गेहूं

गेहूं (Wheat ; वैज्ञानिक नाम : Triticum spp.) मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र से आई एक घास है जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है, धान का स्थान गेहूं के ठीक बाद तीसरे स्थान पर आता है। गेहूं के दाने और दानों को पीस कर प्राप्त हुआ आटा रोटी, डबलरोटी (ब्रेड), कुकीज, केक, दलिया, पास्ता, रस, सिवईं, नूडल्स आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। गेहूं का किण्वन कर बियर, शराब, वोद्का और जैवईंधन बनाया जाता है। गेहूं की एक सीमित मात्रा मे पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है और इसके भूसे को पशुओं के चारे या छत/छप्पर के लिए निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि दुनिया भर मे आहार प्रोटीन और खाद्य आपूर्ति का अधिकांश गेहूं द्वारा पूरा किया जाता है, लेकिन गेहूं मे पाये जाने वाले एक प्रोटीन ग्लूटेन के कारण विश्व का 100 से 200 लोगों में से एक व्यक्ति पेट के रोगों से ग्रस्त है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की इस प्रोटीन के प्रति हुई प्रतिक्रिया का परिणाम है।

केंद्र सरकार ने हटाया आयात शुल्क, किसानों में रोष

 केंद्र सरकार ने हटाया आयात शुल्क, किसानों में रोष

कृषि मंत्रालय लगातार कहता आ रहा है कि 2015-16 में भारत में बड़े स्तर पर गेहूं की पैदावार हुई थी। इसके अलावा मंत्रालय ने अगले साल की पैदावार का अनुमान भी काफी ज्यादा बताया था। यानी किसानों को अच्छी कमाई होने के बात कही जा रही थी।

मगर, गेहूं की बुवाई के समय केंद्र सरकार ने गेहूं से आयात शुल्क हटा दिया है, जिससे केंद्रीय कृषि मंत्रालय के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अब तक भारतीय व्यापारी करीब 35 लाख टन गेहूं के आयात के लिए अनुबंध कर चुके हैं।

खाद्य सुरक्षा का वाहक बनेगा चावलः स्वामीनाथन

खाद्य सुरक्षा का वाहक बनेगा चावलः स्वामीनाथन

चावल भविष्य का खाद्यान्न है और यही खाद्य सुरक्षा का वाहक बनेगा। यह कहना है जाने-माने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के पास आराम करने का वक्त नहीं है।

उन्हें चावल की ऐसी किस्में विकसित करनी होंगी जो पर्यावरण में हो रहे बदलावों के अनुकूल हों और जिससे चावल का उत्पादन बढ़ सके। स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है।

स्वामीनाथन ने कहा, "इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 1967-68 में अंतरराष्ट्रीय चावल शोध संस्थान (आइआरआरआइ) द्वारा विकसित चावल की किस्म आइआर-8 और अन्य किस्मों ने भारत में हरित क्रांति को गति दी।

मौसम परिवर्तन के अनुरूप करें खेती

मौसम परिवर्तन के अनुरूप करें खेती

मौसम में अभी और ठंडक घुलने के इंतजार में किसान रबी फसल की बोवनी के लिए अपने खेतों को तैयार करने में जुटे है। किसान जहां खेतों में पलेवा कर रहे है तो कृषि विभाग के अधिकारी भी सोसाइटी के माध्यम से किसानों को बीज और उर्वरक मुहैया कराने की तैयारियों में जुट गए है। खुद कृषि विभाग के अधिकारियों का भी मानना है किसानों को बोवनी के लिए अभी एक पखवाड़े इंतजार करना चाहिए। गेहूं को छोड़कर अन्य फसलों की बोवनी शुरू कर देने से कोई खास नुकसान नहीं होने की बात भी अधिकारी कर रहे है। किसान बोवनी के लिए पलेवा कर जमीन को तैयार कर रहे है। लेकिन अभी मौसम में पर्याप्त ठंडक नहीं होने के कारण किसान और ज्यादा ठंडक घुलने

अब गेहूं की पैदावार होगी 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

अब गेहूं की पैदावार होगी 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने देश के अलग-अलग भूभागों के लिये गेहूं की दो नयी प्रजातियां विकसित की हैं.

आईएआरआई के क्षेत्रीय केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) डॉ. अनिल कुमार सिंह ने बताया कि इस केंद्र की विकसित नयी गेहूं प्रजाति ‘पूसा उजाला’ की पहचान ऐसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिये की गयी है जहां सिंचाई की सीमित सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. इस प्रजाति से एक-दो सिंचाई में 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है.

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