फलों का उत्पादन होता है लाभप्रद

साधारणतया लोगों का यह विचार है कि फलों का उत्पादन लाभप्रद नहीं होता. इस धारणा के कई कारण हैं :

(१) बाग लगाने से पूर्व प्राय: लोग इस बात का सोच विचार नहीं करते कि स्थानविशेष में, वहाँ की भूमि और जलवायु के अनुसार, फल की कौन सी किस्म के पेड़ लगाने चाहिए;

(२) फलों के पौधों के लगाने की विधि भी उचित नहीं होती, बिना भूमि को सुधारे प्राय: फलों के पेड़ लगा दिए जाते हैं तथा पेड़ों का आपस का फासला भी आवश्यकता से कम रखा जाता है और

(३) एक बार बाग लगा देने के उपरांत बाद में उसकी देखभाल पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. खाद और पानी की प्राय: कमी रहती है.

इन सब कारणों से पेड़ों की फसल अच्छी नहीं होती और बाग से कोई लाभ नहीं होता. यदि उचित ढंग से बाग लगाया जाए और बाद में भी ठीक देखभाल हो, तो लाभ न होने का कोई कारण नहीं है.

स्थान का चुनाव

फलों का बाग के लिए स्थान चुनते समय निम्नलिखि बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

१. सदा ऐसे स्थान को बाग लगाने के लिए चुनना चाहिए, जहाँ की भूमि उपजाऊ हो. कंकड़ पत्थरवाली और ऊँची नीची जमीन फल के पेड़ों के लिए उपयुक्त नहीं होती. क्षारवाली, जिसमें नोना हों और रेतवाली भूमि भी फल के पेड़ों के लिए खराब होती है. हलकी दमट भूमि, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, सब प्रकार के फलों के पेड़ों के लिए उत्तम होती है.

२. पेड़ों की सिंचाई का भी सुप्रबंध होना अत्यंत आवश्यक है. केवल नहर के पानी के भरोसे बड़ा बाग लगा डालना उचित नहीं. आवश्यकता पड़ने पर यदि किसी कारण से नहर का पानी न मिले तो फसल को, या अन्य पेड़ों को, बहुत हानि पहुंचती है. बाग में कम से कम मीठे पानी का एक कुआँ होना अत्यंत आवश्यक है. खारा पानी फल के पेड़ों को प्राय: हानि पहुँचाता है. यदि १५ एकड़ का बाग लगाना हो और सिंचाई का प्रबंध केवल छह एकड़ का हो, तो बाग पाँच पाँच एकड़ करके तीन या चार बार में लगाना चाहिए, क्योंकि जब पेड़ और पुराने हो जाते हैं, तब उनको बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती.

३. बाग सदा पक्की सड़क अथवा रेलवे स्टेशन के पास लगाना चाहिए, ताकि बाग की उपज सुविधापूर्वक और समय से बाजार या मंडी में बिकने के लिए पहुँच सके.

शहर से बहुत दूर गाँव के अंदर बाग लगाने से फसलों को मंडी तक पहुँचाने में बहुत परेशानी होती है और खर्चा तथा समय भी बहुत लगता है. अधिक समय लगने के कारण फल बाजार तक पहुंचते पहुंचते खराब होने लगते हैं.

४. जहाँ तक हो, बाग किसी जंगल के पास नहीं लगाना चाहिए. जंगल के पास होने से प्राय: नील गाय, सुअर, हिरन और चिड़ियों आदि से पेड़ों और फासल को बहुत हानि होती है और उनसे रक्षा करने में बड़ी परेशानी होती है तथा अधिक खर्चा होता है.

५. बाग लगाने से पहले एक बात और ध्यान में रखने की यह है कि स्थान ऐसा हो कि आवश्यकता पड़ने पर आसपास से उचित मंजूरी पर मजदूर मिल सकें. कभी कभी जरूरत पड़ने पर मजदूर न मिलने से बाग की फसल मारी जाती है.

वृक्षों की किस्म का चुनाव

एक बार बाग के लिए भूमि का चुनाव कर लेने पर उसमें लगाए जानेवाले पेड़ों की किस्मों का चुनाव करना शेष रह जाता है. इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(१) पेड़ों की किस्में हमेशा भूमि के अनुसार ही चुनना चाहिए. कम उपजाऊ भूमि में कलमी आम नहीं लगाना चाहिए. ऐसे स्थान में अमरूद आदि कठोर किस्में ही लगानी चाहिए. इसी प्रकार थोड़ी रेह वाली और खराब जमीन में लिसोड़ा, बेर, आँवला आदि के पेड़ ही लगाए जा सकते हैं. पानी ठहरनेवाले स्थान में तुरमीले फल के पेड़, जैसे संतरा, माल्टा, नींबू आदि, नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि पानी में तुरसीले फल के पेड़ों की जड़ें गलकर खराब हो जाती हैं. ऐसी जगह अमरूद किसी हद तक लग सकता है. कंकड़वाली जमीन में आम नहीं लगाना चाहिए.

भूमि को देखकर, इन सब बातों का ध्यान रखे बिना यदि फल के पेड़ों की किस्मों का चुनाव किया गया, तो गलत किस्म के पेड़ लगने से सदा हानि होने की संभावना है.

(२) किस्मों का चुनाव उस स्थान की जलवायु के अनुसार ही करना चाहिए. ठंढे प्रदेशों के पेड़, जैसे सेब, खूबानी, नाशपाती आदि, यदि गरम मैदानी भाग में लगाए जायें, तो उनमें फल आने की आशा नहीं रखनी चाहिए. इसी प्रकार गमर जलवायुवाले फल, जैसे केला, पपीता आदि, पहाड़ी ठंढे प्रदेशों में नहीं लग सकते. अधिक वर्षावाले स्थान में अंगूर नहीं लगता. इसी प्रकार भिन्न किस्म के फल के पेड़ भिन्न प्रकार की जलवायु चाहते हैं और फलों के पेड़ों की किस्म हमेशा वहाँ की जलवायु के अनुसार ही चुनना चाहिए.

(३) एक बात का और ध्यान रखना चाहिए की फल के पेड़ों की वे ही किसें लगाना लाभप्रद रहता है जिनके फलों की माँग बाजार में काफी हो और जिन किस्मों के फलों के दाम बाजार में अच्छे मिलने की उम्मीद हो. सस्ते रद्दी किस्म के फल के पेड़ लगाना लाभप्रद नहीं होता. किस्मों के चुनाव के लिए उद्यान विभाग के कर्मचारियों से राय लेकर बाग लगाना ठीक रहेगा.

भूमि की तैयारी

जिस भूमि में बाग लगाना है यदि उसमें पहले से खेती होती रही है, तो उसे ठीक करने में अधिक कठिनाई नहीं होती. नीचे की भूमि कैसी है, यह जानने के लिए पूरी भूमि में कई जगह पाँच या छह फुट गहरे गड्ढे खोद लेना चाहिए.

सर्वप्रथम भूमि के जंगल की सफाई करना चाहिए. बबूल आदि के जंगली पेड़ों और झाड़ियों को काटना चाहिए. केवल ऊपर से तना काट देने से झाड़ियाँ दोबारा बढ़ जाती हैं, इसलिए प्रत्येक पेड़ और झाड़ी को खोदकर जड़ सहित निकाल देना चाहिए. एक दो छायादार मौके का पेड़ ऐसे स्थान पर, जहाँ माली के रहने की झोपड़ी आदि डालनी है, छोड़ भी सकते हैं. बाद में आवश्यकता न रहने पर वे काटे जा सकते हैं. जंगल की सफाई के बाद भूमि की सतह एक करना आवश्यक है. यदि सतह ठीक नहीं होती तो सिंचाई करने में भी असुविधा होती है. सब पेड़ों में एक समान पानी नहीं पहुंचता. वर्षाकाल का पानी भी नीचे स्थान में भर जाता है और पेड़ों को हानि पहुंचती है. सिंचाई की नालियों की सुविधा देखकर भूमि की सतह ठीक कर लेनी चाहिए. यदि पूरी भूमि को एक सा चौरस करना संभव न हो, तो उसको दो या अधिक भागों में बाँटकर हर भाग को अलग अलग समतल कर लेना चाहिए. पर्वतीय क्षेत्रों में, जहाँ बड़े चौरस मैदान नहीं होते, इसी प्रकार सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं. इसके बाद संभव हो तो पूरे खेते की एक गहरी जुताई कर देनी चाहिए. इससे जमीन भुरभुरी हो जाती है और वर्षा का पानी भी जमीन में भली प्रकार पहुंचता है. सपाट जमीन में अधिकतर वर्षा का पानी बह जाता है. यदि संभव हो तो पूरे खत में हरी खादवाली फसल, जैसे सनई आदि, बोकर जोत देने से भूमि को अच्छी खाद मिल जाती है. इसके बाद पूरी भूमि में पेड़ लगाने के स्थानों में च्ह्रि लगा देना चाहिए. भूमि पर च्ह्रि लगाने से पहले, यदि कागज पर उसका नक्शा बना लिया जाए, तो च्ह्रि लगाना आसान रहता है और कोई गलती नहीं होती है. रेखांकन (layout) की कई विधियाँ होती हैं, जैसे वर्गाकार, षट्भुजाकार, आयताकार आदि. वर्गाकार विधि सुगम और सबसे अधिक प्रचलित है. इस विधि में पेड़ से पेड़ का फासला और लाइन से लाइन का फासला एक समान होता है और आस पास के चार पेड़ों को सीधी रेखा से मिलाने पर एक वर्ग बन जाता है.

पौध लगाना

चिह्न लगाना प्रारंभ करने से पहले एक सीधी आधारभुजा डाल लेना आवश्यक होता है. यह आधारभुजा आस पास की पक्की सड़क, अथवा इमारत या पास लगे हुए बाग, के समांतर डाली जा सकती है, अथवा भूमि का आकार देखकर उसके अनुसार डाली जा सकती है. फिर रेखांकन उसी आधार पर आसानी से किया जा सकता.

पेड़ों को उचित फासले पर लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है. प्राय: भूमि में अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लालच में लोग पेड़ पास पास लगा देते. पेड़ पासश् पास लगाने से उनको पूरा फैलने की जगह नहीं मिलती. बढ़ने पर वे आपस में मिल जाते हैं. घने बाग में धूप और हवा नहीं पहुँचती और पेड़ों में अच्छी फसल नहीं होती. केवल चोटीवाले भाग में, जहाँ थोड़ी धूप तथा हवा पहुँचती है, थोड़े फल लगते हैं, जिनकी रखवाली करना और तोड़ना दोनों कठिन होता है. इस कारण पेड़ सदा उचित फासले पर लगाना चाहिए. मुख्य फलों के पेड़ों के फासले निम्नलिखित हैं :

देशी आम - ४० फुट

कलमी आम - ३५ फुट

अमरूद - २५ फुट

नीबू - २० फुट

लीची - ३० फुट

लुकाठ - २५ फुट

पपीता - ८ फुट

पेड़ों को लगाने के निशान भूमि में लगा लेने के बाद वहाँ तीन फुट चौड़े तथा तीन फुट गहरे गोल गड्ढे खोद लेने चाहिए. गड्ढे खोदने का काम जून तक कर लेना चाहिए, ताकि वर्षा प्रारंभ होने से पहले गड्ढों की मिट्टी को कम से कम १५ दिन एवं हवा लग जाए. गड्ढों की मिट्टी में से कंकड़ पत्थर आदि निकालकर उसमें लगभग श्भाग सड़े गोबर की खाद मिला देना चाहिए. फिर गड्ढे में पानी भरने से मिट्टी बैठ जाती है, इसलिए गड्ढो को भरते समय मिट्टी की सतह जमीन से लगभग दो इंच ऊँची रखनी चाहिए.

जब एक दो बार अच्छी वर्षा हो जाए, तब गड्ढों के बीचोबीच पेड़ लगा देना चाहिए. पेड़ लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ गड्ढे में उसी गहराई तक लगे, जितना वह पहले क्यारी या गमले में लगा था. अधिक गहरा लगा देने से पेड़ का तना मिट्टी में दब जाता है और उसके सड़ने का अंदेशा रहता है. इसी प्रकार उथला पेड़ लगाने से उसकी जड़ें खुल जाती हैं और पेड़ को हानि पहुँचती है. यदि वर्षा न हो रही हो तो पेड़ लगाने के बाद तुंरत उसमें पानी देना चाहिए.

पेड़ सदा किसी विश्वसनीय जगह से लेना चाहिए, चाहे उसका मूल्य कुछ अधिक ही देना पड़े. यदि प्रारंभ में गलत किस्मों के पेड़ लग जाते हैं, तो बहुत नुकसान होने की संभावना है. फलने पर जब मालूम पड़ता है कि खराब और गलत किस्मों के पेड़ लग गए हैं उस समय सिवा उन पेड़ों को निकालकर नए पेड़ लगाने के और कोई उपाय नहीं रहता. इस प्रकार काफी समय और रुपया बेकार जाता है. इसलिए काफी खोजबीन करके और ठीक किस्म के पेड़ ही लगाना चाहिए.

 

 

organic farming: 
जैविक खेती: