अफीम की खेती पर मौसम की मार, अच्छी ठंड नहीं पड़ने से कमजोर पड़े पौधे

अफीम की खेती पर मौसम की मार, अच्छी ठंड नहीं पड़ने से कमजोर पड़े पौधे

राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया उपखंड में पिछले साल की तुलना में ठंड कम पड़ने से न केवल अफीम के पौधों की ग्रोथ में कमी आई है, बल्कि पौधों में रोग लगने से भी खेती पर बुरा असर पड़ने की संभावना बढ़ गई है. इससे किसानों में चिंता देखी जा रही है क्योंकि उन्हें अफीम उत्पादन में कमी का डर सताने लगा है. यहां अफीम को काला सोना भी कहा जाता है.

भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया मांडलगढ़ और कोटड़ी उपखंड के साथ-साथ जहाजपुर उपखंड के कुछ गांवों में पट्टे पर रबी के मौसम में अफीम की खेती की जाती है. दिसंबर महीने का तीसरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी बिजोलिया क्षेत्र में अभी भी दिन का तापमान 26 से 28 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 8 से 9 डिग्री बना हुआ है. पिछले साल इन्हीं दिनों में यहां का तापमान दिन में 20 डिग्री के आसपास और रात में 5 से 6 डिग्री सेल्सियस रहा था. इससे अफीम के पौधों की बहुत अच्छी ग्रोथ हुई थी और उत्पादन भी अच्छा मिला था. मगर इस बार मौसम में ठंड का असर कम होने से किसानों के चेहरे मुरझा गए हैं.

फसल खराब होने से किसान परेशान

अकेले बिजोलिया उपखंड में नारकोटिक्स विभाग द्वारा लगभग 35 पट्टे जारी किए गए हैं. यहां अफीम उत्पादक किसान नवंबर महीने में अफीम की पौध लगाते हैं और फरवरी और मार्च महीने में डोडे आने पर उन पर चीरा लगाते हैं. अंत में विभाग द्वारा अप्रैल माह में अफीम की तुलाई करके उसकी क्वालिटी के आधार पर काश्तकारों को भुगतान होता है.

बिजोलिया के चांद जी की खेड़ी गांव के अफीम उत्पादक किसान राजेश धाकड़ कहते हैं कि अमूमन अफीम के पौधों को 8 से 10 बार पानी देकर सिंचाई की जाती है. लेकिन अभी दिसंबर समाप्त भी नहीं हुआ और उन्होंने 8 से 10 बार सिंचाई कर दी है. आगे कम से कम 5 से 6 बार सिंचाई करनी होगी. इतना कुछ करने के बाद भी पौधों की ग्रोथ पिछले साल की तुलना में आधी है. पत्ते पीले पड़ गए हैं. पत्तों पर काले निशान होने से झुलसा रोग लग चुका है.

ठंड नहीं पड़ने का असर

अच्छी सर्दी नहीं पड़ने से अफीम के पौधों में फुटान (vegetative growth) नहीं हो रहा है. जहां इस समय तक अफीम के पौधों की ऊंचाई साढ़े तीन से चार फीट तक हो जाती थी, अभी यह ऊंचाई मात्र 2 फीट रह गई है. जहां पौधों में 10 से 15 डंठल निकल आते थे और उन पर डोडे लगते हैं, अभी उनकी संख्या केवल 2 से 3 रह गई है.

किसान बताते हैं कि पहले अफीम के पौधों को सर्दी के मौसम में 15 दिन में एक बार पानी देना होता था. अब यह संख्या घटकर सात से आठ दिन की रह गई है. पौधों में निराई-गुड़ाई के समय लगभग 25 से 30 दिन तक पानी नहीं देना होता था. मगर इस बार निराई- गुड़ाई के बाद 19 दिन बाद ही पानी देना पड़ा है. इसके बाद भी खेत में गर्मी के कारण कई पौधे खराब हो गए. पौधों का ठीक से विकास नहीं होने से जड़ें कमजोर हो गईं और खेत में पौधे गिरने लगे. 

खेती के लिए ऐसा हो मौसम

अफीम की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु और 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ सभी प्रकार की मिट्टी को उपयुक्त बताया गया है. हालांकि इसकी खेती के लिए चिकनी या दोमट मिट्टी को ज्यादा बेहतर बताया गया है जिसका PH 7 हो. साथ ही, ठंडी जलवायु में इसका उत्पादन अच्छा होता है. दिन और रात का तापमान इसके उत्पादन को बहुत प्रभावित करता है. पाले का मौसम, बादल या बारिश का मौसम न केवल अफीम की मात्रा कम करता है, बल्कि उसकी क्वालिटी भी कम कर देता है.

रोगों से ऐसे करें बचाव

महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के अनुसंधान निदेशक डॉ शांति कुमार शर्मा ने इस बारे में बताया कि कड़ाके की ठंड नहीं पडने से अफीम के पौधों में काली मस्सी रोग लग गया है. यह रोग रात और दिन के तापमान में वृद्धि के कारण फैलता है. डॉ शांति कुमार शर्मा ने यह भी बताया कि मृदुरोमिल फफूंद रोग एक बार लग जाए तो अगले 3 साल तक उस खेत में अफीम नहीं बोना चाहिए. रोग की रोकथाम के लिए मेटेलेक्सिल के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव बुवाई के 30, 50 और 70 दिन के बाद करना चाहिए. यदि यह केमिकल उपलब्ध न हो तो 2 किलो मैनकोज़ेब प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए.