फसलों पर खाद एवं उर्वरकों का प्रभाव

जिस प्रकार मनुष्य तथा पशुओं के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार फसलों से उपज लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति करना आवश्यक है| फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व जमीन में खनिज लवण के रूप में उपस्थित रहते हैं, लेकिन फसलों द्वारा निरंतर पोषक तत्वों का उपयोग, भूमि के कटाव तथा रिसाव के द्वारा भूमि से एक या अधिक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिसे किसान भाई खाद और उर्वरक के रूप में खेतों में डालकर फसलों को उनकी आपूर्ति करते हैं ।

फसल उत्पादन में आमतौर पर गोबर की खाद, बार्मी कम्पोस्ट, शहरी कम्पोस्ट, अंरडी की खली, नीम की खल्ली, मूंगफली की खल्ली, सरसों की खल्ली, हड्‌डी का चूर तथा डैचा, सनई और मूँग को हरी खाद के रूप में उपयोग की जाती है । इनमें पोषक तत्व कम मात्रा में होते है तथा प्रति ईकाई पोषक तत्व के लिए अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ता है हमारे किसान भाई अपने खेतों में पशुओं से प्राप्त गोबर को खाद के रूप में चुनते है । लेकिन कुछ किसान भाई गोबर से उदला बनाकर ईधन के  रूप में उपयोग करते है । उनसे आग्रह है कि गोबर जैसी बहुमूल्य खाद को जलावन के रूप में न प्रयोग कर अपनी फसल  से अधिक उत्पादन लेने के लिए खेतों में डालें । क्योंकि खाद के प्रयोग से फसल को न केवल पोषक तत्व ही मिलते है, बल्कि इनका उपयोग से भूमि संरक्षण में सुधार होता है । यहाँ की बलुवाई भूमि की संरचना में सुधार होता है । इससे इसमें अल-धारण क्षमता में वृद्धि होती है जिससे  किसान भाई को अधिक बार सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

इसके अलावे धनायन विनिमय की क्षमता बढ़ती  हैं जिससे जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ती है। भूमि में जीवाणु के स्तर में परिवर्त्तन होता है । वायु का संचार अच्छी तरह होने से जीवाणुओं की क्रियाशीलता  बढ़ती है । जिससे फसलों की वृद्धि अच्छी होती है तथा उपज अच्छी मिलती है । इसके अलावे जैविक अम्ल का भी निर्माण होता है जो भूमि में पोषक तत्वों की घुलनशीलता  को बढ़ाते हैं, जिससे वे पोषक तत्व फसल को आसानी से मिलते है । नीम तथा करंज की खली के उपयोग से पोषक तत्वों की आपूर्ति के साथ-ही-साथ  फसल को कीटाणुओं द्वारा होने वाली क्षति भी    क म होती है ।

 

फसल उत्पादन में मुख्यतः नेत्रजन स्फुर, पोटाशयुक्त उर्वरक का प्रयोग होता है । इसके अलावे सतुलित पोषक के लिए गंधक युक्त तथा लोहा युक्त उर्वरक का भी प्रयोग होता है । नेत्रजन  युक्त उर्वरक  में यूरिया,  अमोनियम  सल्फेट,  अमोनियम क्लोराइड का प्रयोग होता है । स्फुर युक्त उर्वरकों में सिंगल सुपर फासफेट तथा पोटाश के लिए पोटाशियम  क्लोराइड  तथा पोटाशियम  सल्फेट का प्रयोग होता है । इसके अलावे नेत्रजन + स्फुर क्षेत्रों के लिए हाई आमोनियम फासफेट का प्रयोग होता है । गंधक की आपूर्ति के लिए जिप्सम का प्रयोग होता है ।

 

वर्तमान समय में फसल उत्पादन  में उर्वरकों का 40 - 60 प्रतिशत योगदान है । संतुलित उर्वरक प्रयोग से अधिक उपज ली जा सकती है । नेत्रजन युक्त उर्वरक पोधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होते है  तथा सभी प्रोटीनों का आवश्यक अवयव जिसका विकास एवं उपज की वृद्धि में सहायक है । स्फुर  युक्त उर्वरक जड़ों की वृद्धि कोशिका विभाजन पौधों की वृद्वि एवं उपज में बढोतरी में सहायक होते है । फूलों एवं फलों के विकास के लिए फसल को शीध्र पकने के लिए स्फुर जनित उर्वरकों का प्रयोग जरूरी है । पोटाश युक्त उर्वरक प्रोटीन, मंड तथा र्शकरा सेउत्पादन एवं प्रवाह के नियंत्रित करना, पौधों को रोगों एवं कीड़ों, पाला एवं फसल की गुणवक्ता की वृद्धि के लिए आवश्यक है । गंधक युक्त उर्वरक से तेलहनी फसलों में तेल की मात्रा बढ़ती है तथा उपज में भी वृद्धि होती है ।फसलों में एक्कीकृत पोषण का मतलब  है कि फसल से समुचित उपज लेने के लिए खाद एवं उर्वरको का समन्वित उपयोग करें । क्योंकि लगातार उर्वरक को प्रयोग से जमीन की उर्वराशक्ति पर बुरा असर पड़ता है तथा उपज भी प्रभावित होता है|

इसके बाद इसे अखबार या साफ कपड़ों पर फैलाकर छाया में आधा घंटे तक सुखने दें । इसके बाद उपचारित बीजों की बुआई शीध्र कर दें । इस तरह अगर बीज को उपचारित करें तो किसानों को कितना आर्थिक लाभ होने की संभावना है|