आधुनिकता की भेंट चढ़े किसानों के मित्र पक्षी
किसानों के मित्र समझे जाने वाले मित्र पक्षियों की कई प्रजातियां काफी समय से दिखाई नहीं दे रहीं हैं। किसान मित्र पक्षियों का धीरे-धीरे गायब होने के पीछे बहुत से कारणों में एक बड़ी वजह किसानों द्वारा कृषि में परंपरागत तकनीक छोड़ देने, मशीनीकरण व कीटनाशकों के व्यापक इस्तेमाल को माना जा रहा है।
गाँव-गाँव में मोबाइल फोन के टावरों से निकलने वाली तरंगों से भी मित्र पक्षियों तथा कीटों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। कौन से हैं किसानों के मित्र किसान मित्र पक्षियों में मोर, तीतर, बटेर, कौआ, शिकरा, बाज, काली चिड़ी और गिद्ध आदि हैं, जो दिन-प्रतिदिन लुप्त होते जा रहे हैं। ये पक्षी खेतों में बड़ी संख्या में कीटों को मारकर खाते हैं। आज से एक दशक पहले तक ये पक्षी काफी अधिक संख्या में थे लेकिन अब इनमें कुछ पक्षियों के दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं।
सबसे ज्यादा असर तो खेतऔर घरों में आमतौर पर दिखने वाली गौरया चिड़ी पर पड़ा है। खेतों में तीतर व बटेर जैसे पक्षी दीमक को खत्म करने में सहायक थे, क्योंकि उनका मनपंसद खाना दीमक ही है। इनके प्रजनन का माह अप्रैल, मई है और ये पक्षी आम तौर पर गेहूं के खेत में अंडे देते है। आज किसान गेहूँ कम्बाइन से काटते हैं और बचे हुए भाग को आग लगा देते हंै। इससे तीतर, बटेर के अंडे, बच्चें आग की भेंट चढ़ जाते है। इसी कारण इनकी संख्या में कमी आ रही है।
नरमा, कपास के खेतों में दिन-प्रतिदिन कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा छिड़काव हो रहा है। जिससे बड़ी संख्या में तीतर-बटेरों की हर साल मौत हो जाती है। कमोबेस यही स्थिति मांसाहारी पक्षियों बाज, शिकरा, गिद्ध और कौवों की भी है।
खूबसूरत मोर भी हुए लुप्तप्राय गाँव का सबसे खूबसूरत पक्षी और वर्षा की पूर्व सूचना देने वाले मोर भी अब लुप्त होते जा रहे है। ये पक्षी किसानों को सांप जैसे खतरनाक जंतुओं से भयमुक्त रखता है और साथ ही पक्षी शिकार कर खेतों से चूहे मारकर खाने में मशहूर है। वर्तमान में जहरीली दवाओं की वजह से मोरों की संख्या बहुत कम हो गई है।
मुर्दाखोर गिद्ध भी गायब हैं भारत मे कभी गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती थी, लेकिन अब बिरले ही कहीं दिखाई देते हैं। संरक्षण कार्यकर्ताओं का मानना है कि पिछले 12 सालों में गिद्धों की संख्या में अविश्वसनीय रूप से 97 प्रतिशत की कमी आई है। गिद्धों की इस कमी का एक कारण बताया जा रहा है: पशुओं को दर्दनाशक के रूप में दी जा रही दवा डायक्लोफ़ेनाक, और दूसरा, दूध निकालने लिए के लगातार दिए जा रहे ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन। उपचार के बाद पशुओं के शरीर में इन दवाओं के रसायन घुल जाते हैं और जब ये पशु मरते हैं तो ये रसायन उनका मांस खाने वाले गिद्धों की किडनी और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। मुर्दाखोर होने की वजह से गिद्ध पर्यावरण को साफ-सुथरा रखते है और सड़े हुए माँस से होने वाली अनेक बीमारियों की रोकथाम में सहायता कर प्राकृतिक संतुलन बिठाते है।
गिद्धों की जनसंख्या को बढ़ाने के सरकारी प्रयासों को मिली नाकामी से भी इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई है। इनकी प्रजनन क्षमता भी संवर्धन के प्रयासों में एक बड़ी बाधा है, एक गिद्ध जोड़ा साल में औसतन एक ही बच्चे को जन्म देता है। कीटनाशकों के प्रयोग से मरे अधिकांश पक्षी कीटनाशकों का प्रयोग लगातार बढऩे से अन्य कीटों के साथ-साथ चूहे भी मर जाते हैं और इन मरे हुए चूहों को खाने से ये पक्षी भी मर जाते हैं। इसी प्रकार कौवे तथा गिद्ध भी जहर युक्त मरे जानवरों को खाने से मर रहे हैं। खेतों में सुंडी जैसे कीटों को मारकर खाने वाली काली चिडिया व अन्य किस्म की चिडियों पर भी कीटनाशकों का कहर बरपा है। अब ये पक्षी कभी-कभार ही दिखाई देते हैं।
वृक्षों का कटना भी है कारण खेतों से पक्षियों के गायब होने का एक बड़ा कारण है किसानों द्वारा वृक्षों का काटना। किसानों द्वारा किसी जमाने में खेतों में वृक्षों के नीचे पक्षियों के लिए पानी व खाने का प्रबंध किया जाता था, परंतु अब ठीक इसके विपरीत हो रहा है, जिससे अब पक्षियों का रूख खेतों की तरफ नहीं हो रहा है।