गन्ने में पेड़ी प्रबन्धन

गन्ने की फसल से अधिक आर्थिक लाभ के लिए यह आवश्यक है कि उसकी पेड़ी भी ली जाये। पेड़ी फसल का प्रबन्धन यदि बेहतर ढंग से किया जाये तो इससे बावग फसल के बराबर ही उपज प्राप्त की जा सकती है।पेड़ी को अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे रैतून, मुड़ आदि

Ø पेड़ी फसल में खेत की तैयारी, बीज तथा बीज की बुवाई का व्यय बचता है।

Ø बावग फसल से कम समय में तैयार होने के कारण इसमें सिंचाई पर कम व्यय होता है तथा नत्रजन का बेहतर उपयोग होता है।

Ø पेड़ी बावग फसल की अपेक्षा कम समय में तैयार हो जाती है अतः फसल चक्र में कम समय लगता है।

Ø पेड़ी फसल बावग फसल की अपेक्षा पहले तैयार होने के कारण इसकी पेराई मिलों द्वारा पहले शुरू कर दी जाती है साथ ही इसमें चीनी का परता भी अच्छा आता है।

Ø प्रदेश में लगभग समस्त गन्ना क्षेत्रफल में पेड़ी ली जाती है अतः गन्ना मिलों को अगले वर्ष उतने क्षेत्रफल के गन्ने की आपूर्ति सुनिश्चित रहती है।

अच्छी पेड़ी के लिये उपयुक्त गन्ना प्रजातियाँ-

1. शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ – को॰ शा॰ – 88230, को॰ शा॰ – 96268, को॰ शा॰ – 8436, को॰ शा॰ – 95255, को॰ से॰ – 83, को॰ से॰ – 85, को॰ से॰ – 98231, को॰ – 0238 आदि।

2. मध्यम/देर से पकने वाली प्रजातियाँ - को॰ शा॰ – 767, को॰ शा॰ – 8432, को॰ शा॰ – 96275, को॰ शा॰ – 97261, को॰ शा॰ – 96269, को॰ शा॰ – 99259, को॰ शा॰ – 9542, यू॰पी॰ – 0097 आदि।

बावग फसल की कटाई का उचित तरीका – बावग फसल को तेज धारदार गड़ासे/दाव से भूमि की सतह के निकट से तथा भूमि के समानान्तर काटना चाहिये। जब बावग फसल की कटाई मध्य फरवरी के बाद होती है तो तापमान बढ़ने के कारण कल्लों का फुटाव अधिक होता है तथा बढ़वार भी अच्छी होती है।

गन्ने की पताई का सदुपयोग – गन्ने की कटाई के बाद छिलाई करके उसकी पताई (पत्तियों) को जलाना नहीं चाहिये। यह दंडनीय अपराध है। इस पताई की मोटी पर्त को एकान्तर (एक लाइन छोड़कर एक लाइन में बिछाकर) लाइन में या पूरे खेत में एकसार बिछाकर पानी तथा यूरिया लगा दें। यह पताई खेत में नमी संरक्षण का कार्य करेगी, खरपतवारों को जमने से रोकेगी तथा कालांतर में सड़-गलकर खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ायेगी। इससे सिंचाई तथा रसायनिक उर्वरकों पर होने वाले व्यय में कमी आयेगी, उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी तथा मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा।

मूढ़ों की मिट्टी हटाना तथा ठूँठ काटना – कटाई के उपरान्त गन्ने के मूढ़ों पर पूर्व में चढ़ाई गई मिट्टी को कस्सी से हटाकर, पिछली फसल के ठूँठों को तेज धारदार गड़ासे/दाव से भूमि की सतह के निकट से तथा भूमि के समानान्तर काटना चाहिये। ठूँठों पर ईथरेल (12 मिली/100 लीटर पानी) का छिड़काव करें, इससे कल्लों का जल्द व अधिक फुटाव होगा। खेत में पानी लगाकर ओट आने पर बिना पताई वाली लाइनों में गन्ने की लाइन के निकट से जुताई (कल्टीवेटर या पावर टिलर से) या गुड़ाई (कस्सी से) करके पुरानी जड़ों को काट (रूट प्रूनिंग) दें। इससे नई जड़ें निकलेंगी जिससे कल्लों का फुटाव व फसल की वृद्धि अच्छी होगी।

गैप फिलिंग (खाली स्थान में नये पौधे रोपना) – पिछली फसल में गन्ने का जमाव कम होने से खेत में लाइनों में बहुत सा स्थान रिक्त रह गया होगा साथ ही कीट-बीमारी के कारण भी बहुत से पौधे मर जाने के कारण रिक्त स्थान और बढ़ गया होगा। इस रिक्त स्थान को गन्ने के पहले से तैयार पौधों या नई गेड़ियों (उचित शोधन तथा खाद/उर्वरक का प्रयोग करके) द्वारा भर कर यदि खेत में पौधों की संख्या पूरी/पर्याप्त कर ली जाये तो पेड़ी फसल में कम लागत लगाकर उपज बहुत अधिक बढ़ाई जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन - पहली सिंचाई के बाद ओट आने पर गन्ना लाइनों से सटाकर गहरी जुताई करें तथा लाइनों के निकट 150 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम डी॰ए॰पी॰, 100 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्व का मिश्रण प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की जड़ के पास डालकर मिलायें। ट्राइकोडर्मा संवर्धित प्रेसमड केक 100 कुंटल/हेक्टेयर लाइनों में डालने से कल्लों के फुटाव पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। 90 किलोग्राम यूरिया तीसरी सिंचाई पर तथा शेष 90 किलोग्राम यूरिया जून माह के अंत तक दे दें। यदि पताई गलाने के लिये या पर्णीय छिड़काव में यूरिया प्रयोग की है तो उसके अनुसार यूरिया की मात्रा घटा लें।

सिंचाई एवं जल निकास प्रबन्धन – गन्ने में कभी भी बहुत भर के पानी न लगायें कम समय अन्तराल पर हल्का-पानी लगाते रहें। सिंचाई का समय तापमान और खेत में नमी की स्थिति के अनुसार तय करें।

Ø गन्ने की फसल कटने के बाद पताई को एकान्तर लाइनों में एक सार बिखेर कर पहला पानी लगा दें।

Ø दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 20 से 25 दिन बाद करें।

Ø वर्षा आरम्भ होने तक 15 से 20 दिन के अन्तराल पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहें।

Ø मानसून की बारिश समाप्त होने से लेकर मिल को गन्ने की आपूर्ति होने तक 20 से 25 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।

Ø किसी भी परिस्थिति में खेत में पानी भरा न रहने दें अन्यथा फसल की वृद्धि, गुणवत्ता तथा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। खेत की तैयारी के समय ही जल निकास की व्यवस्था करें जिससे कि खेत से आवश्यकता पड़ने पर जल निकास किया जा सके।

गन्ने में मिट्टी चढ़ाई व बंधाई – जून व जुलाई माह में पेड़ी गन्ने की लाइनों में रिजर, फावड़े या पावर टिलर से मिट्टी अवश्य चढ़ानी चाहिये। इससे गन्ना गिरने से बचता है, नये कल्ले बनाना रुकता है तथा कल्लों का विकास अच्छा होता है। गन्ने को गिरने से बचाने के लिये सितम्बर माह में इसके थानों को आपस में तथा उसके कुछ दिन पश्चात दूसरी लाइन के थानों से X की आकृति में बाँध दें। सूखी पत्तियों को निकाल कर खेत को हवादार बनाये रक्खें जिससे हवा आर-पार निकलती रखे। साफ खेत में चूहों का प्रकोप कम होगा।

राकेश पाण्डेय, विषय वस्तु विशेषज्ञ (सस्य)
डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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