हालात बद से बद्तर होने के जिम्मेदार हम किसान

हालात बद से बद्तर होने के जिम्मेदार हम किसान

यहाँ वहां आप लोग देखो अस्पताल मिलेंगे , इतने तादाद में अस्पताल खुले लेकिन सभी अच्छे से चल रहे हैं इसका कारण कोई और नही हम ही हैं इसके  दूरगामी खोज करें तो आप लोग भी पाएंगे कि यह हालात तो बद से बद्तर होते जा रहे है उन सब का जिम्मेदार हम किसान भी हैं सरकारों को निशाना बनाने से अच्छा है कि हम लोग ही सुधर जाएँ 
भारत के किसान इस यथार्थ को कब तक नकारेंगे यह कहा नहीं जा सकता परंतु विश्व के जाने-माने वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती की ऊपरी परत का इसी प्रकार दोहन किया गया तो केवल 60 वर्षों में धरती की उपज के पूरी तरह समाप्त होने के संकेत मिल जाएंगे। धरती की उपजाऊ क्षमता बनी नहीं रह सकती जब तक उसमें ऐसे पदार्थ न डाले जाये जो धरती की कुदरती खुराक हैं जैसे गोबर और गोमूत्र और अन्न से बनी जैविक खाद I

हम लोगों की सोच अभी बांध दी गई है या हम लोग सोच ही नही सकते कि हमारी खेती किस दिशा में जा रही है उसके लिए सरकारों से ज्यादा जिम्मेदारी हमारी है चटक मटक के प्रभाब में ढुलक चुके हैं हमने अपनी जमीन से ज्यादा अपने दिमाग को बंजर बना दिया है I  मैं आपको बताता हूँ इक कार्यक्रम के दौरान मैंने कहा की देश की खेती और अपनी आगे आने वाली पीडी को बचाने के लिए आप सब को जागना होगा  ,वहां बैठे एक किसान मित्र ने मुझसे कहा की जब यह इतनी ख़राब है तो सरकार क्यों कुछ नही कर रही या इसमें आप का फायदा तो नही ? आप किसी कम्पनी या किसी पार्टी के लिए काम करते हैं 
मैंने जबाब दिया हाँ मेरा स्वार्थ है तभी तो मैं आपके यहाँ कार्यक्रम कर रहा हूँ मेरा व्यक्तिगत लाभ यह है कि हमारी आगामी पीढ़ी को एक स्वस्थ भारत मिलेगा उसे स्वस्थ जमीन मिलेगी साफ सथुरा पर्यावरण मिलेगा I मेरी पार्टी भी हैं वो है आप किसानों का हित करना I  
मैं इसे क्या कहूँ  विश्व की जनसंख्या जो इस समय 6.8 अरब से बढ़कर 2050 तक 9 अरब हो जायेगी इसलिए धरती की अनउपजाऊता से मनुष्य जाति को और भी अधिक खतरा है  विश्व में अनाज की उपज में कमी का कारण है कि धरती की ऊपरी परत बहुत कमजोर हो गई है। विश्व की बढ़ती आबादी और उस आबादी के खाने-पीने की वस्तुओं का तीव्र गति से दोहन के कारण धरती की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। इन वैज्ञानिकों का कहना था कि अनुमान के अनुसार 75 अरब टन धरती हर वर्ष बेकार हो रही है। अगर किसान रासायनिक खाद का इसी प्रकार प्रयोग करते रहे दुनिया की धरती 60 वर्षों में अनउपजाऊ हो जायेगी । इसमें विशेष अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि उस समय दुनिया में अनाज की कितनी कमी हो जायेगी और भूखमरी से कितना हा-हा-कार मचेगा। 

जैविक खेती की एक मात्र हल
इसका एकमात्र हल यह है कि भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्ते की पौष्टिक खाद का प्रयोग हो। हम भूलें नहीं कि भारत की लंबी संस्कृति जो लाखों साल की जानी-मानी है धरती की उपजाऊ शक्ति कभी कम नहीं हुई जब तक कि पिछले कुछ हीं दशकों में रासायनिक खाद का प्रचार-प्रसार किया गयाऔर इसका आयात अंधाधुंध ढंग से हुआ। गोबर इत्यादि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं। इसका व्यापक असर तब हो अगर सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बंद कर दे और किसानों को देसी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। ऐसा न करने से भारत की खेती का वही हाल होगा जो चीन की खेती का हो रहा है। जैविक खेती करने के लिए किसान को गायों का पालन करना होगा ताकि गोबर और गोमूत्र की उपलब्धि हो सके जिससे वह जैविक खाद बनाएं , हर घर में गाय को पाला जाये उससे पर्याप्त मात्रा में आपको गोबर और गौमूत्र की प्राप्ति हो जाएगी I