1.   बालों वाली सुण्डी (कातरा)

सोयाबीन की वैज्ञानिक खेती

सोयाबीन में लगभग 20 प्रतिशत तेल एवं 40 प्रतिशत उच्‍च गुणवत्‍ता युक्‍त प्रोटीन होता है। इसकी तुलना में चावल में 7 प्रतिशत मक्‍का में 10 प्रतिशत एवं अन्‍य दलहनों में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है। सोयाबीन में उपलब्‍ध प्रोटीन बहुमूल्‍य अमीनो एसिड लाभसिन (5 प्रतिशत) से स‍मृद्ध होता है। अधिकांश अनाजों में इसकी कमी होती है। इसके अतिरिक्‍त इसमें खनिजों, लवण एवं विटामिनों (थियामिन एवं रिवोल्‍टाविन) की अच्‍छी मात्रा पायी जाती है। इसके अंकुरित दाने में विटामिन सी की पर्याप्‍त मात्रा पाईजाती है।

कैसे मिले सोयाबीन से अधिक उपज

 किसानों को सोयाबीन उगाने का लगभग 40-50 साल का अनुभव तो हो ही गया है। फिर भी इसकी उपज के हिसाब से मध्यप्रदेश का प्रति हैक्टेयर औसत उत्पादन लगभग एक टन (दस क्विंटल) प्रति हैक्टेयर के आसपास ही झूल रहा है। कारण कुछ किसान यदि इसकी उपज 6 क्विंटल प्रति बीघा ले रहे हैं, तो ऐसे किसान भी हैं जो प्रति बीघा डेढ़ से दो क्विंटल से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उत्पादन क्षमता में यह फसल कमजोर नहीं है।

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