धान-गेहूं की लगातार खेती बिगाड़ रही मिट्टी की सेहत

दोनों ही फसलें मिट्टी से एक ही जैसे सूक्ष्मतत्वों को ग्रहण करती हैं, लगातार इनकी खेती से मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों की कमी हो जाती है।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश का किसान हर फसल चक्र में धान और गेहूं की खेती करता है बिना यह जाने कि इससे उसके खेत की उर्वरा शक्ति तीव्रता से घट रही है। इसे सुधारने के लिए दलहनी फसलों की खेती को फसल चक्र में शामिल करना अनिवार्य है लेकिन अधिक मेहनत, लागत और कम मुनाफे के चलते किसान इससे दूरी बनाए हुए हैं।
पौधे के विकास के लिए 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है जिसमें से 6 बहुत सूक्ष्म मात्रा में इस्तेमाल होते हैं जिन्हें माइक्रोन्यूट्रीएंट्स यानि सूक्ष्म तत्व कहा जाता है। इनमें जिंक, बोरॉन, आयरन, मैंगनीज, मॉलीबेडनम और कॉपर शामिल हैं।

सूक्ष्म तत्वों की मात्रा की बात करें तो उत्तर प्रदेश की मिट्टी की हालात खराब है। भोपाल स्थित भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 40 जिलों के खेतों में लगभग 45 फीसदी तक जिंक की कमी है। जबकि सात जिलों में कॉपर (तांबा) की और पांच जिलों में आयरन (लौह तत्व) की कमी है। इसके अलावा प्रदेश में नाईट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे मुख्य तत्वों की भी भारी कमी दर्ज की गई है।

जानकार सूक्ष्म तत्वों की इस कमी का कारण प्रदेश के किसान द्वारा फसल चक्र में मुख्यत: धान और गेहंू को शामिल करने को मानते हैं। उत्तर प्रदेश कृषि निदेशालय के संयुक्त निदेशक (कृषि उर्वरक) डॉ. ओमवीर सिंह बताते हैं, ”जो किसान हर फसल चक्र में धान-गेहूं की फसल लेते हैं उनके खेतों में जिंक की कमी होना लाज़मी है। इसके अलावा बोरॉन की भी बहुत कमी हो जाती है। अगर किसान इन तत्वों की पूर्ति अलग से नहीं करेगा तो फसल की बढ़त पर असर पड़ता है।”

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार उत्तर प्रदेश में 92 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं और 56 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान बोया जाता है। डॉ. ओमवीर सूक्ष्म तत्वों की कमी से निपटने का उपाए बताते हुए कहते हैं, ”किसानों को फसल चक्र में एक दलहनी फसल ज़रूर शामिल करनी चाहिए।”
उत्तर प्रदेश में करीब एक करोड़ 68 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा सूक्ष्म तत्वों की कमी से जूझ रहा है। इस कमी से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने मृदा स्वास्थ्य सुधार’ नाम की योजना भी चलाई थी। इसके अंतर्गत हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट और ढैंचा के बीज का उत्पादन बढ़ाने जैसे कई उपाए किसानों के लिए शुरू किये गए हैं, ऐसा सरकार का दावा है।

पत्तियां खुद बताती हैं पोषक तत्व की कमी

कई बार फसलें पोषक तत्वों की कमी के चलते अच्छी बढ़त हासिल नहीं कर पाती हैं। उत्तर प्रदेश कृषि निदेशालय के संयुक्त कृषि निदेशक (उर्वरक) डॉ. ओमवीर सिंह बताते हैं कि हर फसल अपनी कमी खुद बता देती है। इसमें जिन प्रजातियों के पत्ते बड़े होते हैं उनमें लक्षण आसानी से दिख जाते हैं, जबकिछोटी और महीन पत्तियों वाली फसल में लक्षणों को पहचानने के लिए आपको गौर से देखना होता है। फसल में पोषक तत्वों की कमी को चिन्हित करने वाले लक्षण इस प्रकार हैं-

बोरॉन
बढऩे वाले भाग के पास की पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। कलियां सफेद या हल्की भूरी मरी हुई दिखाई देती हैं।

गंधक

पत्तियां, शिराओं सहित, गहरे हरे से पीले रंग में बदल जाती हैं। इसकी कमी से सबसे पहले नई पत्तियां प्रभावित होती हैं।

कैल्शियम
कैल्शियम की कमी से नई पत्तियां पहले प्रभावित होती हंै और यह देर से निकलती हैं। शीर्ष कलियां खराब हो जाती हैं। मक्के में नोकें चिपक जाती हैं।

आयरन
नई पत्तियों में तने के ऊपरी भाग पर सबसे पहले क्लोरोफिल में कमी आ जाती है। शिराओं (नसों) को छोड़कर पत्तियों का रंग एक साथ पीला हो जाता है। इसकी कमी होने पर भूरे रंग का धब्बा या मरे हुए ऊतक जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

मैंगनीज
इसमें पत्तियों का रंग पीला-धूसर या लाल-धूसर हो जाता है और शिराएं हरी होती हैं। पत्तियों का किनारा और शिराओं का मध्य भाग हरितिमा हीन यानि क्लोरोफिल के बगैर हो जाता है। हरितिमा हीन पत्तियां अपने सामान्य आकार में रहती हैं।

कॉपर
नई पत्तियां एक साथ गहरी पीले रंग की हो जाती हैं और सूखकर गिरने लगती हैं। खाद्यान्न वाली फसलों में गुच्छों में वृद्घि होती है और ऊपरी बाली में दाने नहीं होते हैं।

जस्ता
सामान्य तौर पर पत्तियों के शिराओं के बीज में हरितिमा हीन होने केलक्षण दिखाई देते हैं और पत्तियों का रंग कांसे की तरह हो जाता है।

मालब्डियनम
नई पत्तियां सूख जाती हैं, हल्के हरे रंग की हो जाती हैं। मध्य शिराओं को छोड़कर पूरी पत्तियों पर सूखे धब्बे दिखाई देते हैं। नाइट्रोजन के उचित ढंग से उपयोग न होने के कारण पुरानी पत्तियां हरितिमा हीन होने लगती हैं।

मैग्नीशियम
पत्तियों के अग्रभाग का गहरा रंग हरा होकर शिराओं का मध्य भाग सुनहरा पीला हो जाता है अन्त में किनारे से अंदर की ओर लाल-बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं।

पोटैशियम
पुरानी पत्तियों का रंग पीला/भूरा हो जाता है और बाहरी किनारे कट-फट जाते हैं। मोटे अनाज जैसे मक्का एवं ज्वार में ये लक्षण पत्तियों के आगे के हिस्से से दिखना प्रारम्भ होते हैं।

नाइट्रोजन
पौधे हल्के हरे रंग के या हल्के पीले रंग के होकर बौने रह जाते हैं। पुरानी पत्तियां पहले पीली हरितिमा हीन हो जाती हैं। मोटी अनाज वाली फसलों में पत्तियों का पीलापन अग्रभाग से शुरू होकर मध्य शिराओं तक फैल जाता है।

फॉस्फोरस
पौधों की पत्तियां फॉस्फोरस की कमी के कारण छोटी रह जाती हैं और पौधों का रंग गुलाबी होकर गहरा हरा हो जाता है।