धान की फ़सल में खरपतवार प्रबन्धन

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक गम्भीर चुनौती बनी हुई है । धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान फ़सल है । इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4 करोड़ 22 लाख है0 क्षेत्र में की जाती है आजकल धान का उत्पादन लगभग 9 करोड़ टन तक पहुंच गया है । राष्ट्रीय स्तर पर धान कीऔसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हैक्‍टेयर है। जो कि इसकी क्षमता से काफ़ी कम है, इसके प्रमुख कारण है -  कीट एवं ब्याधियां,  बीज की गुणवत्ता,  गलत शस्य क्रियाएं,  तथा खरपतवार।

धान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये सुधरी खेती की सभी प्रायोगिक विधियों को अपनाना आवश्यक है , हमारे देश में धान की खेती मुख्यतया दो परिस्थितियों में की जाती है  1 वर्षा आधारित , 2 सिंचित

ऊची भूमि में वर्षा आधारित खेती में नींदा नियन्त्रण एक बड़ी समस्या है ,यदि इसका समय से नियन्त्रण न किया जाये तो फ़सल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहां पर रोपाई या बुवाई से पहले मचाई करने से नींदा पर काफ़ी नियन्त्रण पाया जा सकता है ।

धान की फ़सल के प्रमुख खरपतवार तीन प्रकार के पाये जाते हैं -
1. चौड़ी पत्ती वाले 
2. संकरी पत्ती वाले
3. मोथा कुल 

खरपतवारों से हानियां –

खरपतवार प्रायः फ़सल से नमी ,पोषक तत्व,सूर्य का प्रकाश तथा स्थान के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे मुख्य फ़सल के उत्पादन में कमी आ जाती है । धान की फ़सल में खरपत्वारों से होने वाले नुकसान को 15-85 प्रतिशत तक आंका गया है ।कभी -कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता है । सीधे बोये गये धान में रोपाई किये गये धान की तुलना में अधिक नुकसान होता है । पैदावार में कमी के साथ -साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं । कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं । इसके अतिरिक्त खरपतवार सीधे बोये गये धान में 20-40 किग्रा0नाइट्रोजन ,5-15 किग्रा0 स्फुर,15-50 किग्रा0 पोटाश तथा रोपाई वाले धान में 4-12 किग्रा0नाइट्रोजन ,1.13 किग्रा0 स्फुर,7-14 किग्रा0 पोटाश प्रति है0 की दर से शोषित कर लेते हैं तथा धान की फ़सल को पोषक तत्वों से वंचित कर देते हैं ।

खरपतवारों की रोकथाम कब करें ?

धान की फ़सल में खरपतवारों से होने वाला नुकसान खरपतवारों की संख्या ,किस्म एवं फ़सल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करता है ।घास कुल के खरपतवार जैसे सावां ,कोदों फ़सल की प्रारम्भिक एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बाद की अवस्था में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं ।सीधे बोये गये धान में बुवाई के 15-45 दिन तथा रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन बाद का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से क्रान्तिक (नाजुक) होता है ।इस अवधि में फ़सल को खरपतवारों से मुक्त रखना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक होता है तथा फ़सल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है ।

खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें ?

खरपतवारों की रोकथाम में ध्यान देने वाली बात यह है कि खरपतवारों का सही समय पर नियन्त्रण किया जाये चाहे किसी भी तरीके से करें ।धान की फ़सल में खरपतवारों की रोकथाम निम्न तरीकों से की जा सकती है।

1-निवारक विधि

इस विधि में वे क्रियायें शामिल है जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारो के प्रवेश को रोका जा सकता है ,जैसे प्रमाणिक बीजों का प्रयोग ,अच्छी सड़ी गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद का प्रयॊग,सिचाई कि नालियों की सफ़ाई ,खेत की तैयारी एवं बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यन्त्रों की बुवाई से पूर्व सफ़ाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिये लगाना आदि।

2-यान्त्रिक विधि

खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है । किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की सहायता से निकालते हैं । कतारों में सीधी बोनी की गई फ़सल में 'हो' चलाकर भी खरपतवारों को नियन्त्रित किया जा सकता है इसी प्रकार 'पैडीवीडर' चलाकर भी खरपतवारों की रॊकथाम की जा सकती है ।सामान्यतः धान की फ़सल में दो निराई -गुड़ाई ,पहली बुवाई /रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियन्त्रण किया जा सकता है तथा फ़सल की पैदावार में काफ़ी वृद्धी की जा सकती है ।

3-शस्य क्रियाओं में परिवर्तन द्वारा

अ . बुवाई से पूर्व खरपतवारों को नष्ट करके (स्टेल सीड बैड )

खरीफ़ की पहली बारिश के बाद जब खरपतवार 2-3 पत्ती के हो जायें तो इनको शाकनाशी (ग्लाइफ़ोसेट या पैराक्वेट )द्वारा या यान्त्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है जिससे मुख्य फ़सल में खरपतवारों के प्रकोप में काफ़ी कमी आ जाती है ।

ब. गहरी जुताई द्वारा

रबी की फ़सल की कटाई के तुरन्त बाद या गर्मि के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज व कन्द ऊपर आ जाते हैं तथा तेज धूप में जलकर अपनी अन्कुरण क्षमता खो देते हैं । इस विधि से कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप भी कम हो जाता है । रोपाई वाले खेतों में मचाई (पडलिंग) करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है । पडलिंग एवं हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल करके एवं खेत में पानी भरकर लम्बे समय तक रोककर खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।

स. किस्मों का चुनाव एवं बुबाई की तिथि 

जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिये जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक हो ताकि ऐसी प्रजातियां खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा करके उन्हे नीचे दबा सकें। प्रायः यह देखा गया है कि किसान भाई असिचिंत उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते हैं। छिटकवां विधि से कतारों में बोई गयी धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते है तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है। अतः धान को हमेशा कतारों में ही बोना लाभदायक रहता है। 

द. कतारों के बीच की दूरी एवं बीज की मात्रा 

धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने स खरपतवारों को उगने के लिये पर्याप्त स्थान नही मिल पाता हैं। इसी तरह बीज की मात्रा में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है। धान की कतारों को संकरा करने (15. से.मी) एवं अधिक बीज की मात्रा (80-100) कि.ग्रा./हे0) का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है। 

इ. उचित फसल चक़ अपनाकर 

एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में उगाने से खरपतवारों की समस्या और जटिल हो जाती है। अतः यह आवश्यक है कि पूरे वर्ष भर एक ही खत में धान -धान-धान लेने के बजाय धान की एक फसल के बाद उसमें दूसरी फसलें जैसे चना ,मटर गेहूं आदि लेने से खरपतवारों को कम किया जा सकता हैं। 

फ़. सिंचाई एवं जल प्रबंधन 

रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया कि धान की रोपाई के 2-3 दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी 1-2 से.मी. खेत में समान रुप से रहना चाहिये। उसके बाद पानी के स्तर को 5-10 से.मी. तक समान रुप से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है। मचाई (पडलिंग) किये गये सीधे बोये धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाये तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्रास जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। इस विधि को उड़ीसा में बुशेनिंग एवं मध्यप्रदेश में बियासी कहा जाता है। 

ज. उर्वरकों का प्रयोग 

भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा ,उर्वरक देने की विधि एवं समय का भी फसल एवं ख्रपतवारों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। फसल एवं खरपतवार देानो ही भूमि में निहित पोषक तत्वों के लिये प्रतिस्पर्धा करते है। खरपतवार नियंत्रण करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता फसल को ही मिले सुनिश्चित की जा सकती है। पोषक तत्वों की अनुमोदित मात्रा को ठीक समय एवं उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती हैं। असिंचित उपजाऊ भूमि में जहां खरपतवारों की समस्या अधिक होती है वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्रा को बुबाई के समय न देकर पहली निराई -गुड़ाई के बाद देना लाभदायक रहता है तथा नाइट्रोजन को धान की लाइनों के पास डालना चाहिये जिससे इसका ज्यादा से ज्यादा भाग फसल का मिल सकें। 

रासायनिक विधि

धान की फसल में खरपतवारों की रोकथाम की यांत्रिक विधियां तथा हाथ से निराई - गुडाई यद्यपि काफी प्रभावी पायी गयी है लेकिन विभिन्न कारणों से इनका व्यापक प्रचलन नही हो पाया है। इनमें से मुख्य है , धान के पौधों एवं मुख्य खरपतवार जैसे जंगली धान एवं संवा के पौधों में पुष्पावस्था के पहले काफी समानता पायी जाती है , इसलिये पहले साधारण किसान निराई - गुडाई के समय आसानी से इनको पहचान नही पाता है। बढती हुई मजदूरी के कारण ये विधियां आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नही है।फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय में मजदूरों की उपलब्धता में कमी ।खरीफ का असामान्य मौसम जिसके कारण कभी -कभी खेत में अधिक नमी के कारण यांत्रिक विधि से निराई -गुडाई संभव नही हो पाता है। अतः उपरोक्त परिस्थितियों में खरपतवारों का शाकनाशियों द्वारा नियंत्रण करने से प्रति हैक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है , लेकिन शाकनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय उचित मात्रा ,उचित ढंग तथा उपयुक्त समय पर प्रयोग का सदैव ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के बजाय हानि की संभावना भी रहती है। धान की फसल में प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी रासायनों का विवरण सारणी में दिया गया है। 
 

       

  • खरपतवार नाशी रसायन
  •                     मात्रा                    (ग्राम)             सक्रिय तत्व/      है0
  •      प्रयोग    का    समय
  •                     नियन्त्रित खरपतवार
  • ब्यूटाक्लोर(मचैटी)
  • 1500-2000
  • बुवाई/रोपाई के 3-4 दिन बाद
  • घास कुल के खरपतवार
  • एनीलोफ़ास (एनीलोगार्ड)
  • 400-500
  • तदैव
  • घास व मोथा कुल के खरपतवार
  • बैन्थियोकार्ब 9सैटर्न)
  • 1000-1500
  • तदैव
  • घास कुल के खरपतवार
  • पेण्डीमेथालीन (स्टांप)
  • 1000-1500
  • तदैव
  • घास ,मोथा व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
  • आक्साडायजान (रोन्स्टार)
  • 750-1500
  • तदैव
  • तदैव
  • आक्सीफ़्लोरफ़ेन(गोल)
  • 150-250
  • तदैव
  • तदैव
  • प्रेटिलाक्लोर (रिफ़िट)
  • 750-1000
  • तदैव
  • तदैव
  • 2,4 डी (नाकवीड)
  • 500-1000
  • बुवाई /रोपाई के 20-25 दिन बाद
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियन्त्रण हेतु
  • क्लोरिम्यूरान +मेटसल्फ़्यूरान (आलमिक्स)
  • 4
  • बुवाई /रोपाई के 20-25 दिन बाद
  • चौड़ी पत्ती वाले एवं मोथा कुल के खरपतवार के नियन्त्रण हेतु
  • फ़ेनाक्जाप्राप इथाइल(व्हिप्सुपर)
  • 60-70
  • बुवाई /रोपाई के 20-25 दिन बाद
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवार विशेषकर सावां के नियन्त्रण हेतु

प्रयोग करने की विधि-

खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 600 ली0 पानी में घोलकर प्रति है0 की दर से छिड़काव करना चाहिये। अथवा 60 किलो0सूखी रेत में मिलाकर रोपाई के 2-3 दिन के भीतर 4-5 सेमी0 खड़े पानी में समान रूप से बिखेर देना चाहिए ।

राजवीर सिंह

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