कीटनाशकों के बिना खेती

हरित क्रांति के बाद से ही किसानों को सलाह दी जाती रही है कि कीटों को दूर भगाने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। पिछले 40 साल से हम किसानों को समझा रहे हैं कि कीटनाशक अनिवार्य हैं। जबकि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब स्वीकार कर लिया गया है कि धान में कीटनाशकों की जरूरत ही नहीं होती। ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ को अब भी इस जमीनी सच्चाई स्वीकार करना बाकी है।

फिलीपींस में ‘अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान’ ने बड़ी शालीनता से अपनी गलती स्वीकार कर ली है। आईआरआरआई के पूर्व महानिदेशक ने बताया कि हमने किसानों से सीख ली है। एशिया में धान पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पूरी तरह से धन और समय की बर्बादी थी। इस बात का अहसास तब हुआ जब फिलीपींस के लूजों प्रांत तथा वियतनाम और बांग्लादेश के किसानों ने बिना रासायनिक कीटनाशकों के पहले से भी अधिक धान की पैदावार की।

अगर बांग्लादेश और अन्य एशियाई देशों के किसान कीटनाशकों के बिना ही धान की अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं तो इस बात का कोई कारण नहीं है कि यही पद्धति भारत में क्यों नहीं कामयाब हो सकती? बांग्लादेश में कोई दो हजार गरीब किसानों (जिनकी वार्षिक औसत आय कुल चार हजार रुपए है) ने प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों को पूरी तरह गलत सिद्ध कर दिया। भागीदार समूह के गांवों में करीब 99 फीसदी किसानों ने फसल में कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद कर दिया है। आईआरआरआई का मानना है कि एक दशक के अंदर पूरे बांग्लादेश में 1.18 करोड़ किसान धान में कीटनाशकों का इस्तेमाल समाप्त कर देंगे।

इस बात से हैरानी नहीं होगी अगर आईआरआरआई द्वारा स्वीकृत कीटनाशक रहित धान के स्थान पर भारतीय कृषि वैज्ञानिक जीन संशोधित धान की नई प्रजाति लेकर हाजिर हो जाएं। बड़ी संख्या में जीन संशोधित फसलें अभी विकास की प्रक्रिया में हैं। कृषि विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमी और कृषि एवं खाद्य मंत्रालय जीन संशोधित कृषि को बढ़ावा देने में जुटे हैं। कृषि मंत्री शरद पवार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल जीन संशोधित तकनीक के समर्थन में आंख मूंद कर ढोल पीट रहे हैं। यद्यपि कुछ कृषि वैज्ञानिक इस बात को मानने लगे हैं कि रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत ही नहीं है। लेकिन, त्रासदी यह है कि यह संज्ञान बहुत देर से हुआ है।

कीटनाशक पहले ही जमीन को जहरीला, भूजल को विषैला, पर्यावरण को प्रदूषित और करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा चुके हैं। इसके बावजूद कीटनाशकों की अनुपयोगिता की यह अवधारणा जीन संशोधित फसलों को दिए जा रहे अंधाधुंध प्रोत्साहन के आगे दम तोड़ सकती है। खेती-किसानी को बचाने के लिए इसे प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित करना होगा। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों से पिंड छुड़ाने के लिए और अधिक संकल्प शक्ति की आवश्यकता होगी। कीटनाशकों से जितनी जल्दी मुक्ति होगी, उतना ही यह देश के भविष्य के लिए बेहतर होगा।