लॉकडाउन के कारण गन्ना काटने वाले ढाई लाख प्रवासी मजदूर खेतों में फंसे, अनाज खत्म होने के बाद गहराया भोजन का संकट

लॉकडाउन के कारण गन्ना काटने वाले ढाई लाख प्रवासी मजदूर खेतों में फंसे, अनाज खत्म होने के बाद गहराया भोजन का संकट

लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों से गन्ना काटने वाले प्रवासी मजदूरों के फंसे होने की सूचनाएं आ रही हैं. विभिन्न श्रम संगठनों का अनुमान है कि यह संख्या ढाई लाख या उससे भी अधिक हो सकती है. सबसे बुरी स्थिति मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र की है. इसका कारण यह है कि यह इलाका ‘सुगर बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है और राज्य भर से अधिकतर गन्ना काटने वाले मजदूर इसी इलाके में प्रवास करते हैं. लॉकडाउन के बाद ऐसे कई मजदूरों ने बताया कि वे गन्ना खेतों में ही फंस गए हैं और अनाज खत्म होने के बाद उनके सामने दो जून की रोटी का सवाल खड़ा हो गया है. सोलापुर जिले के संगोला तहसील में भी कोरोना संकट के कारण इन मजदूर परिवारों के बीच भूख की समस्या गहरा गई है. संगोला तहसील के अंतर्गत नाझरे गांव के एक खेत में गन्ना काटने वाले मजदूर विनोद वाघमारे भी इसी संकट से गुजर रहे हैं. दिपावली के बाद उनके साथ 40 मजदूर परिवार सांगली जिले के इस्लामपुर से सोलापुर जिले के खेतों में गन्ना काटने के लिए आए थे. उन्होंने बताया कि अब गन्ना कटाई का समय खत्म हो चुका है और उनके घर लौटने के दिन आए तो इस विपत्ति ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. अब पुलिस और प्रशासन उन्हें एक जिले से दूसरे जिले जाने से रोक रहा है. इससे उन्हें कोरोना संक्रमण का भय सता ही रहा है, खाने-पीने की परेशानी भी भुगतनी पड़ रही है. कई प्रवासी मजदूरों ने बताया कि परिवार के कुछ सदस्य जहां खेतों में फंसे हैं वहीं कुछ बड़े और बच्चे उनके अपने गांवों के घरों में रह गए हैं और मुसीबत के समय वे उनसे मिलना चाहते हैं. ऐसी ही एक महिला मजदूर बताती हैं, ‘हमारी जिंदगी खेतों में घिसट रही है. हम अपने घर लौटना चाहते हैं. पर, कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. खाने का अनाज और राशन का सामान हम खेतों में अधिक मात्रा में ज्यादा दिनों तक नहीं रख सकते हैं. कुछ दिन में वह भी खत्म हो गया है. इसलिए, भूख से मरने की नौबत आ गई है.’ महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों में फंसे गन्ना काटने वाले मजदूर खेतों में घासफूस की अस्थायी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. लेकिन, अप्रैल में गर्मी और धूप बढ़ने के कारण उन्हें नई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कुछ मजदूरों ने बताया कि कोरोना के डर से पुश्तैनी गांव के लोग उन्हें गांव में घुसने से मना कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें राशन खरीदने में भी कठिनाई आ रही है. सांगली जिले में आष्टा के नजदीक एक खेत में फंसे एक मजदूर परिवार की मधु जाधव (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि दो दिन पहले वे अपने बच्चे के लिए दूध खरीदने गांव की दुकान गईं तो वहां कुछ लोगों ने उन्हें खेत में ही रहने की सलाह दी. उन्हें डर है कि अगली बार गांव के लोग उन्हें गांव में घुसने से ही मना न कर दें. यदि ऐसी स्थिति आती है तो हालात और गंभीर हो जाएंगे. बता दें कि राज्य में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव और पुणे व मुंबई में इसके कारण होने वाली मौतों के बाद कई गांवों ने अपनी सीमाओं पर नाकाबंदी कर दी है. यह गांव बाहरी व्यक्तियों को गांव में प्रवेश देने से मना कर रहे हैं. बता दें कि लॉकडाउन के बाद सबसे ज्यादा गन्ना काटने वाले मजदूर उस्मानाबाद, परभणी, वाशिम, सोलापुर, सांगली और अहमदनगर जिलों में फंसे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि इन जिलों में एक अनुमान के अनुसार कुल सात लाख गन्ना काटने वाले मजदूर एक जिले से दूसरी जिले में प्रवास करते हैं. लेकिन, सरकार की लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद उन्हें अपने जिलों की तरफ समय रहते लौटने का मौका ही नहीं मिला और कोई नहीं जानता है कि घरबंदी की यह स्थिति कब तक रहेगी. ऐसे में सवाल है कि यह स्थिति यदि लंबे समय तक इसी तरह बनी रही तो राज्य में जिन परिवारों के घर नहीं हैं या जो अपने घरों से दूर हैं उनके सामने मरने के अलावा क्या विकल्प होगा. हालांकि, लॉकडाउन से पहले कोरोना संकट के कारण कई खेतों में गन्ना काटने का काम बंद करा दिया गया था और गन्ना काटने वाले कई मजदूर परिवारों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचा दिया गया था. लेकिन, लाखों की संख्या में फंसे मजदूर अब भी खेतों से अपने घर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. गन्ना मजदूर संगठन के नेता शिवाजी बांगर इस संकट से मजदूरों को निकालने के लिए लगातार पत्रकारों से बातचीत करके सूचना दे रहे हैं. शिवाजी बांगर का भी मानना है कि राज्य में करीब ढाई लाख गन्ना काटने वाले मजदूर अलग-अलग ठिकानों में फंसे हो सकते हैं. कई खेतों में करीब-करीब गन्ना काटने का काम खत्म हो गया है. फिर भी मजदूर घर नहीं जा सकते. इस्लामपुर जैसी जगहों पर जहां कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है, वहां मजदूरों से काम कराना उनकी जान को जोखिम में डालने जैसा है. उन्होंने सरकार, प्रशासन और कारखाना प्रबंधन से प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने की मांग की है. वहीं, कई शक्कर कारखाना प्रबंधक इस बारे में बात करने से बच रहे हैं. उनका मानना है कि कई खेतों में अब तक गन्ने की फसल खड़ी है. इसके कारण किसान, मजदूर और कारखाना प्रबंधक तीनों फंस गए हैं. हालांकि, कुछ कारखाना प्रबंधकों ने बताया कि वे गन्ना मजदूरों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं. इस बीच, राज्य के सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे ने वक्तव्य जारी किया है. धनंजय मुंडे के मुताबिक, ‘सरकार ने हर एक गन्ना काटने वाले मजदूर की सुरक्षा के लिए संकल्प लिया है. हमारी ओर से कारखानों को यह निर्देश दिया गया है कि वे मजदूरों के भोजन, आवास और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का ध्यान रखें. (शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)