मूंग की आर्गेनिक खेती

भूमि
 चुनाव -
 इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे हल्की से भारी मिट्टी पर की जाती है , उत्तरी भारत में गहरी उचित जल निकास वाली दोमट व दक्षिणी भारत की लाल मृदाऐ उपयुक्त हैं जिनमे दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है लेकिन सिंचाई का अच्छा प्रबंध होना आवश्यक है .
 तैयारी - रबी की फसल काटने के तुरंत बाद पलेवा करना चाहिए , खेत में ओट आने पर एक जुताई तथा बाद की जुताई मिट्टी पलटने वाले तवेदार हैरो तथा दूसरी जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके भली - भाँती पाटा लगाना चाहिए ताकि खेत समतल हो जाए और अधिक नमी बनी रहे .

जलवायु 
मूंग की फसल सभी मौसमों में उगाई जाती है , उत्तरी भारत में इसे वर्षा ( खरीफ ) तथा ( ग्रीष्म ) ऋतू में उगाते हैं , दक्षिणी भारत में मूंग को रबी मौसम में उगाते हैं , इसकी फसल के लिए अधिक वर्षा हानिकारक होती है ऐसे क्षेत्रों में जहाँ 60-75 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है मूंग की खेती के लिए उपयुक्त हैं पर , मूंग की फसल के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती है , मूंग की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है , पौधों पर फलियाँ आते समय तथा फलियाँ पकते समय शुष्क मौसम तथा उच्च तापक्रम अधिक लाभप्रद होता है .

प्रजातियाँ
टाइप 1  
 फसल अवधि 60-65 दिन , पौधे सीधे बढ़ने वाली , फली लम्बी , दाने हरे रंग के व मध्यम आकार के , हरी खाद एवं दाने के लिए प्रयोग करते हैं . उपज क्षमता 6-7 क्विं / 0 हैक , गर्मियों में बोवाई के लिए उपयुक्त .
44 टाइप   फसल अवधि 60-70 दिन , हरी खाद के लिए उपयुक्त , ग्रीष्म व वर्षा ऋतू के लिए उत्तम , पौधा अर्ध फैलने वाला , पीला मोजैक वायरस रोग लगता है , सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए उपयुक्त , उपज क्षमता 6-8 क्विं / 0 हैक .
51 टाइप   फसल अवधि 75-80 दिन , पौधा सीधा बढ़ने वाला व लंबा , दाना माध्यम आकार का एवं चमकीला हरे रंग का , उपज क्षमता 6-12 हैक क्विं /, देश के मैदानी क्षेत्रों में मुख्यतः खरीफ में मिलवां खेती के लिए उत्तम .
851 के   फसल अवधि 60-65 दिन , पौधा अर्ध फैलने वाला , फलियाँ लम्बी , उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 इस किस्म की फलियाँ एक ही समय में हैं पकती हैक , उत्तर तथा दक्षिणी भारत के लिए उत्तम .
पूसा : वैसाखी - फसल 60-70 दिन अवधि , पौधे अर्ध फैले वाले , दाने का आकार मध्यमउत्तरी भारत में अंतरवर्ती फसल के लिए सबसे उपयुक्त फसल , फलियाँ लम्बी , उपज 8-10 क्विं / 0 हैक .
16 पी एस   फसल अवधि 60-65 दिन , पौधा सीधा बढ़ने वाला व लंबा , उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 हैक , सम्पूर्ण भारत में वषा तथा ग्रीष्म दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त .
मोहिनी  फसल अवधि 70-75 दिन , पौधा सीधा फैलने वाला तथा शाखाएं युक्त , प्रत्येक फली में 10-12 बीज , दाने छोटे , उपज 10-12 क्विं / 0 हैक पीला मोजैक वायरस व सर्कोस्पोरा लीफ स्पोट रोग के प्रति सहनशील क्षमता .
शीला : फसल अवधि 75-80 दिन , पौधा सीधा बढ़ने वाला व लंबा , उपज क्षमता 15-20 क्विन 0 पूरे उत्तर प्रदेश के मौसम के लिए उपयुक्त .
पन्त मूंग 1   फसल अवधि 75 दिन ( खरीफ ) तथा 65 ( जायद ) दिन , दाने छोटे , उपज क्षमता 10-12 kvin 0 / हैक .
एम् एल 1  फसल अवधि 90 दिन , बीज छोटा व हरे रंग का , उपज क्षमता 8-12 क्विं / 0 हैक , पंजाब तथा हरियाणा में खेती के लिए उपयुक्त .
एम् एल 5   फसल अवधि 80-85 दिन , उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 हैक , खरीफ की फसल के लिए उपयुक्त , पौधे सीधे बढ़ने वाले तथा फलियों से लदा होता है , पीला मोजैक रंग कम लगता है .
 वर्षा  यह अगेती किस्म है , पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा होता है , उपज क्षमता 10 क्विं / 0 हैक , यह किस्म हरियाणा से विकसित की गई है .
सुनैना  फसल अवधि 60 दिन , पौधा अर्ध सीदा बढ़ने वाला , बीज चमकीला तथा हरे रंग का , उपज क्षमता 12-15 हैक क्विं /, बिहार में ग्रीष्म मौसम के लिए उपयुक्त .
45 जवाहर   इस किस्म को हाइब्रिड 45 भी कहा जाता है , फसल 75-85 दिन अवधि , पौधा अर्ध सीधा बढ़ने वाला , उपज क्षमता 10-13 कवन / 0 हैक , खरीफ के मौसम के लिए उपयुक्त .
11 कृष्णा  अगेती किस्म फसल अवधि 65-70 दिन , ग्वालियर क्षेत्र के लिए उपयुक्त उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 हैक .
पन्त मूंग 3  फसल अवधि 60-70 दिन , 1000 दाने का वजन 35 ग्राम , ग्रीष्म ऋतू में खेती के लिए उपयुक्त , पीला मोजैक वायरस तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोधक , पौधे की ऊंचाई 50-60 सेमी 0, 9-11 दाने प्रति फली .
पी.डी. 54 एम्  फसल अवधि 60-65 दिन , पीला वायरस मोजैक रोग रोधक , उपज क्षमता 12-15 हैक क्विं /, बीज बड़ा व चमकीला हरे रंग का .
 अमृत - फसल आधी 90 दिन , इस किस्म की खेती बिहार में खरीफ मौसम में की जाती है , पीला मोजैक वायरस रोग के प्रति सहनशील , उपज क्षमता 10-12 क्विं / 0 हैक .
बीज बोवाई
बीजदर - खरीफ मौसम में बीजदर 12-15 45 किग्रा प्रति हैक्टेयर प्रयोग करते हैं तथा बोवाई पंक्तियों में सेमी की दूरी पर करना चाहिए , रबी तथा ग्रीष्म मौसम में मूंग के लिए बीजदर 20 किग्रा / हैक रखना चाहिए तथा बोवाई कतारों में 30 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए .
बोवाई का समय खरीफ मौसम में मूंग की बोवाई मानसून आने पर जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य करना चाहिए . रबी मौसम में मूंग की बोवाई - अक्टूम्बर नवम्बर में करनी चाहिए . दक्षिणी भारत में मध्य प्रदेश , तमिलनाडु व उड़ीसा में मूंग की बोवाई रबी मौसम में भी की है जाती . उत्तर प्रदश , पंजाब , हरियाणा , दिल्ली , पश्चिम बंगाल तथा बिहार में मूंग की खेती ग्रीष्म मौसम में की है जाती . इन राज्यों में मूंग को गन्ना , गेहूं , आलू आदि की कटाई के बाद बोते हैं , इन राज्यों में ग्रीष्म ( बसंत ) मौसम में मूंग की बोवाई मध्य आर्च से अप्रैल तक की है जाती .

जैविक खाद
खाद का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा 50 कुंतल गोबर की खाद  बोवाई करने से पहले जमीन में छिडकाव कर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए .मूंग को  नाइट्रोजन की मात्रा की आवश्यकता नही होती है बुबाई के 15 से 25 दिनों के बाद वर्मिवाश का छिद्काब करना चाहिए 
सिंचाई 
मूंग की ग्रीष्मकालीन फसल को 4-6 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है , वर्षाकालीन फसल में सूखा पड़ने की स्थिति में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए जब फसल पूर्ण पुष्प अवस्था पर हो तो उस समय कोई भी सिंचाई नहीं करना चाहिए .
खरपतवार नियंत्रणदाने वाली फसल की निराई - गुड़ाई , बोवाई के 20-25 दिन बाद करना आवश्यक है , दूसरी निराई गुड़ाई बोवाई के 45 दिन बाद करनी चाहिये .
मूंग की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग
पीला मोजैक  
इस रोग के कारण नई पत्तीयाँ पीली हो जाती हैं , पत्तियों की शिराओं का किनारा पीला पड़ जाता है और बाद में पूरी पत्ती ही पीली पड़ जाती है . यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है .
चारकोल विगलन - रोग का प्रमुख लक्षण पौधों की जड़ों तथा तनों का विगलन ( सडन ) है इस .
वर्ण  चित्ती  इसके लक्षण पत्तियों पर प्रायः वृत्ताकार व्यास के धब्बे से प्रकट होते हैं , कभी - कभी रोगग्रस्त भागों के साथ में मिलने से बड़ा अनियमित आकार का धब्बा बन जाता है , धब्बों का रंग बैंगनी लाल तथा भूरा है होता , फलियों पर भी इसका असर आ जाता है .
रोग नियंत्रणबीमारी आने पर इलाज करने से अच्छा है की बीमारी आने ही न दें इसलिए किसान को फसल में हर 15 दिन बाद नीम पानी माइक्रो झाइम मिलाकर छिडकाव करते रहना चाहिए . अगर रोग आ ही गया है तो उस फसल को तत्काल उखाड़कर जला देना चाहिए और तत्काल हर हफ्ते नीम पानी और झाइम का छिडकाव करते रहना चाहिए जब तक फसल रोगमुक्त न हो जाए . रोगमुक्त , विषमुक्त और तंदुरुस्त बीज की बोवनी करनी चाहिए . अगर किसान ओरगेनिक खेती कर रहा है तो उपरोक्त बीमारियाँ आने का चांस ही नहीं है . उपरोक्त सभी रोग बाजारवाद , रासायनिकरण , किसानों की अकर्मण्यता द्वारा पैदा किये गए है . अगर रोग पैदा ही नहीं होंगे तो बाजार को कौन पूछेगा इसलिए पहले रोग पैदा किया जाता है फिर उसका इलाज बताया जाता है . इस तरह से किसानों लूटने का यह नया फंडा है . रोग होगा तो फसल डॉक्टर , फसल वैज्ञानिक , दवा कंपनी , दवा दूकान आदि का जन्म होता है अतः किसान अपने खेतोँ से तंदुरुस्त फसल की छटाई कर अपना बीज खुद तैयार करें , बाजार से हमेशा दूर रहे तो लुटने से बच है सकता .

मूंग की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट

फली बेधक - फली बेधक कीट इस फसल का प्रमुख कीट है , इस कीट की सूड़ियाँ फलियों में दाना पड़ते समय फलों में दाना पड़ते समय फली में छेद करके दाने को खा जाती हैं .

कीट नियंत्रण

5 लीटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे 15 चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें , इस घोल को बीजों पर डालकर भिगो दें तथा 2 घंटे तक रखा रहने दें उसके बाद बोवाई करें . यह 1 एकड़ घोल की बोवनी के बीजों के लिए पर्याप्त है

5 देशी गाय के गौमूत्र में बीज भिगोकर उनकी बोवाई करें , ओगरा और दीमक से पौधा सुरक्षित रहेगा

 

ओगरा या दीमक से बचाव हेतु बोवाई करने से पहले बीजों को कैरोसिन से उपचारित करें .

250 मिली नीम ( नीम पानी बनाने के लिए 25 किलो नीम की पत्तियों को अच्छी तरह से पीसकर 50 लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक की 20-25 पानी लीटर न रह जाए पानी , उसके बाद उसे उतारकर छानकर उपयोग करें ) को 25 मिली माइक्रो झाइम साथ अच्छी तरह मिलाकर उपयोग करें एवं सुपर 1 गोल्ड मैग्नीशियम 1 किग्रा 45 रु प्रति बैग 200 लीटर पानी में घोलकर माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से - तर बतर कर छिडकाव करें .

500 ग्राम लहसुन , 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च लेकर बारीक पीसकर 150-200 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिडकाव करें इससे इल्ली . रस चूसक कीड़े नियंत्रित होंगे .बेशरम के पते 3 किलो एवं धतूरे के फल तोड़कर 3 3 लीटर पानी में उबालें , आधा पानी शेष बचने पर उसे छान लें , इस पानी में 500 ग्राम चने डालकर उबालें . ये चने चूहों के बिलों के पास शाम के समय डाल दें , इससे चूहों से निजात मिलेगी .

कटाई  मूंग की फलियाँ गुच्छों में लगती हैं , पूरी फसल में फलियों को 2-3 बार में तोड़ लिया जाता है .

उपज

वर्षाकालीन फसल से 10-12 क्विं / 0 हैक तथा ग्रीष्मकालीन फसल 12-15 हैक क्विं / तक में दाने की उपज प्राप्त हो जाती है .

भंडारण

दाने को अच्छी प्रकार सुखाकर जब उसमे नमी का प्रतिशत 10-12 रह जाए तब इसे भण्डार में रखना चाहिए .

अन्य

 बीजोपचार - 20-40 ग्राम जैविक खाद 1 किलो प्रायः ग्राम बीज के उपचार के लिए पर्याप्त होती है . पहले गुड या चीनी को गर्म पानी में घोलकर 10% का घोल बनाया जाता है तथा इसे ठंडा होने दिया जाता है . तत्पश्चात इस गुड के घोल में जैविक खाद तथा बीज अच्छी तरह से मिला लेते हैं ताकि बीजों पर एक पर्त बन जाए , बीज को छाया में सुखाते हैं . दलहनी फसलों का उत्पादन बढाने के लिए तथा लागत को कम करने के लिए इस प्रकार की जैविक खाद का प्रयोग - दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है . इससे वातावरण की नुक्सान नहीं होता है , न तो ये जल में घुलकर अन्य उर्वरक की तरह जल को प्रदूषित करते हैं और न ही वायु को प्रदूषित करते हैं वरन इसके साथ - साथ फसल चक्र में उपयोग की जाने वाली बाद की फसल को भी पहुंचता लाभ है . इसीलिये इन्हें पर्यावरण मित्र कहा जाता है .

ध्यान देने योग्य बातें

बीजोपचार के समय गर्म घोल का प्रयोग नहीं होना चाहिए , घोल के ठन्डे होने पर ही इसका प्रयोग करना चाहिए .

बीजोपचार के बाद बीजों को छाया में सूखने दें .​

बीजोपचार के बाद आधा से एक घंटे के अंतराल में ही इसकी बोवाई कर देनी चाहिए .

 

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