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अरे अब तो जागो क्योकि कीटनाशक बने मानवनाशक
Submitted by Aksh on 11 October, 2015 - 12:04अच्छेजा गाँव में बीते पाँच साल में दस लोग इस असाध्य बीमारी से असामयिक काल के गाल में समा चुके हैं। अब अच्छेजा व ऐसे ही कई गाँवों में लोग अपना रोटी-बेटी का नाता भी नहीं रखते हैं। दिल्ली से सटे पश्चिम उत्तर प्रदेश का दोआब इलाका, गंगा-यमुना नदी द्वारा सदियों से बहाकर लाई मिट्टी से विकसित हुआ था। यहाँ की मिट्टी इतनी उपजाऊ थी कि पूरे देश का पेट भरने लायक अन्न उगाने की क्षमता थी।
जमीन में हो रही है ह्यूमस मिट्टी की कमी
Submitted by Aksh on 11 October, 2015 - 11:13चल रही महती प्राकृतिक आपदा से कृषिक त्राहि त्राहि कर रहा है, क्यूँकि आने वाला वर्ष उसके लिए निःसन्देह बहुत ही कठिन सिद्ध होने वाला है । ऐसी भीषण समस्या का समाधान क्या हो, इस पर गम्भीर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है ।सम्पूर्ण समाज को कृषिकों की हानि का सहभागी बनने के लिए प्रेरित किया जाए । यह कार्य व्यापक प्रचार के माध्यम से किया जा सकता है । यदि खाने के लिए अन्न नहीं होगा, तो सभी जन भूखे रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होंगे ही । इतिहास में ऐसा हुआ है, और भविष्य में भी भीषण आपदा आने से इस भुखमरी की सम्भावना को कदापि नकारा नहीं जा सकता, केवल न्यून किया जा सकता है । अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते
अगर देश बचना है तो छोटे किसानों को बचाना ही होगा
Submitted by Aksh on 10 October, 2015 - 23:06एक बार फिर बिन मौसम बारिश और दिल्ली में सार्वजनिक तौर पर हुई आत्महत्या ने भारत में लंबे समय से उपेक्षित पड़े कृषि और गांव के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया. स्वतंत्रता के बाद शहरीकरण विकास की पूर्व शर्त बन गया. यह माना गया की बिना शहरीकरण हुए गाँवों का विकास नहीं हो सकता. इससे पलायन बढ़ा और गांव हाशिये पर चले गए. शहरों का विस्तार होता गया और वे गाँवों में घुस कर उसे शहर बनाने लगे. उपजाऊ जमींन बिचने लगी और कंक्रीट का फैलाव होता गया. महंगे बीज, उर्वरक और कीटनाशक, गिरता भूजल स्तर, बढ़ती मजदूरी के कारण खेती की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी हो चुकी है. ऐसे में बिना कर्ज लिए खेती संभव नहीं रह गई है.
बीमा के मायाजाल में उलझा किसान
Submitted by Aksh on 10 October, 2015 - 11:06कृषि उत्पादों के मूल्य पिछड़ने के कारण खेती घाटे का सौदा होती जा रही है। फलस्वरूप किसान ऋण लेने को मजबूर होता जा रहा है। ऋण लेने के बाद वे ब्याज और बीमा के प्रीमियम भी अदा करते हैं। उनकी आय पहले ही कम थी। अब उसमें एक हिस्सा सरकारी बैंकों तथा बीमा कंपनियों के हिस्से चला जाता है। किसान गरीब होता जा रहा है। किसान को राहत पहुंचानी है, तो केंद्र सरकार से कृषि मूल्यों में महंगाई से अधिक वृद्धि करनी चाहिए। तब किसान को मोबाइल खरीदने को पैसा होगा और ऋण लेने और बीमा की जरूरत नहीं रह जाएगी…