हल्दी व अदरक की खेती

किसान साथियों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हल्दी अदरक लगाने का उचित समय 15 मार्च से 15 अप्रैल है, लेकिन अगर आप ने नहीं लगाया है तो अभी भी समय है और आप इसे लगा सकते हैं। इस समय हल्दी लगाने से बरसात होने तक पौधे बड़े हो जाते हैं व ढेर से पत्ते होने के कारण छाया होने लगती है। जिससे खरपतवार कम उगते हैं। हल्दी और अदरक दोनों को सूरज के सीधे प्रकाश की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती है, अतः इसे बागों में भी अन्तःशस्य फसल के रूप में भी लगाया जा सकता है।यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब हम बागों में अन्तःशस्य फसल के रूप में इन फसलों को लगाये तो पौधों को खाद की मात्रा अलग से दें।

हल्दी की सबसे उपयुक्त प्रजातियां 

हल्दी की सबसे उपयुक्त प्रजातियां राजेंद्र सोनिया, पंत पीताभ आदि है तथा अदरक की प्रजातियों में मारन, रियो डी जेनेरो व अन्य स्थानीय प्रजातियां हैं।

खेत की तैयारी  एवं खाद व उर्वरक 

क्योंकि दोनों ही फसलें बहुत अधिक खुराक लेने वाली फसलें है, अतः खेत की तयारी करते समय इनके पोषण का विशेष ध्यान रखें। खेत की तैयारी खेत की तैयारी करते समय 150 से 175 कुंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ अंतिम जुताई करते समय मिट्टी में मिला दें। इसके साथ ही 75 किलो डीएपी व 50 किलो पोटाश प्रति एकड़ की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिला दे।खड़ी फसल में 50 से 55 दिन बाद 25 किलो यूरिया व 70 से 75 दिन बाद 25 किलो यूरिया की टॉपड्रेसिंग करें।

हल्दी अदरक का बीज बुबाई 

हल्दी अदरक का बीज बुबाई हल्दी अदरक का बीज बुबाई से पूर्व उसमें अंकुरण करवा लें। इसके लिए बीज को किसी छायादार जगह पर बोरों से ढक दें और नमी बनाये रखें।लगभग एक सप्ताह के बाद उसमें अंकुरण निकल आते हैं। अंकुरित बीज को 1% कार्बेंडाजिम के घोल में 20 मिनट तक उपचारित करने के बाद ही बुवाई करें।इनकी बुवाई आलू की बुवाई की तरह ही होती है तथा बुआई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखते हुए बुवाई करें। बुवाई के बाद मिट्टी को समतल कर देते हैं और सूखे पत्तों की पलवार पलवार बिछा देते हैं। इससे नमी का ह्रास भी नहीं होता है व अंकुरण भी बेहतर हो जाता है।

सिंचाई एवं निराई - गुड़ाई

हल्दी व अदरक का अच्छी गुणवत्ता का बीज पंतनगर विश्वविद्यालय, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी, राजकीय अनुसंधान केंद्र, बरुआसागर, झांसी, बस्ती, कृषि विज्ञान केंद्रों, अनुसंधान केंद्रों अथवा प्रगतिशील कृषकों से प्राप्त किया जा सकता है। अंकुरण के बाद 25 से 30 दिन पर एक बार सिंचाई कर देनी चाहिए तथा 50 से 55 दिन पर निराई गुड़ाई करके पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। निराई - गुड़ाई करते समय 25 किलो यूरिया की पहली खुराक देकर मिट्टी चढ़ा दे।इस प्रकार मिट्टी चढ़ाने से एक नाली जैसी बन जाती है। मानसून के समय बीच-बीच में बारिश होने से ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है ।

रोग एवं ​इसकी रोकथाम

अदरक में राइजोम राट नामक बीमारी बहुत लगती है। इसलिए अदरक को ऐसी मिट्टी में लगाएं जहां पानी कम ठहरता हो और जहाँ तक संभव हो तो मेड़ों पर लगाएं। जब फसल 30 से 40 दिन की हो तब अदरक के कंदो को सड़ने से बचाने के लिए 1 ग्राम कार्बेंडाजिम व दशमलव पांच (0.5) ग्राम स्ट्रैप्टो साइकिलिन के घोल की ड्रेंचिंग करनी चाहिए।

हल्दी में बरसात के महीने में अर्थात अगस्त-सितंबर में पत्ती धब्बा रोग बहुत आता है। इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित पत्तों को काटकर खेत से दूर नष्ट कर दें।खड़ी फसल में 2.5 ग्राम डाईएथिन ऐम 45 नामक फफूंदी नाशक घोल का छिड़काव करें। इस घोल में कोई स्टिकर (चिपकने वाला पदार्थ) जैसे सैंडोवेट या ट्राइटोन मिला ले। अथवा 1ली. गोंद को 5 लीटर पानी में पहले भली प्रकार फेंट ले फिर फफूंदी नाशी के घोल में मिलाकर छिड़काव करें। हल्दी के पत्तों के ऊपर घोल रुकता नहीं है स्टिकर मिलाने से घोल रुकेगा और उसका रोग के ऊपर प्रभाव भी पूरा होगा।

लगभग एक वर्ष पश्चात इन फसलों की खुदाई प्रारंभ हो जाती है। बेहतर उपज के लिए 2 वर्ष पश्चात भी फसल की खुदाई कर सकते हैं। हल्दी से लगभग 160 से 170 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है, जबकि अदरक से 130 से 140 कुंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

डॉ आर के सिंह,

अध्यक्ष

कृषि विज्ञान केंद्र  बरेली

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