वानस्पतिक रसायन एवं उनका प्रयोग

वानस्पतिक रसायनों से कीट नियंत्रण
वातावरण में बढ़ते प्रदूषण तथा कीटनाशकों के मूल्यों में भारी वृद्धि के कारण यह आवश्यक हो गया है कि कीटों के नियंत्रण हेतु वानस्पतिक नियंत्रण की विधियों को प्रयोग में लाया जाये। वानस्पतिक विधियों के प्रयोग से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता। इस विधि से कीट नियंत्रण में खर्च कम आता है। इन विधियों में निम्न वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।
1. नीम से कीट नियन्त्रण
नीम से कीट नियंत्रण हेतु नीम की पत्ती 25 कि.ग्रा. या नीम की खली 5-6 कि.ग्रा. या नीम का तेल 1 लीटर 200 लीटर पानी में मिलाकर 48 घंटे के लिये छोड़ दें। 48 घंटे के बाद इस पानी को एक एकड़ में किसी भी फसल में कीड़े के विरूद्ध प्रयोग किया जा सकता है। इसके प्रभाव से कीड़े खेत से दूर चले जाते हैं ।
2. मदार का पेड़

इसको मंदार'आक, 'अर्क' और अकौआ भी कहते हैं ,मदार के पेड़ को महीन काट लें, फिर इस कटे हुए पेड़ के टुकड़ों को थोड़े पानी में सड़ा लें, फिर सड़ने के बाद उसको कपड़े से रस निकाल लें। इसको 1ः50 के पानी अनुपात में मिला लें, फिर इस मिश्रण को खेतों में छिड़काव करें। इसके प्रयोग से खेत में दीमक का नियंत्रण हो जाता है।
3. सदाबहार, बेहया केजुएरिना, बेसरम तथा करंज की पत्तीप्रथम वृक्ष जाति को, जो प्राचीनों का संभवत: वास्तविक करंज है, संस्कृत वाङ्‌मय में नक्तमाल, करंजिका तथा वृक्षकरंजादि और लोकभाषाओं में डिढोरी, डहरकरंज अथवा कणझी आदि नाम दिए गए हैं।
इन पेड़ों की पत्तियों में कीटनाशक क्षमता पाई जाती है। किसी भी पेड़ की 25 कि.ग्रा. पत्ती लेकर 200 लीटर पानी में 48 घंटे के लिए डाल दें और 48 घंटे बाद इस पानी को एक एकड़ की किसी भी फसल पर, किसी भी समय, किसी भी कीड़े के लिए प्रयोग करें। कीड़े इसके प्रयोग करने पर खेत से बाहर चले जाते हैं ।
4. सौंफ
सरसों की फसल में माहू से बचाव हेतु सरसों की फसल के चारों ओर तथा बीच में एक-दो लाइन सौंफ की लगा देते है। माहू सौंफ की फसल को काफी पसंद करती है। अतः वह सौंफ पर चली जाती है, जिसके कारण सरसों की फसल माहू के प्रकोप से बच जाती है।
5. गेंदा
किसी भी फसल विशेषतः सब्जी की बैंगन, टमाटर इत्यादि की फसलों के चारों तरफ गेंदा को लगाने से सभी कीड़े गेंदे पर आ जाते है, जिससे फसल कीड़ों से बच जाती है। परवल की फसल में रूटनाट निमेटोड का प्रकोप हो जाता है, जिससे फसल सूख जाती है। यदि परवल की जड़ों के पास गेंदे को लगा दिया जाये, तो फसल में रूटनाट निमेटोड का असर नहीं होता है और फसल बच जाती है।
6. चने की फसल
चने की फसल में संूडी रोकने हेतु चारों ओर अलसी की बुआई कर देने से संूडी नहीं लगती है या सूंडी का प्रभाव कम हो जाता है।
पशु अवशेषों का कीटनाशकों के रूप में प्रयोग: –
1. मट्ठा:-
चना में फली वेधक कीट तथा टमाटर मिर्च में मोजेक के नियंत्रण हेतु मट्ठा प्रयोग लाभकारी रहता है। 5 कि.ग्रा. मट्ठे को दो माह तक सड़ायें। इस सड़े मट्ठे में पानी मिलाकर इतना पतला करें कि पानी में खटास बनी रहे। इस घोल को फसल पर छिड़काव करें। यह घोल माहू, रूटनाट निमेटोड, सूंडी, दीमक आदि कीटों से फसलों की रक्षा करता है ।
2. गोमूत्र: –
गोमूत्र का छिड़काव सभी फसलों में, किसी भी मौसम में, किसी भी कीट के विरूद्ध लाभदायक होता है ।
उपयोग विधि:
1. कांच की शीशी में रखकर धूप में 15-20 दिन के लिए रखें तथा 150-200 मिली लीटर को 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। इस प्रकार फसल पर सभी प्रकार के कीड़ों से नियंत्रण हो जाता है।
2. एक लीटर गोमूत्र को 1 कि.ग्रा नीम की पत्ती, 15-20 धतूरे की पत्ती तथा 3-4 तम्बाकू के पत्ते या 100 ग्राम तुलसी की पत्ती डालकर लगभग आधे घंटे तक उबालेें जिससे यह पत्तियां पूर्णरूपेण गल जाये, फिर इस मिश्रण को आवश्यक पानी की मात्रा में मिलाकर एक एकड़ में, कीड़ों के नियंत्रण के लिये प्रयोग करें । इसका प्रयोग सभी फसलों में पूर्णरूपेण प्रभावी रहता है।
फसलों में कीट रोग का जैविक नियंत्रण: –
1. डाइकोग्रामा कार्ड: –
यह एक प्रकार के कीड़े ततैया के कार्ड पर लगे अण्डे होते है, जो फसल में लगा देने पर प्रौढ़ हो जाते है तथा यह सभी प्रकार की सूंडियों के अण्डों पर अपने अण्डे दे देते है, जो हानिकारक कीड़ों के स्थान पर ततैया कीड़े पैदा हो जाते है, जो बाद में अन्य हानिकारक कीड़ों का नियंत्रण करते है। इस प्रकार इन लाभदायक ततैया की भी संख्या बढ़ जाती है। यह अण्डा परजीवी है, जिनके एक कार्ड में प्रतिवर्ग इंच 4000 अण्डे लगे रहते है। कार्ड 6 इंच लम्बे होते हैं, जिससे 1 इंच में प्रयोगशाला का नाम व पता अंकित रहता है। शेषभाग में अण्डे लगे रहते हैं, कार्ड के शेष 5 इंच में प्रति वर्ग इंच 4000 अंडे लगे रहते हैं। इनको 1 इंच के छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। इन 1 इंच के टुकड़ों को धागे से बांध देते हैं, जिनसे वह नष्ट हो जाते हैं और उसके स्थान पर ततैया पैदा हो जाती है। इस प्रकार एक कार्ड से निकली ततैया 20 फीट क्षेत्र में कीड़ों को मार देती है । अतः इन कार्डो के टुकड़ों को 20 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए। छोटी फसलों के लिए 1 कार्ड प्रति एकड़ तथा बड़ी फसलों के लिये 2 कार्ड प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
2. डाईकोडर्मा फफंूदी: –
यह एक प्रकार की फफंूदी है, जो सभी फसलों में तना सड़न को नियंत्रित करता है।
प्रयोग विधि: –
1 कि.ग्रा. फफंूदी को 20-25 किलो गोबर की खाद पर तैयार करते है। गोबर की खाद को फर्श पर फैलाकर पानी से तर कर देते हैं, फिर इस पर 1 कि.ग्रा डाईकोडर्मा फफंूदी पाउडर को समान रूप से बिखेर देते हैं, फिर पाॅलीथीन या बोरियों से ढॅंक देते हैं, ताकि ढेर का तापक्रम बढ़ जाये। करीब 10 दिन बाद यह फफंूदी फैलकर समस्त गोबर की खाद पर फैल जायेगी। इस फफूंदी युक्त खाद को खेत में बिखेर कर प्रयोग करना चाहिए। यह सभी फसलों में प्रभावी है।
3. डाइकोडर्मा फफंूदी से बीज उपचार: –
चने में 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. से बीज उपचार करने से बीमारी का पूर्ण नियंत्रण सम्भव है। यह कम्पोस्ट बनाने की एक प्रकार की विधि है, जिसमें फफंूदी का प्रयोग करके उसे भी मिला देते हैं। इस प्रकार यह डाइकोडर्मा फफंूदी युक्त कम्पोस्ट खाद है।
बनाने की विधि: –
भूमि में एक गड्ढा जिसकी लम्बाई आवश्यकतानुसार चैड़ाई-1 से 1.5 मीटर, गहराई 1 से 1.25 मीटर खोद देते हैं, फिर इसमें सबसे नीचे पुआल, भूसा की पर्त 4 इंच की लगा देते हैं, जिस पर पानी छिड़काव कर देते हैं। इसके बाद दूसरी पर्त गोबर की खाद 1 फीट मोटी लगाते हैं, इसके ऊपर 200-500 ग्राम डाइकोडर्मा फंगस को समान रूप से बुरक देते हैं। इसी प्रकार गोबर की खाद तथा भूसे/पुआल की तीन पर्त लगाकर गड्ढे को ढॅंक देते हैं। 6 माह बाद खाद के प्रयोग से किसी भी फसल में उकठा रोग का नियंत्रण हो जायेगा।

 

जैविक खेती: