सबका साथ-सबका विकास में किसान शामिल क्यों नहीं ?

सबका साथ-सबका विकास में किसान शामिल क्यों नहीं ?

भाजपा सरकार का कहना है कि वो किसानों के मुद्दों को लेकर संजीदा हैं. बीते साल कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प रखती है और इसी दिशा में आगे बढ़ रही है.

प्रधानमंत्री का कहना था कि किसानों की बेहतरी के लिए कृषि उत्पादों की मूल्य वृद्धि के लिए उन्होंने किसान संपदा योजना की घोषणा की है जो "सच्चे अर्थ में देश की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम देगा."

इधर इसी सप्ताह राजस्थान में क़र्ज़ माफ़ी को लेकर जयपुर में पड़ाव डालने निकले किसान संगठनों और प्रदेश की भाजपा सरकार में ठन गई है. पुलिस ने किसान संगठन के मुख्य नेताओं को हिरासत में ले लिया है.

गांव देहात से निकले इन किसान संगठनों की मांग है कि सरकार ने कर्ज़ माफ़ी का जो वादा किया था उसका पालन नहीं किया है. पांच महीने पहले भी इन्हीं किसान संगठनों ने राज्य में प्रदर्शन किया था और राज्य में कमकाज लगभग ठप कर दिया था.

राष्ट्रीय किसान महासंघ और दूसरे संगठनों से जुड़े किसानों ने इसी सप्ताह दिल्ली घेराव का एलान किया था. ये संगठन समर्थन मूल्य और ऋण माफ़ी की मांग उठा रहे हैं.

किसानों के साथ अन्याय हो रहा है

सरकार का कहना है कि वो किसान की आय दोगुनी करेगी, लेकिन पहले तो हम ये जानने की कोशिश करें कि आज किसान की आय क्या है.

1990 के आसपास से ये कृषि संकट बढ़ता जा रहा है. 2016 का जो सरकार आर्थिक सर्वे है उसके अनुसार 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय औसत बीस हज़ार रुपए है. इस हिसाब से किसान हर महीने क़रीब 1,700 से 1,800 रुपए में अपने परिवार को पाल रहा है.

'देश में किसान और किसानी की हत्या हो रही है'

 

क्यों मुश्किल में हैं किसान?

किसानों को काफ़ी हद तक ये समझ भी नहीं आता कि उसे जो मार पड़ रही है वो क्यों पड़ रही है. उसे पता है कि है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है. अगर किसान अपना काम भी कराने जाता है तो सरकारी दफ्तरों में एड़ियां रगड़ने के बाद भी काम नहीं होते.

खाद लेने में मुश्किल, कीटनाशक लेने में दिक्क़त- ये इसीलिए है क्योंकि किसानों के लिए बनाई गई सारी व्यवस्थाएं ही सड़-गल चुकी हैं. उसे ठीक करने की ज़िम्मेदारी कोई नहीं ले रहा है. ये सब चीज़ें किसान के ग़ुस्से को बढ़ावा देती हैं या उसे बढ़ाती हैं.

लेकिन मूल संकट ये है कि किसान को समझ नहीं आ रहा है कि जब उसकी पैदावार अच्छी होती है और वो बाज़ार में अपना सामान लेकर आता है तो अचानक दाम क्यों गिर जाते हैं. बाज़ार में उचित दाम न मिलने पर उसे टमाटर, आलू और अपनी अन्य फसल सड़कों पर फेंकनी पड़ती है.

ये भी देखा गया है कि जहां गेहूं और धान जैसे उत्पादों पर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य देती है वहां भी सड़क पर फेंकना पड़ता है.

किसान को जान-बूझ कर ग़रीब बनाया गया है

मैंने एक अध्ययन किया है जिसके अनुसार 1970 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 76 रुपये प्रति क्विंटल था. 2015 में वो बढ़ कर 1450 रुपये प्रति क्विंटल है. आज वो 1735 रुपये प्रति क्विंटल है. यदि 1970 से 2015 तक का वक़्त आप देखें तो आपका पता चलेगा कि इसमें 20 गुना बढ़ोतरी हुई है.

सरकारी मुलाज़िम की सैलरी और डीए देखा तो मैंने पाया कि 1970 से 2015 तक में उनकी आय में 120 से 150 गुना बढ़ोतरी हुई है. इसी दौरान कॉलेज और यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसरों की आय 150 से 170 गुना बढ़ी है. कंपनी के मध्यम स्तर के नौकरीपेशा लोगों की आय 3000 गुना बढ़ी है.

किसानों के लिए क्यों नहीं है कोईआय कमीशन?

ये अच्छी बात है कि आज देश में किसानों के मुद्दों पर चर्चा तो हो रही है. प्रधानमंत्री ने जब कहा कि वो किसानों की आय को दोगुना करेंगे उन्होंने संकेत दिया कि वो किसान की आय से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना चाहते हैं.

इससे पता चलता है कि इस बात की समझ अब बन रही है कि किसानों की आय के मुद्दों को सुलझाना बेहद ज़रूरी है और आय कम होने के कारण उत्पादन कम होना नहीं बल्कि पैसे कम होना है.

सरकारी मुलाज़िमों के लिए पे कमीशन की बात होती है तो किसान के लिए भी किसी ऐसे कमीशन की बात की जानी चाहिए जो उसकी आय को निर्धारित कर सके.

न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाले कमीशन से अलग या फिर इसी कमीशन के साथ एक अन्य कमीशन बनाया जाए जो ये सुनिश्चित करे कि किसानों को कैसे महीने में 18 हज़ार रुपए मिल सकेंगे.

अगर ऐसा किया जा सका तो हम सही मायनों में कह सकेंगे कि 'सबका साथ-सबका विकास' में किसान भी शामिल हैं. मेरा मानना है कि जिस दिन साठ करोड़ किसानो के हाथ में पैसा होगा ये जीडीपी के आंकड़ों की लड़ाई ख़त्म हो जाएगा और सीधे 20 फीसदी बढ़ जाएगी.

सरकार वाकई मदद करना चाहे तो उसे 2022 तक इंतज़ार नहीं करना चाहिए, उसे आज से ही काम करना शुरू करना चाहिए.

बीबीसी हिन्दी

 

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