जैविक खाद
जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है।जैविक खाद वे सूक्ष्म जीव हैं जो मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ा कर उसे उर्वर बनाते हैं। प्रकृति में अनेक जीवाणु और नील हरित शैवाल पाए जाते हैं जो या तो स्वयं या कुछ अन्य जीवों के साथ मिलकर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं( वातावरण में मौजूद गैसीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं)। इसी प्रकार, प्रकृति में अनेक कवक और जीवाणु पाए जाते हैं जिनमें मृदा में बंद्ध फॉस्फेट को मुक्त करने की क्षमता होती है। कुछ ऐसे कवक भी होते हैं जो कार्बनिक पदार्थों को तेजी से विघटित करते हैं जिसके फलस्वरूप मृदा को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अत: जैविक खादें नाइट्रोजन के यौगिकीकरण, फॉस्फेट की घुलनशीलता और शीघ्र पोषक तत्व मुक्त करके मृदा को उपजाऊ बनाती हैं।
पटसन उत्पादन का आर्थिक विश्लेषण एवं विपणन प्रबन्धन
Submitted by Aksh on 13 April, 2015 - 23:26पटसन भारत के पूर्वी व उत्तर राज्यों में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण पर्यावर्णीय अनुकूल रेशा फसल है | इसकी खेती लगभग 8 लाख हेक्टर में लगभग 40 लाख लघु व सीमान्त कृषकों द्वारा की जाती है | पश्चिम बंगाल पटसन के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है | इसके अलावा इसकी खेती बिहार, असम, ओड़ीशा, त्रिपुरा, मेघालय तथा उत्तर प्रदेश में की जाती है | वर्तमान दशक में नवीनतम कृषि तकनीकों एवं क्षेत्रफल विस्तार के कारण इसकी राष्ट्रीय उत्पादकता 23.0 कु॰/हे॰ तथा वर्ष 2012-2013 में लगभग 103.4 लाख बेल का उत्पादन हुआ है | विभिन्न कारणों से पटसन उत्पादक राज्यों में इसकी औसत उत्पादकता में कृषकों के
एक उत्तम कोटि का खाद कृमि खाद
Submitted by Aksh on 12 April, 2015 - 01:13अपशिष्ट या कूड़ा-करकट का मतलब है इधर-उधर बिखरे हुए संसाधन। बड़ी संख्या में कार्बनिक पदार्थ कृषि गतिविधियों, डेयरी फार्म और पशुओं से प्राप्त होते हैं जिसे घर के बाहर एक कोने में जमा किया जाता है। जहाँ वह सड़-गल कर दुर्गंध फैलाता है। इस महत्वपूर्ण संसाधन को मूल्य आधारित तैयार माल के रूप में अर्थात् खाद के रूप में परिवर्तित कर उपयोग में लाया जा सकता है। कार्बनिक अपशिष्ट का खाद के रूप में परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य केवल ठोस अपशिष्ट का निपटान करना ही नहीं अपितु एक उत्तम कोटि का खाद भी तैयार करना है जो हमारे खेत को उचित पोषक तत्व प्रदान करें।
मृदा उर्वरता बनाए रखने के लिए हरी खाद का उपयोग
Submitted by Aksh on 12 April, 2015 - 00:40हरी खाद की प्रक्रिया पर लंबे समय से चल रहे प्रयोगों व शोध कार्यों से सिद्ध हो चुका है कि हरी खाद का प्रयोग अच्छे व निरोगी फसल उत्पादन के लिए बहुत उपकारी है। भारत में हरी खाद के अंतर्गत 49.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है। हरी खाद के लिए मुख्य रूप से दलहली फसलें उगाई जाती हैं। इसकी जड़ों में गांठें होती हैं। इन ग्रंथियों में विशेष प्रकार के सहजीवी जीवाणु रहते हैं जो वायुमंडल में पाई जाने वाली नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करके मृदा में नाइट्रोजन की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार से स्पष्ट है कि दलहनी फसलें मृदा की भौतिक दशा को सुधारने के अलावा उसमें जीवांश पदार्थ एवं नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ाती हैं। दलहनी