जैव उर्वकों से बढ़ती है फसल की गुणवत्ता

पर्यावरण के संरक्षण, भूमि की संरचना तथा उर्वरता को बचाए रखते हुए अधिक उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवाणुओं के उर्वरक तैयार किये हैं जो वायुमण्डल में उपलब्ध नत्रजन को पौधो को उपलब्ध कराते है तथा भूमि में पहले से मौजूद फास्फोरस आदि पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराते हैं।
यह जीवाणु प्राकृतिक हैं, रासायनिक नहीं इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पड़ता। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरक का विकल्प नहीं है। इन्हें रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में प्रयोग करने से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है।

राइजोबियम कल्चर
इसके जीवाणु पौधों की जड़ो में गांठ बनाकर रहते हैं तथा वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन को शोषित कर भूमि में स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते है। ये जैव उर्वरक दलहनी फसलों जैसे अरहर, मूंग, उर्द, चना, मटर, मसूर, सोयाबीन आदि फसलों में उपयोग में लाये जाते है। प्रयोग के लिए यह ध्यान रखना चाहिये कि ये फसल विशेष के लिए अलग-अलग होते हैं और फसल का नाम पैकेट पर अंकित होता है।
एजेटो बैक्टर
यह जैव उर्वरक सभी अनाज गेहूं, जौ, जई ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, सब्जी की फसलों, फूलों तथ अन्य फसलों जैसे गन्ना, कपास, तम्बाकू एवं पटसन आदि में प्रयोग में लाया जाता है। इसके जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहते हुए वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधो को उपलब्ध कराते हैं।
एसीटो बैक्टर
यह जैव उर्वरक गन्ने की फसल के लिए उपयुक्त पाया गया है। जो गन्ने की फसल के लिए नत्रजन वाले उर्वरकों की लगभग 25-30 प्रतिशत की बचत करने में सहायक होता है, इसके प्रयोग से गन्ने की फसल से प्राप्त होने वाली चीनी के परते में 1-2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
पी.एस.एम.
भारत की 80 से 90 प्रतिशत भूमि में फास्फोरस की कमी पाई जाती है। भूमि में फास्फोरस तत्व की पूर्ति हेतु प्रयोग किये जाने वाले उर्वरकों की मात्रा का लगभग 35-40 प्रतिशत भाग ही फसल उपयोग में ला पाती है, शेष भाग अघुलनशील अवस्था में भूमि के अन्दर बेकार पड़ा रहता है। जबकि फास्फेटिक उर्वरकों पर कृषकों की सबसे ज्यादा लागत आती है। पी.एस.एम. भूमि में अघुलनशील अवस्था में उपस्थित फास्फोरस तत्व को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराता है। यह सभी प्रकार की फसलों में उपयोग किया जा सकता है।
बीज उपचार
इस विधि द्वारा राइजोबियम, एजोटो बैक्टर एवं पीएसएम जैव उर्वरकों का प्रयोग दलहन की फसलों, गेहूं, जौं, मक्का, बाजरा, राई, सरसों, तिल, सूरजमुखी आदि फसलों में किया जाता है। इस विधि में एक पैकेट का घोल लगभग 200-500 मिली. पानी में बनाकर 10 किलो बीज के ऊपर एक साथ छिड़क कर हाथ से अच्छी तरह मिलायें ताकि जैव उर्वरक की एक पतली परत बीज के सभी दानों पर बन जायें। उपचार के तुरन्त बाद छाया में सुखाकर बीज की बुवाई कर दें।
भूमि उपचार
इस विधि द्वारा एजेटो बैक्टर, एसीटो बैक्टर एवं पीएसएम जैव उर्वरकों का प्रयोग सभी खाद्यान्नों की फसलों, गन्ना, तिलहन फसलों, सब्जी फसलों, फूलों आदि में किया जा सकता है। इस विधि में जैव उर्वरकों की लगभग 2-5 कि.ग्रा. मात्रा को 100 कि.ग्रा. अच्छी प्रकार सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई से पूर्व खेत में एक साथ छिड़क कर मिट्टïी में मिला दें।
कन्द उपचार
आलू की फसल में एजोटो बैक्टर व पीएसएम का उपयोग करने के लिये प्रति हे.2 कि.ग्रा. जैव उर्वरकों को 20-25 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें बीज को 5 मिनट के लिये डुबोकर बुवाई करें।
गन्ने की फसल में एसीटो बैक्टर के प्रयोग में लगभग 5 किलो जैव उर्वरक प्रति.हे. की आवश्कता पड़ती है।
जड़ उपचार विधि
यह विधि रोपाई वाली फसलों में प्रयोग की जाती है। इस विधि में 1-2 किग्रा. जैव उर्वरकों को 10-20 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिये रोपाई हेतु पौधों को रोपाई से पूर्व 10 मिनट के लिये जड़ो को डुबोकर रोपाई की जाती है।

जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियाँ
यह जीवित जीवाणुओं का मिश्रण है, इसलिए इन्हें तेज धूप, उच्च तापक्रम से सदैव बचाये रखें, अन्यथा उनके जीवाणु मरने शुरू हो जाते है। गर्मियों में भण्डारण के लिये मकान के कोने में रेत के अन्दर घड़े मे रख दें। रेत पर पानी छिड़कर कर भिगोते रहें। इस प्रकार अधिक तापक्रम के प्रभाव से जैव उर्वरकों को बचाया जा सकता है।
पैकेट खरीदते समय उनकी निर्माण तिथि अवश्य देख लें और उनका उपयोग अन्तिम तिथि से पूर्व कर लें। पैकेट उपयोग के समय ही खोलें।
सदैव ध्यान रखें कि ये रासायनिक उर्वरकों के विकल्प नहीं है। फसलों की पोषक तत्वों की मांग की पूर्ति इनका रासायनिक एवं कार्बनिक खादों के साथ बेहतर समन्वय बनाकर करें। फसल के लिये निर्धारित जैव उर्वरक ही प्रयोग करें।
बीज शोधन में यदि रसायन का प्रयोग करना हो तो इनकी प्रयोग की जानी वाली मात्रा को निर्धारित मात्रा से दोगुना कर देना चाहिये और पहले रसायनों को प्रयोग करें उसके उपरान्त ही जैव उर्वरकों का प्रयोग करें।
रासायनिक खादों में मिलाकर इनका प्रयोग कभी नहीं करना चाहिये। जैव उर्वरकों को सड़ी नमी युक्त गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद के साथ मिलाकर प्रयोग करने से ही बेहतर परिणाम प्राप्त होते है।
कृभको द्वारा हजीरा संयंत्र (गुजरात) वाराणसी संयंत्र (उत्तर प्रदेश) लांचा संयंत्र (महाराष्टï्र) में कुल 650 मैट्रिक टन जैव उर्वरकों का उत्पादन किया जाता है। ये जैव उर्वरक कृषक भारती सेवा केन्द्रों एवं सहकारी समितियों से प्राप्त किये जा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए कृभकों के नजदीकी प्रतिनिधि से भी सम्पर्क किया जा सकता है।