सियासत की फसल, चुनौतियों की खेती

सियासत की फसल, चुनौतियों की खेती

खेती-किसानी को लेकर भले ही सियासत की फसल खूब लहलहा रही हो, लेकिन उत्तराखंड में खेती की हालत बेहद नाजुक हो चली है। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। 12 साल पहले राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 16.04 फीसद था, जो घटकर अब 8.94 फीसद पर आ गया है। यही नहीं, राज्य गठन से अब तक के वक्फे में 72 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बंजर में तब्दील हो गई। हालांकि, गैर सरकारी आंकड़ों में यह संख्या एक लाख हेक्टेयर पार कर गई है। सूबे के पहाड़ी क्षेत्र में खेती आज भी सिंचाई की राह ताक रही है। ऐसे तमाम मामलों के बीच खेती की दशा को सुधारना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है।

थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो राज्य गठन के वक्त खेती की दशा सुधारने के लिए खूब दावे हुए थे। तब राज्य आंदोलन के नारे 'कोदा झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड संवारेंगे' को सियासतदां ने प्रदेश बनने पर अंगीकार करने के दावे किए, लेकिन हकीकत किसी से छिपी नहीं है। गुजरे 17 सालों में कभी भी खेती-किसानी का तवज्जो देने की जरूरत नहीं समझी गई। यदि समझी गई होती तो 2000-2001 में उपलब्ध 7.70 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि में से 72 हजार हेक्टेयर आज बंजर में तब्दील नहीं होती। यही नहीं, विरासत में मिली तीन लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य बंजर भूमि का भी उपयोग अब तक नहीं ढूंढा जा सका।

असल में प्रदेश की कृषि व्यवस्था पर्वतीय, घाटी और मैदानी क्षेत्रों में सिमटी हुई है। इन क्षेत्रों की अपनी-अपनी दिक्कतें हैं, जिन्हें दूर कराने में सियासत ने शायद ही कभी दिलचस्पी ली हो। आलम ये है कि राज्य के 95 में से 71 विकासखंडों में खेती आज भी बारिश पर निर्भर है। सिंचाई सुविधा का आलम ये है कि पहाड़ में सिर्फ 85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, लेकिन वे भी न के बराबर। मौसम के अलावा पलायन, वन्यजीव, विपणन समेत अन्य कई कारण भी पहाड़ की खेती के सामने चुनौतियां बनकर खड़े हैं। वहीं, मैदानी क्षेत्रों में खेती पर शहरीकरण की मार पड़ी है। साथ ही सिंचाई के लिए ऊर्जा की भारी खपत भी किसान पर भारी पड़ रही है।

ऐसी तमाम चुनौतियों के बीच केंद्र के फरमान के बाद राज्य सरकार ने अब प्रदेश के 9.12 लाख किसानों की आय दोगुनी करने के साथ ही खेती की दशा सुधारने की ठानी है, मगर यह राह इतनी आसान भी नजर नहीं आती। हालांकि, सरकार का कहना है कि वह ऐसे कदम उठाने जा रही है, जिससे 2022 तक खेती की दशा में सुधार नजर आएगा। देखने वाली बात होगी कि सरकार की कोशिशें क्या रंग लाती हैं।

'निश्चित रूप से विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में खेती-किसानी के सामने चुनौतियों की भरमार है। लेकिन, मौजूदा सरकार इसे बेहद गंभीरता से ले रही है। केंद्र सरकार का फोकस भी कृषि की दशा सुधारने पर है। इस कड़ी में केंद्र की मदद भी मिल रही है। कई कदम उठाए गए हैं और कई उठाए जा रहे हैं। आने वाले दो साल के भीतर इसके नतीजे धरातल पर नजर आने लगेंगे।'- सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री उत्तराखंड

केदार दत्त, देहरादून