भारतीय गोवंश विशेष क्यों ?

आखिर भारतीय गोवंश विशेष क्यों ?

बार बार यह सवाल उठता रहा है कि पशुपालन में गौ पालन सर्वश्रेष्ठ, उसमे भी भारतीय गौ वंश ही क्यों? आखिर हमारे देश में गौ को माता का दर्जा क्यों दिया जाता है।?क्यों सभी विशेषज्ञ भारतीय गौवंश का दूध उत्तम बताते हैं?इन सभी सवालों का जवाब मथुरा के ‘पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान’ में नेशनल ब्यूरो ऑफ जैनेटिक रिसोर्सेज, करनाल (नेशनल काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च - भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र सदाना द्वारा एक प्रस्तुति 4 सितम्बर को दी गई। मथुरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सामने दी गई प्रस्तुति में डॉ. सदाना ने जानकारी दी किः अधिकांश विदेशी पशु (हॅालस्टीन, जर्सी आदि) के दूध में ‘बीटा कैसीन A1’ नामक प्रोटीन पाया जाता है जिससे अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं। पांच रोग होने के स्पष्ट प्रमाण वैज्ञानिकों को मिल चुके हैं –

1. इस्चीमिया हार्ट डिसीज़ (रक्तवाहिका नाड़ियों का अवरुद्ध होना)

2. मधुमेह-मिलाईटिस या डायबिट़िज टाईप-1 (पैंक्रिया का खराब होना जिसमें इन्सूलीन बनना बन्द हो जाता है)

3. ऑटिज़्म (मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म होना)

4. सिजोफ्रेनिया (स्नायु कोषों का नष्ट होना तथा अन्य मानसिक रोग)

5. सडन इनफैण्ट डैथ सिंड्रोम (बच्चे किसी ज्ञात कारण के बिना अचानक मरने लगते हैं)

विचारणीय है कि हानिकारक A1 प्रोटीन के कारण यदि मनुष्य का सुरक्षा तंत्र नष्ट हो जाता है तो फिर न जाने कितने ही और रोग भी हो रहे होंगे, जिन पर अभी खोज नहीं हुई। दूध की संरचना आमतौर पर दूध में, 83 से 87% तक पानी 3.5 से 6% तक वसा (फैट) 4.8 से 5.2% तक कार्बोहाइड्रेड 3.1 से 3.9% तक प्रोटीन होती है। इस प्रकार कुल ठोस पदार्थ 12 से 15% तक होता है। लैक्टोज़ 4.7 से 5.1% तक है। शेष तत्व अम्ल, एन्जाईम विटामिन आदि 0.6 से 0.7% तक होते हैं। गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन 2 प्रकार के हैं।

एक ‘केसीन’ और दूसरा है ‘व्हे’ प्रोटीन।

दूध में केसीन प्रोटीन 4 प्रकार का मिला हैः

अल्फा एस 1 (39 से 46%)

अल्फा एस 2 (8 से 11%)

बीटा कैसीन (25 से 35%)

गामा केसीन (8 से 15%)

गाय के दूध में पाए गए प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ नामक प्रोटीन है। अलग-अलग प्रकार की गउओं में अनुवांशिकता (जैनेटिक कोड) के आधार पर ‘केसीन प्रोटीन’ अलग-अलग प्रकार का होता है जो दूध की संरचना को प्रभावित करता है, या यूं कहे कि उसमें गुणात्मक परिवर्तन करता है। उपभोक्ता पर उसके अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं। बीटा कैसीन A1, A2 में अन्तर क्या है? बीटा कैसीन के 12 प्रकार ज्ञात हैं जिनमें A1 और A2 प्रमुख हैं। A2 की एमिनो एसिड शृंखला (कड़ी) में 67 वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ होता है। जबकि A1 प्रकार में यह ‘प्रोलीन’ के स्थान पर विषाक्त ‘हिस्टिडीन’ है। A1 में यह कड़ी कमजोर होती है तथा पाचन के समय टूट जाती है और विषाक्त प्रोटीन ‘बीटा केसो मार्फीन 7’ बनाती है।

विदेशी गोवंश विषैला क्यों है?

जैसा कि शुरू में बतलाया गया है कि विदेशी गोवंश में अधिकांश गउओं के दूध में ‘बीटा कैसीन A1’ नामक प्रोटीन पाया गया है। हम जब इस दूध को पीते हैं और इसमें शरीर के पाचक रस मिलते हैं व इसका पाचन शुरू होता है, तब इस दूध के A1 नामक प्रोटीन की 67वीं कमजोर कड़ी टूटकर अलग हो जाती है और इसके ‘हिस्टिडीन’ से ‘बी.सी.एम.7’ (बीटा केसो माफिन 7) का निर्माण होता है। सात कड़ियों वाला यह विषाक्त प्रोटीन ‘बी.सी.एम.7’ पूर्वोक्त सारे रोगों को पैदा करता है। शरीर के सुरक्षा तंत्र को नष्ट करके अनेक असाध्य रोगों का कारण बनता है।

भारतीय गोवंश विशेष क्यों?

करनाल स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत की 98% नस्लें A2 प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात् विषरहित हैं। इसके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन A2) में 67वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं। 66वीं कड़ी में एमीनो ऐसिड ‘आइसोल्यूसीन’ होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की 2% नस्लों में A1 नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी गोवंश के साथ हुए ‘म्यूटेशन के कारण’ आया हो सकता है। एन.बी.ए.जी.आर. – करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गउओं के 900 सैंम्पल लिए गए थे। उनमें से 97-98 % A2 A2 पाए गए गथा एक भी A1A1 नहीं निकला। कुछ सैंम्पल A1A2 थे जिसका कारण विदेशी गोवंश का सम्पर्क होने की सम्भावना प्रकट की जा रही है। गुणसूत्र(chromosome) गुणसूत्र जोड़ों में होते हैं, अतः स्वदेशी-विदेशी गोवंश की DNA जांच करने पर ‘A1 A1’ ‘A1 A2’ ‘A2 A2’ के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है। स्पष्ट है कि विदेशी गोवंश ‘A1A1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘A2A2’ है। केवल दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गोवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त होगा। क्योंकि बकरी, भैंस, ऊँटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित A2 प्रकार का है। भारतीय गोवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार भी भैंस का दूध मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला), गरिष्ठ व कब्जकारक है। जबकि गो दूग्ध बुद्धि, आयु, स्वास्थ्य व सौंदर्य वर्धक बतलाया गया है। भारतीय गोवंश का दूध अनेक गुणों वाला है -

 

1. बुद्धिवर्धक खोजों के अनुसार भारतीय गउओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाईट’ नामक तत्व पाया गया है जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम' को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को बल देने वाला, बुद्धि वर्धक है।

2. गाय के दूध से फुर्ती जन्म लेने पर गाय का बछड़ा 2 घंटे में ही चलने लगता है जबकि भैंस का पाडा 2 दिन बाद चलता है। स्पष्ट है कि गाय एवं उसके दूध में भैंस की अपेक्षा अधिक फुर्ती होती है।

3. आँखों की ज्योति, कद और बल को बढ़ाने वाला भारतीय गौ की आँत 180 फुट लम्बी होती है। गाय के दूध में केरोटीन नामक एक ऐसा उपयोगी एवं बलशाली पदार्थ मिलता है जो भैंस के दूध से कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। बच्चों की लम्बाई और सभी के बल को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी होता है। आँखों की ज्योति को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी है। यह कैंसर रोधक भी है।

4. असाध्य बिमारियों की समाप्ति गाय के दूध में स्टोनटियन नामक ऐसा पदार्थ भी होता है जो विकिरण (रेडियेशन) प्रतिरोधक होता है। यह असाध्य बिमारियों को शरीर पर आक्रमण करने से रोकने का कार्य भी करता है। रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे रोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है।

5. रामबाण है गाय का दूध – ओमेगा 3 से भरपूर वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद यह सिद्ध हो चुका है कि फैटी एसिड ओमेगा 3 (यह एक ऐसा पौष्टिकतावर्धक तत्व है, जो सभी रोगों की समाप्ति के लिए रामबाण है) केवल गो माता के दूध में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। आहार में ओमेगा 3 से डी. एच. तत्व बढ़ता है। इसी तत्व से मानव-मस्तिष्क और आँखों की ज्योति बढ़ती है। डी. एच. में दो तत्व ओमेगा 3 और ओमेगा 6 बताये जाते हैं। मस्तिष्क का संतुलन इसी तत्व से बनता है। आज विदेशी वैज्ञानिक इसके कैप्सूल बनाकर दवा के रूप में इसे बेचकर अरबों-खरबों रुपये का व्यापार कर रहे हैं।

6. विटामिन से भरपूर-माँ के दूध के समकक्ष प्रो. एन. एन. गोडबोले के अनुसार गाय के दूध में अल्बुमिनाइड, वसा, क्षार, लवण तथा कार्बोहाइड्रेड तो हैं ही साथ ही समस्त विटामिन भी उपलब्ध हैं। यह भी पाया गया कि देशी गाय के दूध में 8% प्रोटीन, 0.7% खनिज व विटामिन ए, बी, सी, डी व ई प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं, जो गर्भवती महिलाओं व बच्चों के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

7. कॅालेस्ट्राल से मुक्ति वैज्ञानिकों के अनुसार कि गाय के दूध से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता। हृदय रोगियों के लिए यह बहुत उपयोगी माना गया है।

8. टी.बी. और कैंसर की समाप्ति क्षय (टी.बी) रोगी को यदि गाय के दूध में शतावरी मिलाकर दी जाये तो टी.बी. रोग समाप्त हो जाता है। एसमें एच.डी.जी.आई. प्रोटीन होने से रक्त की शिराओं में कैंसर प्रवेश नहीं कर सकता।

9. हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम इन्टरनेशनल कार्डियोलॅाजी के अध्यक्ष डा. शान्तिलाल शाह ने कहा है कि भैंस के दूध में लाँगचेन फेट होता है जो नसों में जम जाता है। फलस्वरूप हार्टअटैक की सम्भावना अधिक हो जाती ही। इसलिए हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम है। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल्ज़ भी आकार में अधिक बड़े होते हैं तथा स्नायु कोषों के लिए हानिकारक हैं।

10. विटामिन B12 B12 भारतीय गाय की बड़ी आंतों में अत्यधिक पाया जाता है, जो व्यक्ति को निरोगी एवं दीर्घायु बनाता है। इससे बच्चों एवं बड़ों को शारीरिक विकास में बढ़ोतरी तो होती ही है साथ ही खून की कमी जैसी बिमारियां (एनीमिया) भी ठीक हो जाती है।

11. गाय के दूध में दस गुण चरक संहिता (सूत्र 27/217) में गाय के दूध में दस गुणों का वर्णन है- स्वादु, शीत, मृदु, स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्। गुरु मंदं प्रसन्नं च गल्यं दशगुणं पय॥ अर्थात्- गाय का दूध स्वादिष्ट, शीतल, कोमल, चिकना, गाढ़ा, श्लक्ष्ण, लसदार, भारी और बाहरी प्रभाव को विलम्ब से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला होता है।

12. केवल भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक करनाल के नेशनल ब्यूरो आफ एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज (एन.बी.ए.जी.आर.) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय गायों में प्रचुर मात्रा में A2 एलील जीन पाया जाता हैं, जो उन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की फ्रिक्वेंसी 100% तक पाई जाती है।

13. कोलेस्ट्रम (खीस) में है जीवनी शक्ति प्रसव के बाद गाय के दूध में ऐसे तत्व होते हैं जो अत्यन्त मूल्यवान, स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसलिए इसे सूखाकर व इसके कैप्सूल बनाकर, असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए इसे बेचा जा रहा है। यही कारण है कि जन्म के बाद बछड़े, बछिया को यह दूध अवश्य पिलाना चाहिए। इससे उसकी जीवनी शक्ति आजीवन बनी रहती है। इसके अलावा गौ उत्पादों में कैंसर रोधी तत्व एनडीजीआई भी पाया गया है जिस पर US पेटेन्ट प्राप्त है।

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