बजट 2018 में किसान

बजट 2018 और किसान

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के 2018-19 को किसानों और ग्रामीणों का बजट बताया जा रहा है। पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली फिर प्रधानमंत्री ने बार-बार जोर देखकर कहा कि ये बजट किसानों और गांव का बजट है। हम किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करेंगे और हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे।

उत्तर प्रदेश में जहाँ भा जा पा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई वहाँ कर्जमाफी के बाबजूद किसान खुश नजर नही आ रहे है साथ ही बजट में किसानों को दरकिनार कर दिया गया है । 

इस साल का आम बजट देखने से लगता है कि सरकार चुनाव की जल्दीबाजी में है. बजट को पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन) कह सकते हैं।   हालांकि, सरकार के नजरिये से इसे सकारात्मक बजट कहा जा सकता है।  खेती को लेकर सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का इरादा जाहिर कर रही है।   लेकिन, इस आमदनी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र का ग्रोथ 12 फीसदी से भी ज्यादा होना चाहिए।  आखिर किसानों की आमदनी दोगुनी होगी कैसे? यह बड़ा सवाल है. कॉरपोरेट सेक्टर की बात करें, तो काफी उदारता के साथ रियायत दी गयी । मैं वित्त मंत्री जी के इस चुनावी बजट को  जानबूझ क्र ओपा गया बजट कहूँगा । किसानों के बजट के लिए अगर अंक देने की बात हो तो सरकार के इस बजट को मैं  10 में से  3 अंक दूंगा ।

डॉ .आर.के सिंह 

बजट को लेकर कहा जा रहा है ये आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर लॉलीपॉप है। इस वर्ष मध्य प्रदेश और राजस्थान  में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। 

बजट 2018 में नए कर्मचारियों के ईपीएफ में सरकार 12 फीसदी देगी। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की सैलरी बढ़ाई जाएगी। बढ़ने के बाद राष्ट्रपति की सैलरी 5 लाख रुपए महीने हो जाएगी। वहीं उपराष्ट्रपति की सैलरी 4 लाख रुपए महीने और राज्यपाल की सैलरी 3.5 लाख रुपए महीने हो जाएगी। सांसदों के भत्ते हर पांच साल में बढ़ेंगे। एयरपोर्ट की संख्या 5 गुना करने की कोशिश की जा रही है। स्मार्ट सिटी के लिए 99 शहर चुने गए हैं। 100 स्मारकों को आर्दश बनाया जाएगा। धार्मिक पर्यटन शहरों के लिए हेरिटेज योजना बनाई जाएगी। लेकिन किसान तो वाही का वही ठहर गया है किसानों के लिए यह बजट लाभकारी सिद्ध नही होगा । 

  आखिर किसानों की आमदनी दोगुनी होगी कैसे? यह बड़ा सवाल है. कॉरपोरेट सेक्टर की बात करें, तो काफी उदारता के साथ रियायत दी गयी। बिहार के संदर्भ में बात की जाये, तो लगता है कि केंद्रीय बजट के क्षितिज पर बिहार गायब ही है।  

सरकार ने सभी फसलों (नोटिफाइड) को एमएसपी देने की बात की है, लेकिन रिपोर्ट बताती हैं कि सिर्फ 6 फीसदी को एमएसपी का लाभ मिलता है तो बाकी 94 फीसदी के लिए क्या है। मध्य प्रदेश के किसान कर्जमाफी की उम्मीद में थे उन्हें निराशा हुई।”  सरकार ने स्वाइल हेल्थ कार्ड का बजट घटाया जबकि देश को उसकी जरूरत है, यानि सरकार का कोई रोडमैप नहीं है।

दूसरा गुजरात के नतीजों ने सरकार को सोचने पर मजबूर किया होगा, इसलिए बजट का स्वरूप ऐसा है।’ वो आगे बताते हैं, अगर बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां भी शिवराज की किसान उपयोगी तमाम कोशिशों के बावजूद फीडबैक अच्छा नहीं है। अब भावांतर को ही लें तो मैंने एक अंग्रेजी अख़बार में पढ़ा कि योजना के तहत जैसे ही सोयाबीन की खरीद बंद हुई, उसके दाम बढ़ गए, यानि सरकार कारोबारियों पर नियंत्रण करने में नाकाम है।”

 मध्य प्रदेश कृषि सपन्न राज्य है। देश का सबसे बड़ा कृषि पुरस्कार लगातार पांचवीं बार कृषि कर्मण मध्य प्रदेश को मिला है। लेकिन किसान कई इलाकों में नाखुश से नजर आते हैं।

पिछले वर्ष किसानों का आंदोलन मध्य प्रदेश से ही शुरु हुआ था, इसबार भी कई इलाकों में किसान सरकार से खफा होकर आंदोलन चला रहे हैं। किसान को हर जगह ठगा जा रहा है क्योंकि पहले भावांतर में कम कीमत पर सोयाबीन बिकवा दी। अब भाव बढ़ गए हैं।”वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वर्ष 2022 तक देश के हरेक गरीब के पास अपना घर होगा.। उन्‍होंने गरीब और मध्‍यम वर्ग के लोगों को होम लोन में भी राहत देने की घोषणा की है।  वित्तमंत्री ने कहा कि खेती का बाजार मजबूत करने के लिए 2000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे । वित्तमंत्री जेटली किसानों के लिए कर्ज की राशि 11 लाख करोड़ करने की घोषणा की है. कृषि सिंचाई योजना के लिए 2600 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई है.। लेकिन किसानों को सीधे तौर पर लाभ देने की बात भूल गये ।

 
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