जैविक बनाम रासायनिक खेती

आमतौर पर यह माना जाता है कि ज़्यादा मात्रा में रासायनिक खाद एवं कीटनाशक इस्तेमाल करने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और उत्पादन बढ़ने से किसान का मुना़फा बढ़ सकता है. सरकार भी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से खेती करने की सलाह देती है, लेकिन इस वैज्ञानिक विधि का अर्थ स़िर्फ और स़िर्फ रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल तक ही सीमित होता है. नतीजतन आए दिन हम विदर्भ, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा आत्महत्या करने की ख़बरें सुनते रहते हैं. इसके अलावा रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से अनाज, सब्जियां, दूध और पानी, जो इंसान के जीवन का प्रमुख आधार हैं, ज़हरीले बनते जा रहे हैं. इस वजह से इंसानी जीवन धीरे-धीरे ख़तरे में पड़ता जा रहा है. आज हार्टअटैक, शुगर, ब्लडप्रेशर एवं अन्य कई प्रकार की बीमारियां आम होती जा रही हैं. आज हम जो भी खाते हैं, उसमें रासायनिक तत्वों की अधिकता इतनी ज़्यादा होती है कि हमारा खाना मीठा ज़हर बन चुका है.फसल उगाने के लिए अंधाधुंध रासायनिक खाद का इस्तेमाल इंसानी जीवन के लिए ख़तरा तो बना ही है, साथ ही यह ज़मीन को भी बंजर बनाता जा रहा है. भूमि की उर्वरा शक्ति घटती जा रही है. उत्पादन बढ़ाने के लिए लगातार रासायनिक खाद की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है. मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा घटती जा रही है. भूमि की भौतिक संरचना एवं रासायनिक गुणों पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है.

अब सवाल यह है कि क्या इन सारी समस्याओं का कोई समाधान नहीं है? समाधान है. इन सारी समस्याओं का एकमात्र समाधान जैविक खेती है. ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में वर्मी कंपोस्ट मददगार साबित हो रही है. जैविक खेती रासायनिक खेती से सस्ती पड़ती है, क्योंकि इसका कच्चा माल किसान के पास उपलब्ध रहता है, जैसे गोबर से कंपोस्ट खाद, चारे एवं फसलों के अवशेष से तैयार खाद, केचुए की खाद. ऐपिजेइक केचुए की इसीनिया फीटिडा प्रजाति (रेड वर्म) से बेहतर जैविक खाद बनाई जा सकती है. वर्मी कंपोस्ट सस्ती होती है, साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाती है. यह जल, भूमि एवं वायु को स्वस्थ बनाती है. इसके उपयोग से कम पानी से भी खेती संभव है. इससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है. जैविक विधि से पैदा किया गया अनाज स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक भी होता है. जैविक खेती के क्षेत्र में मोरारका फाउंडेशन ने अद्भुत प्रयोग किए हैं. देश के लगभग सभी राज्यों सहित राजस्थान के लाखों किसानों ने इस फाउंडेशन से जुड़ कर जैविक खेती करना शुरू कर दिया है. फाउंडेशन इन किसानों को गोबर एवं केचुआ से जैविक खाद और वर्मी वाश के रूप में कीटनाशक बनाने की ट्रेनिंग देता है. गोमूत्र, नीम, हल्दी एवं लहसुन से हर्बल स्प्रे बनाया जाता है. जैविक खेती आज इन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. चौथी दुनिया की टीम ने इन क्षेत्रों में घूमकर किसानों के अनुभव दर्ज किए और अब उन्हीं अनुभवों को आप सभी तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, ताकि देश के अन्य किसान भी इससे प्रेरणा पा सकें. आमतौर पर यह धारणा फैलाई जाती है कि जैविक खेती करने से उपज कम हो जाती है, लेकिन यह स़िर्फ एक पहलू है. जब हमने किसानों से बात की तो उनका कहना था कि पहले साल उपज में दस फीसदी की कमी आती है, लेकिन दूसरे साल से उपज बढ़ जाती है. जैविक खेती से होने वाली आय के बारे में किसान कहते हैं कि जब हम अपना अनाज लेकर मंडी में जाते हैं और कहते हैं कि हमारा अनाज जैविक विधि से उगाया गया है तो हमें प्रति क्विंटल दो सौ रुपये ज़्यादा मिलते हैं. एक किसान ओमप्रकाश का कहना था कि रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने से खेती की लागत बढ़ जाती है और आमदनी कम हो जाती है, जबकि जैविक विधि से खेती करने पर लागत कम हो जाती है, साथ ही उपज का दाम भी अधिक मिलता है. ओमप्रकाश का कहना था कि जबसे वह जैविक खेती कर रहे हैं, उनकी सालाना आय 50 फीसदी बढ़ गई है.

कैसे बनाएं

वर्मी कंपोस्ट : वर्मी कंपोस्ट जैविक खाद का ही एक रूप है. इसे बनाने के लिए दस बाई तीन फीट आकार का एक प्लेटफार्म किसी पेड़ या छायादार जगह के नीचे बनाया जाता है. प्लेटफार्म को ज़मीन की सतह से ऊंचा रखा जाता है. प्लेटफार्म को डेढ़ फीट ऊंचा करके जालीनुमा बना दिया जाता है. पक्के प्लेटफार्म की सतह पर एक-डेढ़ इंच मोटी मिट्टी की परत डाल दी जाती है. मिट्टी की परत के बाद छह इंच मोटी हरी एवं सूखी घास या फूस की परत चढ़ाई जाती है. गोबर की छह इंच मोटी परत के बाद हल्की मिट्टी छिड़क दी जाती है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक़, एक क्यूबिक मीटर में पांच सौ केचुए छोड़ने चाहिए. वर्मी कंपोस्ट की एक यूनिट में डेढ़ किलो केचुए छोड़े जाते हैं. लगभग दो महीने बाद जैविक खाद तैयार हो जाती है. एक यूनिट में लगभग 3 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार की जा सकती है. वर्मी कंपोस्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा ज़्यादा होती है.

वर्मी वाश: केचुओं के मूत्र से वर्मी वाश बनाया जाता है. वर्मी वाश एक बहुत ही असरदार कीटनाशक का काम करता है. केचुओं का मूत्र इकट्ठा करने के लिए एक घड़ा लेते हैं. घड़े के नीचे एक बहुत ही छोटा छेद कर देते हैं. घड़े में छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़े, रेत, मिट्टी, गोबर एवं घास आदि डालते हैं. फिर उसमें पानी भरा जाता है. घड़े के छेद को ढक दिया जाता है. इसके बाद उसमें 200 से 300 केचुए छोड़ दिए जाते हैं. इस घड़े को छायादार जगह में ही रखा जाता है. 30 दिनों के बाद घड़े के नीचे बने छेद को खोल दिया जाता है. इसी छेद से रिस-रिसकर वर्मी वाश एक साफ बर्तन में इकट्ठा कर लिया जाता है. इसका इस्तेमाल किसी भी फसल के लिए किया जा सकता है. अगर फसल में कोई कीड़ा लग जाए तो उसमें भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

तरल खाद : गोबर से तरल खाद भी बनाई जा सकती है. तरल जैविक खाद बनाने के लिए एक बड़े ड्रम में पानी भर कर गल सकने वाले पदार्थ, जैसे गाय, भैंस, सुअर, मुर्गी एवं अन्य जानवरों का गोबर एवं मूत्र और मछली, समुद्री खर-पतवार, पेड़ों की पत्तियां आदि डाला जाता है. क़रीब 30 दिनों के बाद तरल खाद बनकर तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर खेत के लिए इस खाद में 40 से 45 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.

हर्बल स्प्रे : एक घड़े में पानी लेकर उसमें नीम की पत्तियां, नीम के बीज, हल्दी एवं लहसुन आदि मिला देते हैं. कुछ दिनों के बाद इस हर्बल स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्प्रे का इस्तेमाल फसल में कीड़े आदि लगने पर उन्हें ख़त्म करने के लिए किया जा सकता है.

जैविक खाद/खेती के फायदे

  • ज़मीन में जीवाश्म की मात्रा बढ़ती है.
  • ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.
  • रासायनिक खाद के मुक़ाबले पोषक तत्व अधिक.
  • ज़मीन का पीएच ठीक होता है.
  • उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है.
  • उपज का मूल्य ज़्यादा मिलता है.
  • अनाज स्वास्थ्यवर्द्धक और स्वादिष्ट होता है.

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