ढैंचा की खेती बढ़ाये खेतों में पोषक तत्व

जमीन कि उर्वरक शक्ती को बंधने के लिये और उसका लाभ किसानो को पहुचाने के लिये कृषि विज्ञान केंद्र हरसंभव कोशिश करता है| उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में कृषी विज्ञान केंद्र ढैंचा (हरी खाद) की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों से10 एकड़ में इसकी खेती करने का प्रयोग कर रहे है|

 

इसकी खेती से मिट्टी के पोषक तत्वों में तो वृद्धि होती ही है कार्बनिक पदार्थो के साथ जीवाश्म की मात्रा भी बढ़ जाती है। एक दशक पूर्व तक यहां के किसान खेतों में पोषक तत्वों को बढ़ावा देने के लिए सनई व ढैंचा की खेती किया करते थे। इससे उन्हें हरी खाद तो मिलती ही थी। सनई से रस्सी भी बनाने का लाभ मिलता था। लेकीन हाल के वर्षो में किसानो ने खेतों में रासायनिक खादों की मात्रा बढ़ा दी है| परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरा शक्ति दिन ब दिन कम होती जा रही है|

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि ढैंचा की खेती के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में इसकी बोआई कर देनी चाहिए। प्रति एकड़ हरी खाद के लिए 10 किलो बीज होना चाहिए| जुलाई के प्रथम सप्ताह तक 2 से ढाई फीट के पौधे हो जाते हैं। इसे हल द्वारा पलटाई करके दूसरे तीसरे दिन धान की रोपाई आसानी से की जा सकती है। इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ के साथ जीवाश्म की मात्रा बढ़ जाती है। जो मिट्टी में नमी कायम रखने के साथ पानी की आवश्यकता को भी कम कर देता है। ढैंचे की हरी खाद प्राय: सभी प्रकार के मिट्टी के लिए आवश्यक है। मिट्टी में हरी खाद डालने से किसानों को रासायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं महसूस होती|

साभार- krishibhoomi-