जैविक खाद बनाकर खत्म कर सकते हैं गाजर घास

खेतों की मेड़, गलियारों और सड़कों के किनारे बहुतायात से उगने वाली गाजर घास दुनिया की सबसे विनाशकारी और आवंछित खर पतवार है। खेती को चौपट कर रही इस घास को जानवर तक नहीं खाते हैं। इसको खत्म करने के लिए अभी तक कोई कारगर दवा भी नहीं बनाई जा सकती है, लेकिन आप इसकी जैविक खाद जरूर बना सकते हैं।

मनुष्यों और पशु दोनों को त्वचा और सांस के रोग देने वाली इस घास को जैविक खाद में तब्दील कर ना सिर्फ खुद को बचाया जा सकता है बल्कि जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है। खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय ने गाजर घास से कम्पोस्ट बनाने की विधि सुझाई है।

कैसे बनाएं जैविक खाद
गाजर घास को काटने के बाद खेत में तीन फीट गहरा एक गड्ढा में डाल दें। उसके ऊपर से इसी गड्ढा में सौ किलोग्राम गोबर, पांच से दस किलो यूरिया व एक ड्रम पानी डालना चाहिए। गाजर घास समेत दूसरी चीजों को सड़ाने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड पाउडर डाल दें। इसके बाद गड्ढा को गोबर, मिट्टी, भूसा आदि के मिश्रण के लेप से बंद कर दिया जाए। पांच-छह महीने में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगी, जिसे गड्ढे से निकालकर धूप में सुखाकर ट्रैक्टर से रौंद लें, ताकि गाजर घास के मोटे तने बारीक हो जाएं। इस कंपोस्ट को 2-2 सेमी छिद्रों वाली जाली से छानने के बाद इसे जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। या बिना छाने भी खेत में डाल सकते हैं।

कैसे होता है संक्रमण
पारथिनियम का एक पौधा 20 से 30 हजार बीज पैदा करता हैं। इसके पौधे पर खिलने वाले सफेद फूल के परागण हवा के जरिए मनुष्य के संपर्क में आते है। फूल की फंगस त्चचा पर खुजली पैदा करती है, जबकि सांस के जरिए फेफड़े तक पहुंचे परागण साइनस और अस्थमा का शिकार बनाते हैं। परागण में मौजूद सूक्ष्म कण फेफड़े में सूजन बढ़ाते हैं। इसके लगातार संपर्क में रहने पर यह त्चचा कैंसर का भी कारण बनती है।

कैसे करें बचाव
गाजर घास जानलेवा साबित हो सकती है। वर्ष 2012 में दिल्ली में पूसा रोड स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. एहसास दोहरे की इसी घास के चलते मौत हो गई थी। दरअसल डॉ. एहसास गुलाब की खेती पर शोध कर रहे थे। इसी गुलाब के बीच पारथीनिकम घास भी बड़ी संख्या में उगी थी। लगातार संपर्क में रहने के कारण पहले उन्हें अस्थमा हुआ फिर देहांत हो गया। इसलिए कोशिश करे घास को नंगे हांथों से ना छुए। घास को काटने से पहले हाथों में दस्ताने पहनें।

खाद के फायदे
इसके उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढऩे के साथ ही उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे तैयार कम्पोस्ट में गोबर से दोगुनी मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होता है। इसमें 1.05 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.84 फास्फोरस, 0.90 कैल्शियम, 0.55 मैग्नीशियम रहता है। इसका प्रयोग फसल बोने से पहले खेत की तैयारी व सब्जियों में पौधा रोपण या बीज बोने के दौरान किया जाता है।

क्या है गाजर घास
खेत, सड़क और घरों के आसपास पायी जाने वाली गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। ये 1950 के आसपास अमेरिका से मंगाए गए पीएल-480 गेहूं के साथ भारत आई थी, इसलिए कांग्रेस घास भी कहते हैं। वैसे तो यह पर्यावरण व जैव विविधता के लिए खतरनाक है लेकिन कम्पोस्ट तैयार होने के बाद इससे विषाक्त रसायन पार्थेनिन का पूरी तरह से विघटन संभव है।

वैज्ञानिक को अभी नहीं मिली सफलता
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने खेती और लोगों पर इसका प्रभाव का लंबे समय तक अध्यय किया है। कई इलाकों में रसायन और दवाओं से इसे खत्म करने के प्रयास भी हुए हैं लेकिन सफलता नहीं मिल पाई है। दिल्ली स्थित एम्स भी इस पर अध्ययन कर रहा है। बताया जाता है एम्स ओपीडी में त्वचा संक्रमण के हर महीने आने वाले 500 में 280 मरीजों में त्वचा संक्रमण की वजह यह घास होती है। इसमें हानिकारक तत्व होने के कारण कोई जानवर भी इसे नहीं खाता है। मुश्किल यह है कि इससे होने वाले संक्रमण को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है पर पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। इस जंगली घास को पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह बंजर या रेतीली जमीन पर भी तेजी से बढ़ती है। उत्तर प्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों में ये घास खेती को नुकसान पहुंचा रही है।

रिपोर्ट- अर्विन्द शुक्ल/अमूल्य रस्तोगी