हमे बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया इन रासायनिक खादों ने :गिरिजा कान्त सिंह

हमे बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया इन रासायनिक खादों ने ऐसे शव्दों को न्यूट्रीवर्ड कम्पनी के डायरेक्टर  श्री गिरिजा कान्त सिंह जी ने ।उन्होंने फसल में लगातार बदने बाले उर्वरकों के प्रति चिन्ता जाहिर की उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों का  प्रयोग वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है। उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशको का चलन हरित क्रांति में किया गया।हमारे प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन जी ने रासानिक खादों और संकर प्रजाति के बीजों की वकालत की। जिसकी  कीमत अव हमारे देश के किसान चुका रहे हैं ,उन्होंने साथ ही यूरिया के अंधाधुंध प्रयोग पर चिन्ता जाहिर की साथ ही उन्होंने यूरिया तथा अन्य रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से लेकर उससे होने वाली समस्या के बारे में बताया l

उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा इस्तेमाल किए गए नाइट्रोजन से पौधे मात्र 30 फीसदी एफ यूरिया का उपयोग करते हैं। फसल की माँग से अधिक उपयोग में लाया गया नाइट्रोजन वाष्पीकरण और निष्टालन के जरिये खत्म हो जाता है। नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग जलवायु परिवर्तन और भूजल प्रदूषण को बढ़ावा देता है। यूरिया जमीन में रिस जाता है तथा नाइट्रोजन से मिलकर नाईट्रासोमाईन बनाता है जिससे दूषित पानी को पीने से कैंसर, रेड ब्लड कणों का कम होना और रसौलियाँ बनती हैं।उन्होंने डॉ आर के सिंह के एक कार्यक्रम का जिक्र भी किया जिसमें रासायनिक उर्वरकों के इतिहास के बारे में बताया गया था रासायनिक कृषि विनाश का नया आगाज

DAP खाद रॉक फास्फेट के रूप में मँगवाई जाती है जिसका शोधन कर इसमें से पी फास्फोरस प्राप्त किया जाता है। उन्होंने बताया कि शोधन के दौरान इसमें है, heavy element जैसे कोवाल्ट, कैडमियम और यूरेनियम आदि रह जाते हैं जिनके प्रयोग से मिट्टी तथा पानी दूषित होता है। मिट्टी की उर्वरता स्थिति में लगातार गिरावट हरित क्रांति की दूसरी पीढ़ी की सबसे गम्भीर समस्याओं में एक मानी जाती है। मिट्टी की उर्वरता स्थिति में गिरावट मुख्य रूप से सघन फसल प्रणालियों द्वारा पोषक तत्वों को हटाये जाने से आयी है जो पिछले कई दशकों के दौरान उर्वरकों एवं खादों के जरिये इतनी अधिक हो गयी है कि उनको फिर से भर पाना मुश्किल है। किसान अधिकतर नाइट्रोजन युक्त उर्वरक (ज्यादातर यूरिया) या नाइट्रोजन युक्त और मिश्रित जटिल उर्वक (ज्यादातर यूरिया या डीएपी) का उपयोग करते हैं तथा पोटाश और अन्य अभाव वाले पोषकों के उपयोग को नजर अन्दाज कर देते हैं। दूसरी तरफ, बहुपोषक तत्व की कमियाँ भी अधिकतर मिट्टियों में पहले ही उभर आई हैं तथा विस्तारित हो चुकी हैं। विभिन्न परियोजनाओं के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में किए गए मिट्टी यानि मृदा विश्लेषण से कम से कम 6 पोषक तत्वों-नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी), पोटाश (के) जिंक (जेडएन) और बोरॉन (बी) की व्यापक कमी प्रदर्शित हुई।

उत्तर-पश्चिमी भारत के चावल-गेहूँ उगाये जाने वाले क्षेत्रों में किए गये कुछ नैदानिक सर्वे से पता लगा कि किसान उपज स्तर को बनाये रखने के लिए, जिन्हें पहले कम उर्वरक उपयोग के जरिए भी हासिल कर लिया जाता था, अक्सर उचित दरों से ज्यादा नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक निर्देशों के बावजूद नाइट्रोजन उर्वरकों में सबसे आम यूरिया का अन्धाधुन्ध उपयोग किया जाता है। यूरिया के अत्यधिक उपयोग का मिट्टी, फसल की गुणवत्ता और कुल पारिस्थितिकी प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक फसल में यूरिया का प्रयोग कर अगली फसल के लिये इसकी जरूरत नहीं रहती लेकिन किसान गेहूँ की फसल को खाद देने के बाद इसे धान में भी प्रयोग करते हैं जबकि इसकी जरूरत नहीं होती। किसानों द्वारा साल में ज्यादा फसलें लेने के कारण फसलों की घनत्व 177 हो गई है। उर्वरता को बढ़ाने के लिए रूढ़ी की खाद, soil health program, फसल विविधिकरण तथा organic factor को बढ़ाना चाहिए। गेहूँ तथा धान को काटने के बाद बची हुई नाड को जलाने की बजाए मिट्टी में ही मिला देना चाहिए। जिसके लिए सरकार द्वारा किसानों सबसीडी दी जाती है। इससे कम खर्च में ज्यादा मुनाफा पाया जा सकता है।

यूरिया का असन्तुलित उपयोग नाइट्रोजन की कुशलता को घटा देता है जिससे उत्पादन की लागत में वृद्धि हो जाती है और शुद्ध मुनाफे में कमी आती है। अधिक मात्रा में यूरिया का उपयोग फसल के रसीलेपन को बढ़ा देता है जिससे पौधे बीमारियों और कीट संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। यह मिट्टी के पोषक तत्वों, जिनका उपयोग नहीं किया गया है या पर्याप्त रूप से उपयोग नहीं किया गया है, के खनन को बढ़ाता है जिससे मृदा की उर्वरता में गिरावट आती है। ऐसी मिट्टियों को अधिकतम उपज देने के लिए भविष्य में अधिक उर्वरकों की जरूरत होगी। नाइट्रोजन एवं अन्य पोषक तत्वों की कुशलता, लाभप्रदत्ता और पर्यावरण सुरक्षा को बढ़ाने के लिए यूरिया के उपयोग को युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है।

उन्होंने रासायनिक घटकों के साथ जैविक सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग करने की वकालत की उन्होंने बताया कि उर्वरक यूरिया उपयोग का सन्तुलन न केवल फास्फोरस और पोटास के साथ किया जाना चाहिए बल्कि द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ भी किया जाना चाहिए न्यूट्रीवर्ड कम्पनी का साड़ा वीर,साड़ा वीर 4G, साड़ा वीर फर्राटा, साड़ा वीर स्प्रे का नियमित प्रयोग से फसल का उत्तम उत्पादन के साथ मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों में वर्द्धि होती है।

उन्होंने किसानों को मिट्टी परिक्षण के बाद ही अनुशासित उर्वरकों के प्रयोग की बात कही  साथ ही फसल चक्र का जिक्र और उसकी खूबियों के बारे में बताया । किसानों को सल्फर सूक्ष्म पोषण परीक्षण के लिए जोर देना चाहिए क्योंकि (सल्फर और सूक्ष्म पोषकों के बगैर) केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश अब सन्तुलित उर्वरक नुस्खा नहीं है। फसलों में फलियों तथा दालों का समावेश उर्वरक (यूरिया) की जरूरत में 25 से 50% तक की कमी ला सकता है। दाल के पौधे नाइट्रोजन को जमीन में रिसने से रोकते हैं फसल प्रणाली एवं सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर फलियों को अन्तवर्ती फसल हरित खाद, चारा, फसल या अल्पकालिक अनाज फसल के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। उचित फसल चक्र अपनाकर भी मृदा का उपजाऊपन बढ़ाया जा सकता है। फसल चक्र में खाद्यान्न फसलों के साथ दलहनी फसलों को भी उगाना चाहिये। दलहनी फसलें वायुमंडलीय नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है। साथ ही समृद्ध एवं टिकाऊ खेती के लिए मृदा में जीवांश पदार्थ की मात्रा को भी बढ़ाती हैं। भूमि के उपजाऊपन को बनाये रखने में जैविक कृषि विधियों का विशेष योगदान है। इसके अलावा खेत की तैयारी, फसल चक्र, कीट व रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव, समय से बुवाई, सस्य, भौतिक व यांत्रिक विधियों द्वारा खरपतवार नियन्त्रण किया जा सकता है। मृदा के उपजाऊपन को बढ़ाने में एकीकृत कीट/व्याधि प्रबंध की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इसमें कीटनाशकों एवं शाकनाशियों के साथ हानिकारक जीवों व खरपतवारों को नियन्त्रित करने के लिए बायोएजेंट, बायोेपेस्टीसाइड, कृषि प्रणाली में बदलाव जैसे - शून्य जुताई व कम जुताई को अपनाकर भी मृदा की उर्वरा शक्ति में सुधार किया जा सकता है।इसी श्रखला में न्यूट्रीवर्ड कम्पनी का साड़ावीर, साड़ावीर 4G,  साड़ावीर फर्राटा,  साड़ावीर स्प्रे का नियमित प्रयोग से फसल का उत्तम उत्पादन के साथ मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों में वर्द्धि होती है।

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