मानसून की मोहताज अर्थव्यवस्था

मानसून की मोहताज अर्थव्यवस्था

अलनीनो के कारण वैश्विक वर्षा क्षेत्र अस्त-व्यस्त होने से भारत के मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस समय जहाँ एक ओर देश के किसान लगातार मौसम की खराबी का ख़ामियाज़ा भुगतते-भुगतते हताश दिखाई दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हाल ही में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडीओ) के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियन वेदर ब्यूरो (एडबल्यूबी) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि अलनीनो के भारत आने की आशंका सामान्य से तीन गुना ज्यादा है। अलनीनो के कारण दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान भारत में होने वाली बारिश सामान्य की तुलना में 93 फीसद रह सकती है। वस्तुत: अलनीनो उस समुद्री घटना का नाम है जब प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के अत्यधिक गर्म होने और वायुमंडलीय परिस्थितियों में बदलाव होने से वैश्विक वर्षा क्षेत्र बदल जाते हैं।

अलनीनो के कारण वैश्विक वर्षा क्षेत्र अस्त-व्यस्त होने से भारत के मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। लगातार दूसरे साल मानसून कमजोर रहने पर देश के ज्यादातर हिस्सों में बारिश में छह से सात फीसद तक की कमी देखने को मिल सकती है। इसमें भारत के वे इलाके शामिल हैं जो कृषि के लिहाज से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात की खेती काफी हद तक मानसून पर निर्भर होती है। इन प्रदेशों में अलनीनो का ज्यादा असर हो सकता है। दक्षिण पश्चिम मानसून न केवल खरीफ की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालता है बल्कि रबी की फसल को भी प्रभावित करता है। गौरतलब है कि भारत में बारिश और अर्थव्यवस्था का जटिल रिश्ता बना हुआ है। देश की कुल कृषि भूमि में 60 फीसद से अधिक पर नियमित सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है। भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ की फसल का लगभग आधा योगदान रहता है। धान, कपास, सोयाबीन, जूट, मूँगफली इत्यादि खरीफ की प्रमुख फसलें हैं, जिनकी बुआई जून में शुरू हो जाती है और कटाई का सिलसिला सितम्बर से शुरू होता है। चूँकि इस वर्ष अलनीनो प्रभाव की आशंका है, लिहाजा बारिश की कमी की सम्भावना बने रहना तय है।

इस परिदृश्य ने मानसून से जुड़ी सामाजिक और आर्थिक चिन्ताओं को जन्म दे दिया है। बारिश और खाद्यान्न उत्पादन का कीमतों से सीधा सम्बन्ध है। कम बारिश और उच्च महँगाई का रिश्ता स्पष्ट दिखाई देता है। चूँकि देश के 14 करोड़ से अधिक परिवार खेती पर निर्भर हैं, अत: कम बारिश की स्थिति में खेती-किसानी से जुड़े अधिकांश छोटे किसानों का जीवन सबसे अधिक प्रभावित होता है। देश में किसानों की स्थिति निराशाजनक बनी हुई है। अप्रैल 2015 में केन्द्रीय कृषि मन्त्री राधामोहन सिंह द्वारा यह ऐलान किया गया कि किसानों से कर्ज वसूली को एक साल के लिए टाल दिया है। इससे देश में कृषि संकट का अनुमान लगा सकते हैं। ऐसे में कम बारिश से किसानों की स्थिति क्या होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। 

खासतौर से ऐसे किसान जिन्हें कृषि के लिए संस्थागत ऋण और अन्य सुविधाओं का लाभ संतोषप्रद रूप से नहीं मिला है, उनकी मुश्किलें कम बारिश से और बढ़ जाएँगी। उल्लेखनीय है कि आरबीआई के आँकड़ों पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के शोधार्थियों द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि कुल कृषि ऋण का 30 फीसद से भी कम बैंकों की ग्रामीण शाखाओं द्वारा जारी किया जाता है। इसी तरह एनएसएसओ की वर्ष 2013 के लिए जारी अखिल भारतीय ऋण एवं निवेश सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि ग्रामीण परिवारों के कुल बकाया ऋणों में तकरीबन 44 फीसद असंगठित क्षेत्र के थे। इसमें भी चिन्ताजनक बात यह थी कि 33 फीसद से अधिक कर्ज साहूकारों से लिया गया था।

इस वर्ष कमजोर मानसून रहने पर इस सम्भावना को भी आघात लगेगा कि रबी की फसल में हुए नुकसान की भरपाई खरीफ के मौसम में भारी पैदावार के जरिये की जा सकती है। इस वजह से अधिकांश कृषि जिंसों की आपूर्ति और मूल्य पर असर पड़ेगा। खासतौर पर मोटे अनाज, दालों, तिलहन, सब्जियों, फल एवं पालतू पशुओं से मिलने वाले उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं। 15 अप्रैल से 15 मई, 2015 से सम्बन्धित वायदा कारोबार के आँकड़े बता रहे हैं कि ज्यादातर कृषि जिंसों की कीमतों में तेजी दर्ज की गई। कई महत्त्वपूर्ण उद्योग जैसे सोयाबीन, टेक्सटाइल, शक्कर मिल, दाल मिल आदि सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर हैं, जबकि कई उद्योगों को अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि उत्पादों की जरूरत होती है। ऐसे कृषि आधारित उद्योगों के उत्पाद महँगे हो सकते हैं। इतना ही नहीं, खराब मानसून के कारण सरकार का ध्यान कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों पर केन्द्रित हो सकता है, जिसका असर आर्थिक सुधारों तथा विकास सम्बन्धी अन्य पहल पर पड़ सकता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस वर्ष कमजोर मानसून का आकलन सही साबित होता है तो चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर के 7.9 फीसद के अनुमान में कमी आएगी।

देश में मानसून के कमजोर होने की आशंका के मद्देनजर केन्द्र और राज्य, दोनों को सतर्क रहना होगा और आकस्मिक फसल योजना की पूरी तैयारी रखनी होगी। सूखा प्रबन्धन कौशल का इस साल पुन: उपयोग करना होगा। फसल में अपर्याप्त आर्द्रता और उत्पादन में कमी से निपटने के उपायों पर अधिक जोर देना होगा। फसल बुआई तथा कच्चे माल के इस्तेमाल में बदलाव लाना होगा। जल संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान देना होगा। जिन इलाकों में अपर्याप्त नमी के कारण बुआई में देरी हो, वहाँ किसानों को ऐसी फसलों के बीज देने होंगे जो जल्द तैयार हो जाते हैं और जो देर से हुई बुआई के बावजूद उत्पादन के मोर्चे पर अच्छे परिणाम देते हैं। हमें याद रखना होगा कि अलनीनो से देश के प्रभावित हिस्से वहीं हैं जहाँ कृषि वर्षा पर अधिक निर्भर है। कमजोर मानसून से ग्रामीण इलाकों की खरीद क्षमता में कमी आ जाएगी। यह बात ग्रामीण क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित करेगी।

यह भी ध्यान रखना होगा कि पिछले वर्ष कम बारिश के बावजूद खाद्यान्न व अन्य पदार्थों की कीमतें कम बनी रहीं, लेकिन इस बार कीमतें बढ़ने की आशंका है। ऐसे में बारिश की कमी से प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की निराशा बढ़ेगी। उनके लिए रोजगार के रणनीतिक प्रयास जरूरी होंगे। उम्मीद है कि अपर्याप्त मानसूनी बारिश की मुश्किलों से निपटने के लिए सरकार अपनी प्रबन्धन क्षमता का सफल परिचय देगी और भविष्य में प्रयास करेगी कि देश की कृषि मानसून का जुआ ही न बनी रहे। इस हेतु अर्थव्यवस्था को मानसून से सुरक्षित किए जाने को नीतिगत लक्ष्य बनाया जाना चाहिए। 

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)