फसल चक्र

विभिन्न फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर, एक निश्चित क्रम से, किसी निश्चित समय में बोने को सस्य आवर्तन (सस्यचक्र या फ़सल चक्र (क्रॉप रोटेशन)) कहते हैं। इसका उद्देश्य पौधों के भोज्य तत्वों का सदुपयोग तथा भूमि की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाओं में संतुलन स्थापित करना है।

फसल चक्र

 

भूमि एक भाग पर निश्चित अवधि में विभिन्न फसलों की क्रमिक (Serial wise) कृषि को फसल चक्र कहते हैं| फसल चक्र की सहायता से मृदा के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों को बढ़ाया जा सकता है| फसल चक्र के अनुसार कृषि करके किसी भू -खंड के औसत मृदा क्षरण पर नियंत्रण किया जा सकता है| फसल चक्र विधि का उपयोग कीटों की अधिक जनसंख्याँ को कम करने तथा कीटों के जीवन चक्र को खत्म करने में भी किया जाता है| फसल चक्र विधि से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप मृदा की अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है| इस विधि के द्वारा मृदा की उर्वरता में भी वृद्धि होती है| अच्छी जुताई करने से फसल चक्र के द्वारा मृदा श्ररण और अवसादों के हास्र पर नियन्त्रण रखना सम्भव है|

फसल चक्र विधिं में फसलों का चयन करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि दो गैर-फलीदार फसलों की कृषि के मध्य एक फलीदार फसल की बुवाई की जाये| कृषि के लिए चुनी गई फसल जलवायु तथा मृदा के गुणों के अनुरूप होनी चाहिए| फसल चक्र विधि में अगर उर्वरतहारी फसलों से पहले अधिक उर्वरतहारी फसल लगाई जाये तो अच्छा रहता है|
 

फसल चक्र के लाभ

  1. मृदा की उर्वरता में वृद्धि|
  2. अधिक उत्पादकता|
  3. कीटों पर नियन्त्रण|
  4. मृदा सरंचना का विकास|
  5. परिवार को रोजगार|
  6. उत्पादों का उचित मूल्य|
  7. न्यून प्रतिस्पर्धा|

फसल चक्र के सिद्धान्त

फसल चक्र निर्धारण से पूर्व किसान को अपनी भूमि की किस्म फसल किस्म दैनिक आवश्यताएं लागत का स्वरूप तथा भूमि की उर्वरा शकित को बनाएं रखने के उददेश्य को ध्यान में रखना चाहिए । अत फसल चक्र अपनाते समय निम्न सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए । 1 दलहनी फसलों के बाद खाधान्न फसलें बोई जाये दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथियां पाई जाती है जिनमें राइजोबियम जीवाणु पाये जाते हैं । हीमोग्लोबिन की उपसिथति से ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है। उदाहरण के लिए चनामक्का अरहरगेहूं मेथीकपास मूगगेहूं लोबियाज्वार आदि । इस हेतु रबी खरीफ या जायद में से किसी भी ऋतु में दलहनी फसल अवश्य लेना चाहिए । 2 गहरी जड़ व

फसल चक्र को प्रभावित करने वाले कारक

1॰ जलवायु सम्बन्धी कारक ॰ जलवायु के मुख्य कारक तापक्रम वर्षा वायु एवं नमी है । यही कारक जलवायु को प्रभावित करते हैं जिससे फसल चक्र भी प्रभावित होता है । जलवायु के आधार पर फसलों को तीन वर्गो में मुख्य रूप से बांटा गया है जैसे ॰ खरीफ रबी एवं जायद ।
2॰ भूमि संबंधी कारक भूमि संबंधी कारको में भूमि की किस्म मृदा उर्वरता मृदा प्रतिकिरया जल निकास मृदा की भौतिक दशा आदि आते हैं । ये सभी कारक फसल की उपज पर गहरा प्रभाव डालते हैं 
3॰ सिंचाई के साधन सिंचाई जल की उपलब्धता के अनुसार ही फसल चक्र अपनाना चाहिए । यदि सिंचाई हेतु जल की उपलबधता कम है।