-जलवायु परिवर्तन से निपटने का खुफिया हथियार है केंचुआ

मानें या ना मानें लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने में केंचुआ ताजातरीन हथियार बन गया है. चार साल चले एक बड़े अध्ययन में पाया गया कि 30 करोड़ साल से धरती पर बसने वाले केंचुओं का उपयोग पक्षियों का खाना बनने के अलावा भी है. वे बाढ़ और सूखा दोनों को रोकने में मदद कर सकते हैं.

ब्रिटेन के गेम एंड वाइल्डलाइफ कंर्जेवेशन सोसाइटी के अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि सूखे मौसम और मानसून जैसी वष्रा के चक्रों के कारण बाढ और सूखा आता है जिनके बारे में कहा जाता है कि इनकी वजह ग्लोबल वार्मिंग है और यहां केंचुए मदद कर सकते हैं.

जलवायु परिवर्तन में मददगार साबित होगा केंचुआ

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लंदन| शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में इस बात का दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केंचुआ काफी मददगार साबित होगा| चार साल तक चले इस अध्ययन में पाया गया है कि 30 करोड साल से धरती पर बसने वाले केंचुओं का उपयोग बाढ़ तथा सूखा दोनों को रोकने में मदद कर सकते हैं|

अध्ययन से इस बात की जानकारी मिली है कि एक औसत केंचुआ अपने वजन के अनुसार एक तिहाई तक मिट्टी को खोद डालता है, जिससे मिट्टी में जल को सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। जब यही काम लाखों केंचुए करेंगे तो बाढ़ की स्थिति में धरती पानी को सोखने में ज्यादा समर्थ होगी और सूखे के समय यह काम आयेगा|

सब्जी उत्पादन के नये आयाम

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भारत एक प्रमुख सब्जी उत्पादक देश है. हमारे देश की जलवायु में काफी विभिन्नता होने के कारण देश के विभिन्न भागों में 60 से अधिक प्रकार की सब्जियां उगायी जाती है. वर्तमान में हमारे देश में लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सब्जियों की खेती की जाती है. जिसका सकल उत्पादन लगभग 8.4 करोड़ टन है. इस प्रकार भारत, चीन के बाद विश्व का सर्वाधिक सब्जी उत्पादक देश है. 

खेतों से थाली तक पहुंचा ‘स्लो पॉयज़न’

कीटनाशकों और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जहां कृषि भूमि के बंजर होने का खतरा पैदा हो गया है, वहीं कृषि उत्पाद भी जहरीले हो गए हैं। अनाज ही नहीं, दलहन, फल और सब्जियों में भी रसायनों के विषैले तत्व पाए गए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। इसके बावजूद अधिक उत्पादन की लालसा में देश में डीडीटी जैसे प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है। अकेले हरियाणा की कृषि भूमि हर साल एक हजार रुपए से ज्यादा के कीटनाशक निगल जाती है।

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