आयरन

मानव शरीर के लिये आयरन अत्यंत जरूरी है जिसे लौह तत्व कहा जाता है। आयरन इसलिये जरूरी है क्योंकि यह जीवन के लिये जरूरी ऑक्सीजन को फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों तक पहुँचाती है। शरीर में कभी-कभार रक्त की कमी हो जाती है जिसे चिकित्सीय भाषा में अनीमिया कहते हैं। इतना ही नहीं आयरन हमारी माँसपेशियों में ऑक्सीजन का प्रयोग और उसे शरीर में सहेज कर रखने में भी मदद भी करता है।आयरन रक्त में हीमोग्लोबिन का सबसे महत्वपूर्ण घटक (component) होता है। यह पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाने का काम करता है। शरीर के हर कोशिका को ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। जब ऑक्सीजन फेफड़ों से होकर रक्त में जाता है तब आयरन लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सीजन को सोखने में मदद करता है और फिर पूरे शरीर में फैलाने में सहायता करता है। जब शरीर में आयरन पर्याप्त मात्रा में होता है तब शरीर की हर कोशिका पूरी तरह से ऊर्जा से भरी हुई होती है।
आयरन की कमी से एनीमिया की बीमारी होने के अलावा दूसरी बीमारी होने का खतरा भी रहता है।यह भी जरूरी है कि शरीर के लिये जरूरी आयरन को संतुलित मात्रा में लेनी चाहिये। ऐसा इसलिये क्योंकि शरीर में इसकी कमी और अधिकता दोनों ही नुकसान पहँचा सकती है।
आयरन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हेमोग्लोबिन बनाने के लिए ज़रूरी है। आहार से पर्याप्त आयरन न मिलने से एनीमिया हो सकता है। इसे आयरन की कमी वाला एनीमिया कहा जाता है। इसलिये शरीर में आयरन की कमी का पूर्वानुमान व निदान आवश्यक होता है।
रक्ताल्पता (रक्त+अल्पता), का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रूधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या मे कमी आने से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति मे भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है।

 

रायगढ़ के खेतों की उपजाउ मिट्टी हो रही अम्लीय

रायगढ़ के खेतों की उपजाउ मिट्टी हो रही अम्लीय

कृषि विभाग द्वारा की जा रही मृदा सैंपल की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। जिले के उपजाउ मिट्टी में सबसे ज्यादा अम्ल की मात्रा पाई जा रही है। विभाग द्वारा अब तक 10 हजार मिट्टी का सैंपल परीक्षण किया जा चुका है जिसमें करीब 80 प्रतिशत मृदा अम्लीय है। इससे विभाग असमंजस में है और इस सोच में है कि किस प्रकार क्षारीय मिट्टी को उपजाउ बनाया जाए। इस प्रतिशत को देखते हुए इसकी रिपोर्ट सरकार को वृहद कार्ययोजना के लिए अनुशंसा की जाएगी।

अब गेहूं की पैदावार होगी 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

अब गेहूं की पैदावार होगी 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने देश के अलग-अलग भूभागों के लिये गेहूं की दो नयी प्रजातियां विकसित की हैं.

आईएआरआई के क्षेत्रीय केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) डॉ. अनिल कुमार सिंह ने बताया कि इस केंद्र की विकसित नयी गेहूं प्रजाति ‘पूसा उजाला’ की पहचान ऐसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिये की गयी है जहां सिंचाई की सीमित सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. इस प्रजाति से एक-दो सिंचाई में 30 से 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है.